छिंदवाड़ा : 7 दिवसीय पदयात्रा का समापन

0

माचागोरा डूब प्रभावित 31 गांव के विस्थापित किसानों ने ज्ञापन सौपा

नफरत छोड़ो, संविधान बचाओ अभियान’ आगे आंदोलन में परिवर्तित होगा – मेधा पाटकर

सर्वोच्च न्यायालय विस्थापितों के साथ अवश्य न्याय करेगा – संजय पारिख

न्यायालय से सड़क तक संघर्ष करेंगे -आराधना भार्गव

14अक्तूबर को सिवनी , 16,17अक्टूबर को झाबुआ, 15 नवंबर को नीमच, 20 नवंबर को मुलतापी की पदयात्राओं में शामिल होंगे डॉ सुनीलम

8 अक्टूबर। नफरत छोड़ो संविधान बचाओ 7 दिवसीय पदयात्रा का समापन का छिंदवाड़ा बस स्टैंड पर संपन्न हुआ।माचागोरा डूब प्रभावित 31 गांवों के विस्थापित किसानों ने एसडीएम के माध्यम से मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। इस अवसर पर नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने कहा कि ‘नफरत छोड़ो, संविधान बचाओ अभियान’ आगे आंदोलन में परिवर्तित होगा।

सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कहा कि उच्चतम न्यायालय विस्थापितों के साथ अवश्य न्याय करेगा।

किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक डॉ सुनीलम ने बताया कि 14अक्टूबर को सिवनी, 16,17अक्टूबर को झाबुआ, 15 नवंबर को नीमच तथा 20 नवम्बर को मुलतापी की पदयात्राओं में शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा ने सफल संघर्ष का जो मॉडल पेश किया है वह अनुकरणीय है।

किसान संघर्ष समिति की वरिष्ठ उपाध्यक्ष एड. आराधना भार्गव ने समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि पेंच व्यपवर्तन परियोजना से प्रभावित 31 गाँवों के किसान, जिनकी पूर्णतः या आंशिक भूमि अधिग्रहित की गई है, उन किसानों को सम्पूर्ण मुआवजा प्रदान नहीं किया गया है। किसानों को परिसम्पत्ति का मुआवजा भी नहीं दिया गया है। किसानों के खेत में जो पेड़ लगाये गये थे उनका भी मुआवजा नहीं गया है, विस्थापित परिवार के किसानों के बच्चों को आज दिनांक तक रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया है। आदिवासी ग्राम जो पेंच व्यपवर्तन परियोजना में पूर्णतः डूब चुके हैं, एक भी परिवार को जमीन के बदले जमीन उपलब्ध नहीं कराई गई है। पुनर्वास स्थल पर मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। आदिवासी जिनकी जमीन एवं मकान अधिग्रहित किये गए हैं उन्हें किसी भी प्रकार का रोजगार भी उपलब्ध नहीं कराया गया है। पेंच व्यपवर्तन परियोजना से प्रभावित आदिवासी ग्रामों को कोई विशेष पैकेज भी नहीं दिया गया है, आदिवासी ग्रामों को सबसे कम मुआवजा दिया गया है। परियोजना से प्रभावित किसानों को उनके द्वारा आयकर, स्टांप शुल्क या फीस से भी छूट प्रदान नहीं की गयी है। परियोजना में एक एक गाँव से लगभग एक एक लाख पेड़ काटे गये हैं, उनके एवज में पेड़ नहीं लगाये गए हैं। परियोजना से प्रभावित किसान प्रतिदिन जिलाधीश कार्यालय में आकर अपनी समस्याओं से जिलाधीश को अवगत करा रहे हैं, किन्तु उनकी समस्याओं का निदान नहीं किया जा रहा है। परियोजना से प्रभावित गाँवों में लगभग कच्चे मकान बने हुए हैं, बांध के किनारे होने के कारण नमी बने रहने से मकान गिर रहे हैं, किन्तु उनका कोई मुआवजा किसानों को नहीं दिया जा रहा है।

आराधना भार्गव ने आगे बताया कि ने आवेदन पत्र देने पर कहा जाता है, कि परियोजना की फाइल बंद कर दी गई है, अब किसानों को कुछ नहीं मिलेगा! पेंच नदी के किनारे बसे हुए गाँव में मछुआरों का मुख्य व्यवसाय मछली पालन तथा रेत खेती था, पेंच बांध बनने के बाद मछुआरों को रेत खेती का कोई मुआवजा प्रदान नहीं किया गया तथा मछली का ठेका भी छिन्दवाड़ा के मछुआरों को नहीं दिया गया। विस्थापित परिवारों के युवाओं को रोजगार न दिये जाने के कारण उनका विवाह नहीं हो पा रहा है, युवाओं के पास रोजगार न होने कारण वे अत्यधिक मानसिक तानव से गुजर रहे हैं, तथा आत्महत्या करने पर मजबूर हैं और पेंच व्यपवर्तन परियोजना की फाइल बंद कर दी गई है।

किसान संघर्ष समिति की ओर से पेंच व्यपवर्तन परियोजना के विस्थापितों के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने अपने संदेश में कहा कि 10 अक्टूबर को नोटिस के जवाब में शपथ पत्र के माध्यम से राज्य सरकार द्वारा पुनर्वास को लेकर जो आंकड़े उपलब्ध कराए जाएंगे उनकी वस्तुस्थिति जमीनी हकीकत के आधार पर मूल्यांकन किया जाएगा। जिसके बाद हम उम्मीद करते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय विस्थापितों के सम्पूर्ण मुआवजे और पुनर्वास हेतु आवश्यक निर्देश देगा।

किसान संघर्ष समिति ने जिलाधीश को, एसडीएम को, जो ज्ञापन सौंपा है उसमें अतिवृष्टि से नष्ट हुई फसलों का मुआवजा और फसल बीमा के मुआवजे हेतु एक सप्ताह के भीतर सर्वे कराकर एक माह में भुगतान की मांग की गई है।

पदयात्रा के समापन के अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर एवं सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता का संदेश विस्थापितों को सुनाया गया।

मेधा पाटकर ने कहा कि ‘नफरत छोड़ो, संविधान बचाओ’ अभियान यात्रा के तहत आप सब छिंदवाड़ा के किसान, मजदूर, मछुआरे एड.आराधना भार्गव जी के साथ डॉ सुनीलम जी की प्रेरणा और मार्गदर्शन से स्थानीय किसान नेताओं ने 7 दिन की पदयात्रा की है, वह बहुत ही अहम है। निश्चित ही आपने समाज में एकता और एकजुटता की भावना को इस प्रकार से बोया होगा जिसकी फसल निश्चित ही समाज को मिलेगी। संवैधानिक अधिकार, जिससे आज बहुत सारे किसान मजदूर वंचित हैं, पेंच के विस्थापितों की हालत सभी जगह एक जैसी है। नर्मदा में 37 साल संघर्ष करके ही कुछ पाया है, पर आज भी संघर्ष और निर्माण का कार्य जारी है। सरकारें बहुत सारे गलत हथियार जन आंदोलनों को दबाने के लिए इस्तेमाल करती रही हैं लेकिन आप लोगों ने हिम्मत से संघर्ष के रास्ते चलकर गांव-गांव, गली-गली पहुंचकर जो संदेश देना शुरू किया है, वह एक अभियान के तहत है, केवल यात्रा से वह समाप्त नहीं होगा और अभियान एक आंदोलन में परिवर्तित होगा, यह हमारी अपेक्षा है। राष्ट्रीय स्तर पर 300 जिलों में 75 किलोमीटर की यात्राएं होने वाली हैं। समापन कार्यक्रम के दौरान 31ग्रामों की किसान संघर्ष समितियों का गठन किया गया।

मंच का संचालन एड. आराधना भार्गव ने किया। सभा को किसान संघर्ष समिति के राधेश्याम वर्मा, राकेश वर्मा, रामनाथ पटेल, धरमसिंह वर्मा, नीतेश रघुवंशी, अर्जुन राय, तुलसीराम चन्द्रवंशी, अरविंद उईके, शेख मुस्तफा मंसूरी, ओमप्रकाश शर्मा, गम्पू यादव, हरीराम वर्मा, आत्माराम चन्द्रवंशी, देवेन्द्र चंन्द्रवंशी, मेघराज वर्मा, हंसलाल वर्मा, सेवकराम पटेल, मोवेश मेसराम, गोविंद वर्मा, कमलेश चंद्रवंशी, नन्हेलाल चन्द्रवंशी, आकाश पटेल, सलमान मंसूरी, मुकेश वर्मा, राधेश्याम चन्द्रवंशी, महेश कुमार सिसोदिया, बुध्दिलाल चन्द्रवंशी, रगडू पटेल, आसाराम इवनाती, श्रीराम धुर्वे, राजकुमार विश्वकर्मा, गौतम पटेल, रामभरोस साहू, श्याम बिहारी बंदेवार, भगत गोसाई, बलराम पटेल, भरोस पटेल, भूरा पटेल, दरेश पटेल, गयागीर गोस्वामी, महेश वर्मा, संतोष चंद्रवंशी आदि नेताओं ने सम्बोधित किया।

Leave a Comment