बसावन सिंह की क्रांतिकारी शख्सियत से साक्षात्कार

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— विमल कुमार —

लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने जब 1974 का आंदोलन शुरू किया था तो उन्होंने सबसे पहले तीन व्यक्तियों से राय विमर्श किया था। उन तीनों में सबसे पहले जिस व्यक्ति से उन्होंने बातचीत की थी वे उनके आत्मीय समाजवादी मित्र प्रसिद्ध सेनानी एवं लोकप्रिय मजदूर नेता बसावन सिंह थे। दूसरे अन्य नेताओं में कर्पूरी ठाकुर और रामानंद तिवारी भी थे।

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जेपी की नजर में सबसे महत्त्वपूर्ण एवं भरोसेमंद व्यक्ति बसावन सिंह थे। देवली जेल में जेपी के प्रभावती नाम से भेजे गए पत्र के पकड़े जाने के बाद लोगों को पता चल गया था कि जेपी के कितने भरोसेमंद बसावन बाबू थे क्योंकि उस पत्र में बसावन बाबू का जिक्र था।

गायत्री शर्मा

आज की पीढ़ी को शायद नहीं पता होगा कि आजादी की लड़ाई में जेल के भीतर सबसे अधिक दिनों तक भूख हड़ताल करनेवाले स्वतंत्रता सेनानी बसावन सिंह ही थे। अंडमान निकोबार की जेल में काला पानी की सज़ा पानेवाले व्यक्तियों को छोड़ दें तो शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने बसावन सिंह की तरह (उनकी पत्नी कमला सिन्हा के अनुसार 15 साल) इतना लंबा समय जेल में बिताया होगा। इस ग्रंथ में कुछ लोगों ने 18 साल जेल जीवन की बात लिखी है। शायद आजाद भारत में उनके जेल जीवन को भी शामिल कर लिया गया हो। बसावन सिंह का परिचय मात्र इतना नहीं है बल्कि आजादी के बाद मजदूरों के हक के लिए लड़नेवाले वे प्रखर नेता भी थे जिनके कारण डालमिया नगर के 3600 मजदूरों की नौकरी बहाल हुई थी। इससे पहले वे आजादी की लड़ाई में टाटा लेबर एसोसिएशन के कार्यकारी अध्यक्ष थे जबकि उसके अध्यक्ष नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। सुभाष बाबू के बाद वह उसके अध्यक्ष बने थे। देश के श्रमिक आंदोलन में बीटी रणदिवे, वीवी गिरी का नाम अक्सर लिया जाता है पर बसावन बाबू का उनसे कम योगदान नहीं है। बिहार में उनके जैसा श्रमिक नेता कोई नहीं हुआ।

बसावन सिंह (23 मार्च 1909 – 7 अप्रैल 1989) पर डाक टिकट

पिछले दिनों बसावन सिंह की पुत्री इतिहास की अध्येता तथा पत्रकार गायत्री शर्मा ने अपने पिता पर एक स्मृति ग्रंथ प्रकाशित किया है जो हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में है और उस अभिनंदन ग्रंथ में दिवंगत सत्येंद्र नारायण सिंह, कैलाशपति मिश्र, मुनीश्वर प्रसाद सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के अलावा पूर्व रेलमंत्री मधु दंडवते, समाजवादी नेता सुरेंद्र मोहन, प्रेम भसीन, ब्रजमोहन तूफान, जेपी के सचिव एवं पूर्व सांसद शिशिर कुमार, जेपी के तीसरे सचिव सच्चिदानंद, हरकिशोर सिंह, चतुरानन मिश्र जैसे अनेक लोगों के लेख हैं जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनके लेखों से बसावन बाबू के व्यक्तित्व और उनके अवदान के बारे में समग्र रूप से पता चलता है।

बसावन बाबू की अब कायदे से एक जीवनी लिखे जाने की जरूरत है। उस दौर के समाजवादी क्रांतिकारियों का जीवन इतना त्यागमय, संघर्षपूर्ण और प्रेरक रहा कि रामवृक्ष बेनीपुरी, योगेंद्र शुक्ला जैसे लोगों की भी जीवनियाँ लिखे जाने की बेहद आवश्यकता हौ।

बसावन बाबू की पत्नी कमला सिन्हा (30 सितंबर 1932 – 31 दिसंबर 2014)

यूं तो समाजवादी आंदोलन से जुड़ा हर व्यक्ति बसावन सिंह के नाम से और उनके योगदान से परिचित है पर आम पाठकों और आज की नयी पीढ़ी को बसावन सिंह के बारे में पूरी जानकारी शायद ही हो। इस दृष्टि से गायत्री शर्मा ने यह अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित कर एक नेक कार्य किया है ताकि नई पीढ़ी बसावन सिंह, समाजवादी आंदोलन, आजादी की लड़ाई तथा मजदूर आंदोलन के इतिहास के अनछुए पहलुओं और अलक्षित पृष्ठों को भी जान सके। गायत्री शर्मा खुद पटना टाइम्स ऑफ इंडिया में पत्रकार रही हैं और उन्होंने बिहार में समाजवादी आंदोलन के इतिहास पर पीएचडी की है तथा भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद की वह फैलो रही हैं। इस दृष्टि से उनकी सम्पादित किताब Basawon Singh : A Revolutionary Patriot काफी महत्त्वपूर्ण है और काफी रोचक ढंग से संपादित की गई है। ग्रंथ के आरंभ में अंग्रेजी में कुछ लेख हैं तो इसके दूसरे खंड में हिंदी में प्रकाशित लेख हैं या अंग्रेजी में लिखे गए कुछ लेखों के हिंदी अनुवाद भी हैं। इस तरह से यह किताब बसावन सिंह को जानने समझने के लिए एक मुकम्मल और जरूरी पुस्तक है। इस ग्रंथ में बसावन सिंह के कई दुर्लभ चित्र और उन पर सन 2000 में निकले डाक टिकट का भी फोटो भी है।

इसमें गायत्री शर्मा की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका, उनकी बहन रीता सिन्हा का एक लेख भी है। ग्रंथ के आरंभ में कमला सिन्हा का भी लेख है जो बसावन बाबू की दूसरी पत्नी थीं। वे श्यामाप्रसाद मुखर्जी की भतीजी थीं और मोर्चा सरकार में विदेश राज्यमंत्री रहीं।

आजादी की लड़ाई में हजारीबाग जेल से जेपी के भागने की कथा तो सब लोग जानते हैं लेकिन गिरफ्तार होने के तीन दिन के भीतर पटना (बांकीपुर) जेल से दीवार फांदकर भागने की बसावन सिंह की कथा बहुत कम लोग जानते होंगे।

बसावनबाबू ने जिस साहस और बहादुरी के साथ जेल की दीवार फांदी थी, वह कम लोमहर्षक घटना नहीं है। जेल की दीवार फांदने के बाद उनके पूरे शरीर में बबूल के कांटे चुभ गए थे और वह उसी अवस्था में 2 किलोमीटर तक पैदल चलकर अपने डॉक्टर मित्र के पास रुक कर बबूल के कांटे निकलवाए थे और फिर वहां से वह भागकर भूमिगत हो गए। पर कोलकाता में उन्हें बाद में गिरफ्तार कर लिया गया और मोतिहारी जेल में भेज दिया गया। गया जेल में 57 दिनों तक उनके द्वारा भूख हड़ताल किए जाने की घटना एक चौंका देनेवाली यादगार घटना थी और वह पूरी कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं थी, कि किस तरह बैकुंठ शुक्ला ने उनका अनशन तुड़वाने के लिए उनकी मां को जेल बुलाया लेकिन माँ ने उल्टे अपने पुत्र से कहा कि वह अनशन न तोड़ें और देश की रक्षा की लड़ाई में विजयी हों। युगल किशोर पाठक ने अपने लेख में बसावन बाबू की मां को गोर्की की मां बताया है। माँ और बेटे के देशप्रेम और आदर्श की यह अनोखी और यादगार घटना है। इससे पता चलता है कि उनका पूरा परिवार किस तरह आदर्शों मूल्यों में जीनेवाला परिवार था। बसावन सिंह के त्याग, समर्पण की कहानी किसी भी महापुरुष की कहानी से कम नहीं है। योगेंद्र शुक्ला जैसे क्रांतिकारी, जिन्हें शेरे बिहार कहा जाता था, बसावन बाबू के नायक थे। उनके कारण वह भगतसिंह और चंद्रशेखर आजाद के भी संपर्क में थे। इस ग्रंथ से यह भी पता चलता है कि भगतसिंह हथियारों की ट्रेनिंग के लिए बिहार आए थे और योगेंद्र शुक्ल से मिले थे। योगेंद्र शुक्ल ने बिहार सोशलिस्ट लिबरेशन आर्मी बनाई थी।

गायत्री शर्मा ने यह ग्रंथ निकालकर देश में समाजवादी आंदोलन से जुड़े लोगों के लिए एक उपहार प्रदान किया है और भविष्य में जब कभी समाजवादी आंदोलन के इतिहास को विकसित किया जाएगा तो उसमें यह ग्रंथ मूल्यवान साबित होगा और नई पीढ़ी के लोगों को के लिए प्रेरणादायक भी होगा। बिहार ही नहीं देश की आजादी का इतिहास बसावन बाबू के बिना अधूरा है। साथ ही मजदूर आंदोलन का इतिहास भी बसावन बाबू के बिना अधूरा है।

Basawon Singh : A Revolutionary Patriot. संपा. गायत्री शर्मा; प्रकाशक – अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, 4697/3 21A, अंसारी रोड, दरियागंज, दिल्ली-110002. मूल्य : 2500 रु.

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