अर्थव्यवस्था की कसौटी

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— शिवानंद तिवारी —

ब्रिटेन की आबादी जहां सात करोड़ से भी कम है। वहीं हमारी आबादी एक सौ बत्तीस करोड़ के आसपास है। लेकिन क्या हमारे देश की अर्थव्यवस्था का आकार ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था से बड़ा हो गया इससे हमारे देश की आर्थिक हालत भी ब्रिटेन से बेहतर हो गई? असल सवाल तो यही है।

ह सच है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था का आकार ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के आकार से बड़ा हो गया है। भाजपा के लोग इसे प्रधानमंत्री के नेतृत्व की उपलब्धि के रूप में पेश कर रहे हैं। हमारे देश के अर्थशास्त्री पहले से ही इसका अनुमान लगा रहे थे। उनके मुताबिक तो 2019 में ही हमारी अर्थव्यवस्था का आकार ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के आकार से बड़ा हो जाना चाहिए था। इसका एक बड़ा कारण तो ब्रिटेन की आबादी के मुकाबले हमारे देश की आबादी बहुत बड़ा होना है।

ब्रिटेन की आबादी जहां सात करोड़ से भी कम है। वहीं हमारी आबादी एक सौ बत्तीस करोड़ के आसपास है। लेकिन क्या हमारे देश की अर्थव्यवस्था का आकार ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था से बड़ा हो गया इससे हमारे देश की आर्थिक हालत भी ब्रिटेन से बेहतर हो गई? असल सवाल तो यही है।

किसी भी देश के नागरिकों की आर्थिक हालत कैसी है इसका अनुमान उस देश के लोगों की प्रति व्यक्ति आय के आधार पर लगाया जाता है। जहां तक ब्रिटेन का सवाल है वहाँ प्रति व्यक्ति आय पैंतालीस हजार डॉलर से उपर है। जबकि हमारे देश में यह प्रति व्यक्ति दो हजार डॉलर के आसपास है।

यह आँकड़ा ही बता रहा है कि समृद्धि के मामले में ब्रिटेन के समक्ष हम कहीं नहीं ठहरते हैं। लज्जित करनेवाली इस हकीकत को छुपा कर भाजपा प्रचार माध्यमों का इस्तेमाल कर प्रधानमंत्री की छवि की चकाचौंध पैदा कर जनता को भ्रमित करने का अभियान चला रही है।

जबकि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भारत में कुपोषण के शिकार पाँच वर्ष से कम आयु वाले दस लाख बच्चे हर साल मरते हैं। उसके मुताबिक कुपोषण के मामले में दक्षिण एशिया में भारत की हालत अत्यंत चिंताजनक है। इस मामले में हमसे बेहतर हालत बांग्लादेश और नेपाल की है। भाजपा लज्जित करने वाली इस सच्चाई पर परदा डाल कर प्रचार माध्यमों के जरिए विकास का झूठा ढोल पीट कर जनता को गुमराह करने का अभियान चला रही है। जरूरत है इस अभियान की असलियत से लोगों को रूबरू कराने की।


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