— श्रवण गर्ग —
महात्मा गांधी का विचार और उनकी जरूरत वर्तमान की विभाजनकारी राजनीति के लिए चरखे के बजाय मशीनी खादी से बुनी गई ऐसी नकाब हो गई है जिसके पीछे उनकी सहिष्णुता, अहिंसा और लोकतंत्र का मजाक उड़ानेवाले क्रूर और हिंसक चेहरे छुपे हुए हैं। ये चेहरे गांधी विचार की जरा-सी आहट को भी किसी महामारी की दस्तक की तरह देखते हैं और अपने अनुयायियों को उसके प्रतिरोध के लिए तैयार करने में जुट जाते हैं। यही कारण है कि ग्वालियर में हत्यारे नाथूराम गोडसे की प्रतिमा की बिना किसी विरोध के प्राण-प्रतिष्ठा हो जाती है और अलीगढ़ में राष्ट्रपिता के पुतले पर सार्वजनिक रूप से गोलियाँ चलाकर तीस जनवरी 1948 की घटना का गर्व के साथ मंचन कर दिया जाता है।
दक्षिण अफ्रीका की 7 जून 1893 की घटना की तरह अगर आज की तारीख में कोई सवर्ण किसी मोहनदास करमचंद गांधी को ट्रेन से उतारकर प्लेटफार्म पर पटक दे तो कितने लोग उनकी मदद के लिए आगे आने की हिम्मत करेंगे, दावे के साथ नहीं कहा जा सकता। विदेशों में बसनेवाले भारतीय या एशियाई मूल के नागरिक आए-दिन अपने ऊपर होनेवाले नस्लीय हमले चुपचाप सहते रहते हैं जिनमें लूट और हत्याएँ भी शामिल होती हैं। इन हमलों के खिलाफ कहीं कोई छटपटाहट नहीं नजर आती।
अलग-अलग दलों और धड़ों में बँटा देश का राजनीतिक नेतृत्व गांधी और उनके विचारों को काफी पीछे छोड़ चुका है। उसके लिए जरूरत सिर्फ गांधी के आश्रमों (सेवाग्राम और साबरमती) के आधुनिकीकरण या उन्हें भी ‘सेंट्रल विस्टा’ जैसा ही कुछ बनाने की बची है। गांधी के अहिंसक ‘डांडी मार्च‘ को हिंसक ‘डंडा मार्च’ में बदल दिया गया है।
अमेरिका और योरप स्थित तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थान मानवाधिकारों, धार्मिक सहिष्णुता, नागरिक-स्वतंत्रता, मीडिया की आजादी और लोकतंत्र आदि विषयों को लेकर दुनिया भर के देशों की जो प्रावीण्य सूची (ग्लोबल इंडेक्स ) हर साल जारी करते हैं उसमें कई क्षेत्रों में भारत का स्थान लगातार नीचे जा रहा है पर नेतृत्वकर्ताओं को महात्मा गांधी के विचार से ज्यादा भरोसा अपने प्रतिबद्ध मतदाताओं की ताकत पर है।
एक राष्ट्र के रूप में नागरिकों को जिस तरह के संवेदनाशून्य रोबोटों में ढाला और प्रशिक्षित किया रहा है, उनके कदमों में जिस तरह की तेजी और स्वरों में जैसी तीक्ष्णता लाई जा रही है, भविष्य की सम्भावनाओं को लेकर वह खौफ उत्पन्न करती है।
अपने एक आलेख में मैंने एक डरे हुए राष्ट्र के नागरिकों जैसी मानसिकता का जिक्र करते हुए उल्लेख किया था कि हम अपनी इस शर्म को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने में संकोच कर रहे हैं कि एक विचार के रूप में गांधी की जरूरत हमें नहीं बची है। हमारे शिखर पुरुषों ने नागरिकों को स्वतंत्रता संग्राम के नए नायक और स्व-रचित इतिहास के पन्ने सौंप दिए हैं। जासूसी के आयातित उपकरणों के मार्फत नागरिकों पर नजर भी रखी जा रही है कि वे क्या पढ़, सुन और बोल रहे हैं।
किसी समय अपनी कमाई से घर चलाने वाले पिता को जैसे उनके सेवा-निवृत्त होते ही पहले ड्राइंग रूम से हटा कर पीछे के किसी कमरे और फिर वृद्धाश्रम में स्थानांतरित कर दिया जाता है वैसे ही राष्ट्र के विकास की अंतरराष्ट्रीय उड़ान के लिए गांधी को भी एक गैर-जरूरी सामान या ‘एक्सेस बैगेज’ साबित किया जा रहा है। इस काम की शुरुआत आजादी के सूर्योदय के पहले ही तब हो गई थी जब नवम्बर 1946 में गांधी को साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलस रहे अविभाजित बंगाल के एक हिस्से नोआख़ली की यात्रा पर जाना पड़ा था। गांधी को कोई चार महीने वहाँ रहना पड़ा था और इसी बीच दिल्ली में राष्ट्र के विभाजन की कार्रवाई पूरी कर ली गई। धर्म को पहले राष्ट्र के विभाजन का हथियार बनाया गया था और अब उसका इस्तेमाल नागरिक-समाज को बाँटने के लिए किया जा रहा है।
गांधी के होने की जरूरत अब इसलिए बढ़ती जाएगी कि हिंसा के इस्तेमाल को सत्ता की प्राप्ति और सत्ता में बने रहने का आजमाया हुआ हथियार स्थापित कर दिया गया है। पिछले साल अमेरिका में इसका प्रयोग हुआ था। अब ब्राजील में होने जा रहा है। दक्षिण अमेरिका, यूरोप और एशिया के कई देश कतार में हैं। वीरों का नया आभूषण अहिंसा के स्थान पर हिंसा बन गया है।
अहिंसा के प्रति सैद्धांतिक रूप से प्रतिबद्ध निहत्थे नागरिक राज्य की संगठित हिंसा का मुकाबला सिर्फ गांधी के हथियार से कर पाने में ही सक्षम हो सकेंगे।
सत्ताओं की राजनीतिक जरूरत के लिए विभाजन की नई विभीषिकाओं को जन्म दिए जाने की आशंकाओं के बीच हो रही साहसिक ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को इन उम्मीदों के साथ नहीं देखा जा रहा है कि राहुल गांधी आज के समय के महात्मा गांधी हैं और उनके द्वारा धारण किए जानेवाले महँगे टी-शर्ट में भी लोगों को हाथ से कते सूत से बुनी बापू की धोती के दर्शन हो रहे हैं बल्कि इसलिए कि युवा नेता के स्वागत के लिए सड़कों पर उमड़ती भीड़ विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ अहिंसा को हथियार बनाकर खड़े होने के महात्मा गांधी के साहस की पुनर्स्थापना कर रही है।