16 अगस्त। भारत ऐसे समय में अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, जब देश में कई तरह की गंभीर समस्याएं पैदा हुई हैं। आजाद भारत में लोगों को अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ रहा है। उच्चवर्णीयों को छोड़कर अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ नफरत का माहौल बनाया जा रहा है। ऐसे में जाने माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने एक लेख लिखकर बताया है, कि दुनिया में भारत की स्थिति कैसी है। वह लिखते हैं, हाल के महीनों में पीएम मोदी कहते रहे हैं, कि दुनिया भारत की ओर देख रही हैं। उन्होंने मार्च में कहा, कि दुनिया भारत की तरफ देख रही है क्योंकि हम मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस हैं। मई में स्टार्टअप की वजह से दुनिया हमारी तरफ देख रही थी। जून में भारत की क्षमता और प्रदर्शन के लिए दुनिया इस ओर देख रही थी। जुलाई में यह जुमला कुछ और हो गया।
इसके बाद गुहा, आकार पटेल की किताब ‘प्राइस ऑफ द मोदी इयर्स’ के हवाले से बताते हैं, कि वास्तव में दुनिया भारत की तरफ क्यों देख रही है? हेनली पासपोर्ट इंडेक्स में भारत 85वें स्थान पर है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 101वें पायदान पर है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ह्यूमन कैपिटल इंडेक्स में भारत 103 नंबर पर है। यूएन के ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में भारत 131वें नंबर पर है। वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के 150 देशों की सूची में भारत 142 वें नंबर पर है। ऐसे कई पैमानों पर भारत साल 2014 से बहुत पीछे चला गया है। 2014 में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र की सत्ता संभाली थी।
इसके अलावा ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत 135वें स्थान पर पहुँच गया है। लेबर फोर्स में महिलाओं की भागीदारी बांग्लादेश से भी कम 25 फीसदी रह गई है। मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व हर क्षेत्र में घटा है। आजादी के 75 साल पूरे होने पर दुनिया निश्चित रूप से यह जानना चाहेगी, कि भारत और भारतीय क्या कर रहे हैं? संविधान में तय आदर्शों और उम्मीदों की रोशनी में भारत ने कहाँ तक की यात्रा तय कर ली है? आजादी के दीवानों का सपना कहाँ तक पूरा हुआ है?
‘द टेलीग्राफ’ में प्रकाशित अपने लेख में गुहा मोदी सरकार के आँकड़ों को ही पेश कर सरकार को आईना दिखाते हैं। वह लिखते हैं, सरकार ने खुद स्वीकार किया है, कि 2016 से 2020 के दौरान 24 हजार से ज्यादा लोगों को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया और उनमें से एक प्रतिशत से भी कम को सजा हुई। जाने-माने शिक्षाविद और राजनीतिक स्तंभकार प्रोफेसर प्रताप भानु मेहता के लेख के हवाले से गुहा ने सुप्रीम कोर्ट की हालिया गतिविधियों पर सवाल उठाया है। लेख में उच्चतम न्यायालय को नागरिक अधिकारों के अभिभावक के रूप में नहीं बल्कि उस पर खतरे के रूप में देखा गया है। मेहता को उद्धरित करते हुए गुहा ने लिखा है, राजनीतिक और सामाजिक रूप से भारतीय कम आजादी अभिव्यक्त कर पा रहे हैं। सामाजिक दुराग्रह हर जगह दिखता है।
गौरतलब है, कि दो साल पहले यानी साल 2020 में लिखे रामचंद्र गुहा के एक लेख के अनुसार, गणतंत्र-भारत मौजूदा वक्त में अपने इतिहास के चौथे सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है। सरकार की नीतियों के चलते हमारी अर्थव्यवस्था की हालत बिगड़ती जा रही है। देश के नागरिक एक दूसरे के खिलाफ हो गए हैं और वैश्विक तौर पर भारत की छवि कमजोर हुई है। बीते लोकसभा चुनावों में जब मोदी सरकार सत्ता में आयी थी तो उसके सामने बेरोजगारी, कृषि संकट, लोकतांत्रिक संस्थाओं की खराब होती छवि जैसी परेशानियां थीं, लेकिन सरकार ने इन समस्याओं से निपटने के बजाय ऐसे कदम उठाए, जिनसे परेशानियां और ज्यादा बढ़ गई हैं।
– अंकित कुमार निगम