7 सितंबर। देश में जनता की जिंदगी से खिलवाड़ करने का नजारा न केवल लॉकडाउन में देखने को मिला था, बल्कि लॉकडाउन के बाद भी देखने को मिल रहा है। देश की स्वास्थ्य व्यवस्था कैसी है? यह बात किसी से छिपी नहीं है। जहाँ एक तबका इलाज के अभाव में दम तोड़ रहा है, तो वहीं दूसरा तबका गलत इलाज से मौत के मुँह में समाता जा रहा है। इसके खासकर दो मुख्य कारण हैं, जिसमें एक है घटिया स्वास्थ्य व्यवस्था और दूसरा है नकली या बगैर मान्यता प्राप्त दवाओं का कारोबार। जो यह साबित करता है, कि देश में जनता की जिंदगी के साथ भारी खिलवाड़ किया जा रहा है। यह बात ऐसे ही नहीं कही जा रही है, बल्कि कंसल्टेंट फिजिशियन और डायबेटोलॉजिस्ट की सर्वे रिपोर्ट में सनसनीखेज खुलासा हुआ है।
भारत के निजी स्वास्थ्य क्षेत्र में साल 2019 में इस्तेमाल की गयी 47 प्रतिशत से अधिक एंटीबायोटिक दवाओं के लिए केंद्रीय औषधि नियंत्रक की मंजूरी नहीं ली गई थी। ’द लांसेट’ पत्रिका में ‘रीजनल हेल्थ- साउथ ईस्ट एशिया’ में प्रकाशित शोध में यह जानकारी दी गई है। शोध में पता चला है कि भारत में साल 2019 में जिन एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया गया, इसमें सबसे अधिक (7.6 प्रतिशत) एजिथ्रोमाइसिन 500mg गोली इस्तेमाल की गई। इसके बाद (6.5 प्रतिशत) सेफिग्जाइम 200mg गोली का उपयोग किया गया।
अमेरिका के बोस्टन विश्वविद्यालय और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, नई दिल्ली के शोधकर्ताओं ने निजी स्वास्थ्य क्षेत्र में एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल की समीक्षा की। भारत में 85 से 90 प्रतिशत तक एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इस दौरान लगभग 5000 दवा कंपनियों के उत्पाद रखनेवाले 9 हजार स्टॉकिस्ट से डेटा एकत्र किया गया। इन आँकड़ों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से दी जानेवाली दवाएं शामिल नहीं थीं। हालांकि इस शोध और राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा अनुमानों के अनुसार देश में जितनी भी दवाएं बेची जाती हैं, उनमें इनका हिस्सा 15 से 20 प्रतिशत से भी कम है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि पिछले अनुमानों की तुलना में एंटीबायोटिक दवाओं की खपत की दर में कमी आई है, लेकिन बैक्टीरिया से होनेवाले विभिन्न रोगों से व्यापक रूप से लड़नेवाली एंटीबायोटिक दवाओं का अपेक्षाकृत काफी अधिक इस्तेमाल हुआ है। शोध के निष्कर्षों से पता चलता है, कि 2019 में वयस्कों के बीच डिफाइन्ड डेली डोज (प्रतिदिन डोज की दर) 5,071 मिलियन रही। शोध के अनुसार भारत में 47.1 प्रतिशत एंटीबायोटिक दवाओं को बिना केंद्रीय औषधि नियंत्रक की मंजूरी के इस्तेमाल किया गया।