— ललित मौर्य —
यूं तो हवाई जहाजों ने दुनिया को बहुत छोटा कर दिया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह सुहाना सफर जलवायु के दृष्टिकोण से काफी महंगा है। इस पर यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन डिएगो के स्कूल ऑफ ग्लोबल पॉलिसी एंड स्ट्रैटेजी द्वारा किए नए अध्य्यन से पता चला है कि वैश्विक उड्डयन उद्योग से हर साल औसतन करीब 100 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जित हो रही है। जो जलवायु के दृष्टिकोण से एक बड़ा खतरा है।
20वीं सदी की शुरुआत में जब राइट ब्रदर्स ने अपनी पहली उड़ान भरी थी। उसके बाद से हवाई जहाजों ने पूरी दुनिया में क्रांति ला दी थी। सीमाएं सिकुड़ गई और लोगों को धरती छोटी लगने लगी। इसने दुनिया को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया, लेकिन साथ ही इसकी कीमत हमें पर्यावरण और जलवायु के रुप में चुकानी पड़ रही है।
देखा जाए तो हर साल एविएशन इंडस्ट्री जितना उत्सर्जन कर रही है वो जापान द्वारा किए जा रहे कुल उत्सर्जन के बराबर है जोकि दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के है। हालांकि दुनिया भर में सरकारें कारों, ट्रकों, बसों से होनेवाले उत्सर्जन को कम करने के प्रयास कर रहीं हैं जिसके लिए इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे विकल्पों को बढ़ावा दिया जा रहा है। साथ ही ऊर्जा क्षेत्र में भी अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने की बात करी जा रही हैं।
हर साल 2.5 फीसदी की दर से बढ़ रहा है इस उद्योग का कार्बन फुटप्रिंट
इसके बावजूद हवाई परिवहन तकनीकी रूप से अभी भी अपने पुराने ढर्रे पर ही चल रहा है जिसका नतीजा है कि महामारी के दौरान आए ठहराव को छोड़ दें तो इस उद्योग से होनेवाला उत्सर्जन पिछले दो दशकों से हर साल 2.5 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। इतना ही नहीं यदि इसपर ठोस कदम न उठाए गए तो आनेवाले 30 वर्षों में इससे उतना उत्सर्जन होगा जितना इस उद्योग ने अपने पूरे इतिहास में नहीं किया।
ऐसे में जर्नल नेचर में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जलवायु संकट पर विमानन के बढ़ते प्रभाव को सीमित करने के लिए कड़े कदम उठाने की बात कही है। इस बारे में यूसी सैन डिएगो के स्कूल ऑफ ग्लोबल पॉलिसी एंड स्ट्रेटेजी और इस अध्ययन से जुड़े प्रोफेसर डेविड विक्टर का कहना है कि आज सरकारें और कंपनियां जिन रणनीतियों का अनुसरण कर रही हैं वो जानी पहचानी तकनीकों पर निर्भर हैं। देखा जाए तो यह दृष्टिकोण अदूरदर्शी लगता है, क्योंकि इनमें से कई प्रौद्योगिकियां बड़े पैमाने पर काम नहीं करती हैं। उनके अनुसार बढ़ते वैश्विक तापमान पर इस उद्योग के प्रभावों को सीमित करने के लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत है। इस वास्तविकता को जितना लंबा टाला जाएगा, प्रभावी समाधान खोजना उतना ही मुश्किल होगा।
गौरतलब है कि इस महीने 27 सितम्बर से 08 अक्टूबर के बीच कनाडा के मॉन्ट्रियल में अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (आईसीएओ) की त्रैवार्षिक होनेवाली है। इसके एजेंडे में ग्लोबल वार्मिंग पर इस उद्योग के बढ़ते प्रभाव को सीमित करना शामिल है। इस सभा में 193 देशों के मंत्री पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप, उत्सर्जन में कटौती करने के लिए उद्योग-व्यापी लक्ष्य पर बातचीत करने का प्रयास करेंगे।
(डाउन टु अर्थ से साभार)