— प्रोफेसर राजकुमार जैन —
खबर मिली है कि सत्यपाल मलिक मेघालय के गवर्नर पद से फारिग होकर अपने गांव हिसावदा पहुंच गए। साथ ही यह भी पता चला कि बरसों बरस एमएलए, एमपी केंद्र में मंत्री, कई सूबों में राज्यपाल के पद पर रहकर अब तक की कुल संपत्ति अर्थात 5 कुर्ते, पजामे उसको सहेज कर वापस लौटे हैं।
उनके साथ मेरा तकरीबन 56 साल पुराना रिश्ता रहा है। छात्र जीवन में ही समाजवादी युवजन सभा में साथ हो गया था। वह मेरठ कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष थे, मैं दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ का उपाध्यक्ष था। कई साल एकसाथ सड़क, शिक्षण शिविरों, जलसे, जुलूसो संघर्षों, जेल में गुजारे हैं। उसकी एक लंबी फेहरिस्त है। सोशलिस्ट तहरीक की फाकामस्ती इस हद तक थी कि 1967 में इंदौर में समाजवादी युवजन सभा का राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित था, जिसमें किशन पटनायक को अध्यक्ष तथा जनेश्वर मिश्र को महासचिव चुना गया था। सम्मेलन की समाप्ति के बाद दिल्ली लौटने का किराया जेब में नहीं था। मध्य प्रदेश की संविद सरकार में सोशलिस्ट मंत्री आरिफ बेग इंदौर के रहने वाले थे, यह सोच कर कि वह वापसी का टिकट करवा देंगे उनके घर पर मैं और सत्यपाल पहुंचे, परंतु पता चला कि वह तो भोपाल गए हुए हैं। किसी तरह दिल्ली वापसी के टिकट का बंदोबस्त किया।
इंकलाबी जज्बे का आलम यह था कि उनकी नयी नयी शादी हुई थी, जिसमें हम भी शामिल थे। पत्नी डॉक्टर इकबाल कौर मलिक जो कि प्रोफेसर थी, वह भी दिल्ली में सोशलिस्टों द्वारा जावेद आलम बनाम जयंती गुहा प्रकरण में कनॉट प्लेस में प्रदर्शन करते हुए हमारे साथ गिरफ्तार होकर तिहाड़ जेल की बंदी हो गई थी।
नवंबर 1966 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया( मार्क्सवादी) तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े युवा संगठनों समाजवादी युवजन सभा, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया तथा ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन ने छात्रों युवाओं के सवालों को लेकर संसद के बाहर 18 नवंबर को संयुक्त विशाल प्रदर्शन करने का निर्णय लिया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सत्यपाल मलिक तथा दिल्ली में इसकी तैयारी की जिम्मेदारी युवजन सभा की ओर से मुझे सौंपी गई थी। दिल्ली में रैली को लेकर माहौल बहुत गरमाया हुआ था। उस समय के गृह उपमंत्री विद्याचरण शुक्ल के निर्देश पर दिल्ली की सरहद में दिल्ली से बाहर के छात्रों युवकों को घुसने से रोक लगा दी गई थी, रेलवे स्टेशन बस अड्डे पर पहरा बैठा दिया गया था।
दिल्ली विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर पुलिस की पिकेटिंग लगी हुई थी, विश्वविद्यालय बंद कर दिया गया, दिल्ली विश्वविद्यालय पुलिस छावनी में तब्दील हो गया था। प्रदर्शन से पहले सूचना मिली कि युवजन सभा के नेताओं को डॉक्टर लोहिया के सरकारी निवास स्थान 7 गुरुद्वारा रकाबगंज पर बुलाया गया है। मैं, सत्यपाल मलिक, प्रोफेसर विनय कुमार, बृजभूषण तिवारी, सत्यदेव त्रिपाठी तथा अन्य साथी डॉ साहब से मिलने के लिए गए। वहॉं पर डॉ साहब ने बताया कि कम्युनिस्ट पार्टी से सूचना मिली है, वह चाहते हैं कि प्रस्तावित मार्च को टाल दिया जाए क्योंकि कुछ दिन पहले ही संसद पर गौ रक्षा आंदोलन के प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की गोली चलने से कई साधु मारे गए थे, उसके दोहराने की संभावना कम्युनिस्टों को थी।
पहले डॉक्टर लोहिया ने हमसे पूछा, तुम लोगों का क्या इरादा है? हम सभी ने कहा कि प्रदर्शन तो होना ही चाहिए, डॉक्टर लोहिया भी यही चाहते थे। उसी शाम को कम्युनिस्ट पार्टी के नेता तथा संसद सदस्य भूपेश गुप्त के फिरोजशाह रोड के घर पर स्टूडेंट्स फेडरेशन तथा समाजवादी युवजन सभा के नेताओं की एक संयुक्त बैठक बुलाई गई थी। बैठक में सोशलिस्टों की ओर से प्रोफेसर विनय कुमार, बृजभूषण तिवारी, सत्यदेव त्रिपाठी, सत्यपाल मलिक और मैं पहुंचे थे। स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की ओर से विमान मित्र (जो बाद में बंगाल में लेफ्ट फ्रंट की सरकार के समय उसके संयोजक बने) एआईएसएफ की ओर से रंजीत गुहा, डॉक्टर योगेंद्र दयाल तथा कुछ और प्रतिनिधि हाजिर थे। कम्युनिस्टों ने बैठक में कहा कि प्रदर्शन को स्थगित कर देना चाहिए, क्योंकि हमें पहले से ही पता था, हमारे नेताओं ने घोषणा की कि प्रदर्शन तो होकर ही रहेगा।
अभी बातचीत चल ही रही थी कि भूपेश गुप्त के घर के गेट पर एक पुलिस जीप तथा कैदियों को जेल ले जाने वाली लारी वहां पहुंची। हमें माजरा समझ आ गया, प्रोफेसर विनय कुमार ने कहा कि सत्यपाल और राजकुमार तुम दोनों फटाफट पीछे के दरवाजे निकलो क्योंकि तुम्हें कल विश्वविद्यालय में छात्र मार्च आयोजित करना है। मैं और सत्यपाल मलिक पीछे की ओर दौड़े परंतु पीछे दरवाजे पर ताला लगा हुआ था, हड़बड़ाहट में 1 मंजिले मकान की बरसाती छत पर हम चढ़ गए, नीचे पुलिस सोशलिस्टों की गिरफ्तारी के वारंट लेकर वहां पहुंची थी। सत्यपाल मलिक ने कहा लघुशंका बहुत तेजी से आ रही है; और कोई चारा न देख कर छत से बरसाती पानी के निकासी के लिए बने पाइप के पास उन्होंने अपने को हल्का किया। हमें इस बात की शंका हुई कि यह नाली खुले में गिरती है, वहां दो तीन पुलिस वाले खड़े हैं, उनको पता चल जाएगा परंतु उनकी नजर वहां पर नहीं पड़ी। नीचे साथियों को गिरफ्तार करके पुलिस तिहाड़ जेल ले गई।
डॉ लोहिया और अनेकों सोशलिस्ट नेता पहले ही गिरफ्तार हो चुके थे। मैं वहां से बचता बचाता विश्वविद्यालय पहुंचा, वहां से हिंदू कॉलेज के हॉस्टल में चांद जोशी जो बाद में हिंदुस्तान टाइम्स के बड़े पत्रकार तथा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के लंबी अवधि तक रहे महासचिव पीसी जोशी के पुत्र थे, के कमरे में जाकर छुप गया। अगले दिन नियत घोषणा अनुसार विश्वविद्यालय में 5-6 साथियों जिसमें रमेश गौड़ (साहित्यकार एवं वरिष्ठ पत्रकार, नवभारत टाइम्स) तथा मनजीत सिंह गांधी (वरिष्ठ अधिवक्ता) के साथ प्रदर्शन करते हुए गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छात्र, नौजवानों में सत्यपाल मलिक कल्ट की नकल होती थी। धाक कितनी थी कि ऐसा अजूबा हुआ, जो देखने सुनने में कम ही मिलेगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय के एक नामी दयाल सिंह कॉलेज के हमारे सोशलिस्ट साथी कैलाश शर्मा जो अब अमेरिका में निवास करते हैं उन्होंने चुनाव में आज हिंदुस्तान के बड़े नामवर वकील, दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट तथा जो कानूनी जगत की बड़ी हस्ती हैं, अमरजीत सिंह चंडोक को कॉलेज छात्र संघ के चुनाव में हराकर अध्यक्ष बने थे। उस वक्त परंपरा थी कि कालेज छात्र संघ का उदघाटन किसी बड़ी हस्ती, खास तौर पर केंद्र का कोई मंत्री द्वारा होना शान माना जाता था। परंतु सोशलिस्टों ने फैसला किया की छात्र संघ का उदघाटन सत्यपाल मलिक करेंगे। हंगामा मच गया, कॉलेज के प्रिंसिपल शिक्षकों तथा छात्र नेताओं ने विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश के एक कालेज छात्रसंघ का अध्यक्ष कैसे दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज जैसे संभ्रांत कॉलेज का उदघाटन कर सकता है। परंतु सत्यपाल मलिक ने ही उदघाटन किया।
उस दिन उन्होंने जो भाषण दिया, हॉल में कभी तालियों की गड़गड़ाहट, कभी सन्नाटा, कभी ठहाका सुनाई पड़ता था। आलम यह हुआ कि सभा के बाद कॉलेज के लड़के और लड़कियां सत्यपाल मलिक से मिलने के लिए आतुर हो उठे, जबरदस्त समा बंध गया था।
साथी सत्यपाल के राजनीतिक जीवन की एक लंबी यात्रा है। एक दौर ऐसा भी आया कि जब उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया, तो हम भी उनकी बुराई करने में किसी से पीछे नहीं थे।
मैंने कई बड़े लोगों को देखा है कि वक्त की नजाकत के मुताबिक अपने देवता, आदर्श पुरुष को छोड़ या छुपा लेते हैं, सत्यपाल मलिक ने तमाम उम्र, कैसी भी राजनीतिक स्थिति, संगति में गुजारे हों, किसी भी पार्टी या पद पर रहे हों, परंतु इनकी बैठक में डॉ राममनोहर लोहिया का फोटो लगा रहा।
गवर्नर के पद पर रहते हुए सैकड़ों करोड़ की मिलने वाली रिश्वत को मय सबूत प्रधानमंत्री से शिकायत करने से लेकर गरीबों, मजदूरों, बेकसूरों की दुख गाथाओं को पद पर रहते हुए सरकारी समारोह में उजागर किया। किसानों के सवाल पर एक राज्यपाल की हैसियत का आदमी उसको राज्यपाल बनाने वाले प्रधानमंत्री को सार्वजनिक रूप से ललकार, लानत भेजता रहा। इसकी भी कोई दूसरी मिसाल शायद ही मिले।
अंत में चाहूंगा कि सोशलिस्ट तहरीक की घुट्टी, खासतौर से लोहिया से ज्ञान बेखौफ होकर जद्दोजहद करने की जो तालीम मिली है, अब समय आया है उस कर्ज को उतारने का।समाजवादी साहित्य के प्रचार-प्रसार, फैलाव के साथ ही नई पीढ़ी के नौजवानों को उसमें शामिल करने का काम बखूबी करोगे इसी आशा विश्वास के साथ।