26 सितंबर। कोरोना महामारी में बहुत से लोगों ने अपने रोजगार गंवाए। इससे उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। अब इसका असर उनके बच्चों की पढ़ाई पर दिखाई दे रहा है। पारिवारिक स्थिति खराब होना, घरेलू कार्य और परिजनों के साथ मजदूरी करने से कई बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं। समग्र शिक्षा कार्यक्रम पर शिक्षा मंत्रालय के तहत परियोजना मंजूरी बोर्ड की वर्ष 2022-23 की कार्य योजना संबंधी बैठकों के दस्तावेजों से सामने आया है, कि देश के एक दर्जन से अधिक राज्यों में माध्यमिक यानी 10वीं के स्तर पर छात्रों के बीच में ही पढ़ाई छोड़ने (ड्रॉपआउट) की दर राष्ट्रीय औसत (14.6 प्रतिशत) से अधिक है। इनमें झारखंड, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार, कर्नाटक, त्रिपुरा, नगालैंड आदि शामिल हैं। केंद्र सरकार ने इन राज्यों को विशेष कदम उठाने का सुझाव दिया है।
सरकार नई शिक्षा नीति में वर्ष 2030 तक स्कूली शिक्षा के स्तर पर 100 प्रतिशत नामांकन दर हासिल करना चाहती है, और बच्चों के बीच में पढ़ाई छोड़ने को इसमें बाधा मान रही है। पीएबी के अनुसार, बिहार में माध्यमिक स्तर पर 2020-21 में स्कूल छोड़ने की दर 21.4 फीसदी, गुजरात में 23.3 फीसदी, मध्य प्रदेश में 23.8 फीसदी, ओडिशा में 16.04 फीसदी, झारखंड में 16.6 फीसदी, त्रिपुरा में 26 फीसदी और कर्नाटक में 16.6 फीसदी दर्ज की गई। वर्ष 2020-21 में उत्तर प्रदेश में माध्यमिक स्तर पर 12.5 प्रतिशत छात्रों ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी जिसमें लड़कों का औसत 11.9 और लड़कियों का 13.2 प्रतिशत है।
‘संयुक्त राष्ट्र बाल कोष’ के हाल के एक सर्वेक्षण में लड़कियों के बीच में स्कूल छोड़ने के कारणों में यह सामने आया, कि 33 प्रतिशत लड़कियों की पढ़ाई घरेलू कार्य करने और 25 प्रतिशत लड़कियों की पढ़ाई शादी के कारण छूट गयी है। कई जगहों पर यह भी पाया गया, कि बच्चे स्कूल छोड़ने के बाद परिजनों के साथ मजदूरी या लोगों के घरों में सफाई का काम करने लगे। विदित हो, कि भारत में आज भी काफी बच्चे या तो शिक्षा से महरूम हैं या फिर आर्थिक परिस्थितियों की वजह से पढ़ाई पूरी होने से पहले ही स्कूल छोड़ देते हैं।