(यह अब आम जानकारी और अनुभव में है कि देश में इतनी ज्यादा बेरोजगारी पहले कभी नहीं थी। बेरोजगारी का मुद्दा जहां अब कुछ कुछ राजनीतिक विमर्श का विषय बन रहा है, वहीं बेरोजगारी को लेकर युवाओं का आक्रोश भी जब तब देश में कहीं न कहीं फूट पड़ता है। मीडिया भले इस पर पूरी तरह खामोश हो। लेकिन बेरोजगारी को लेकर केवल राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से कुछ हासिल नहीं होगा। समाधान की दिशा में तभी बढ़ा जा सकता है जब आर्थिक नीतियों और प्राथमिकताओं तथा अर्थव्यवस्था के पूरे परिप्रेक्ष्य में बेरोजगारी को समझा जाए और रोजगार को केन्द्र में रखकर नीतियां और प्राथमिकताएं तय की जाएं। इसी उद्देश्य से एक नागरिक पहल के तौर पर विगत 10 जुलाई को सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो अरुण कुमार की अध्यक्षता में ‘जन आयोग’ (पीपुल्स कमीशन) बनाया गया था। बेरोजगारी की समस्या की पड़ताल और सभी के लिए रोजगार उपलब्ध कराने के ध्येय को ध्यान में रखकर जन आयोग ने एक रिपोर्ट तैयार की है जिसे 11 अक्टूबर को, जेपी जयंती के अवसर पर, नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में जारी किया गया। प्रख्यात विधिवेत्ता प्रशांत भूषण के सहयोग से देश में रोजगार के सार्वभौम कानूनी अधिकार का एक विधेयक भी तैयार किया गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जन आयोग की रिपोर्ट और यह प्रस्तावित विधेयक देश में रोजगार के लिए होने वाले आंदोलन को राह दिखाएंगे। इस उम्मीद को बल देने के लिए यह जरूरी है कि उक्त रिपोर्ट और प्रस्तावित विधेयक का अधिक से अधिक प्रसार हो। इसी मकसद से विधेयक का हिंदी मसविदा यहां प्रकाशित किया जा रहा है। इसे अधिक से अधिक शेयर करें।)
रोजगार अधिकार बिल
उद्देश्य और कारण
भारत एक कल्याणकारी राज्य है यह बात हमारे संविधान में दर्ज है, खासकर उसके नीति निर्देशक सिद्धांतों में, और अनुच्छेद 21 में, जिसकी व्याख्या सुप्रीम कोर्ट ने गरिमापूर्ण ढंग से जीने के अधिकार के तौर पर की है। रोजगार का अभाव, जिससे हमारे देश की एक बड़ी आबादी जूझ रही है, गरिमापूर्ण ढंग से जीने की राह में एक सबसे बड़ी बाधा है, और इसलिए, ऐसे कानून की आवश्यकता है जो सभी बालिग और पात्र व्यक्तियों को एक निर्धारित न्यूनतम वेतन पर रोजगार के अधिकार की कानूनी गारंटी देता हो, ताकि राज्य सभी नागरिकों को गरिमामय ढंग से जीने का साधन मुहैया कराने का अपना दायित्व निभा सके।
धारा 1
इस कानून को रोजगार अधिकार अधिनियम कहा जा सकता है।
धारा 2
21 वर्ष और 60 वर्ष के बीच के प्रत्येक नागरिक को, कम से कम न्यूनतम मजदूरी पर तो हर हाल में, रोजगार पाने का अधिकार होगा।
धारा 3
हर राज्य सरकार प्रत्येक जिले में एक जिला रोजगार अधिकारी की नियुक्ति करेगी, जिसके कार्यालय में उस जिले में रहनेवाले नागरिक रोजगार की अपनी मांग पंजीकृत करा सकेंगे। इस पंजीकरण के लिए अर्जी उस कार्यालय में खुद जाकर भी दी जा सकेगी और आनलाइन तरीके से भी।
धारा 4
जिला रोजगार अधिकारी, रोजगार की मांग किए जाने के तीन माह के भीतर, आवेदक को उपयुक्त रोजगार की पेशकश करेगा, ऐसे स्थान पर, जो आवेदक के निवास स्थान से 50 किलोमीटर से ज्यादा दूर न हो।
ऐसे रोजगार के लिए वेतन राज्य द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम नहीं होगा।
ऐसे विकलांग (दिव्यांग) व्यक्तियों को, जिन्हें कोई उपयुक्त रोजगार नहीं दिया जा सकेगा, राज्य विकलांगता भत्ता देगा, जो कि बेरोजगारी भत्ता से हरगिज कम नहीं होगा, और बेरोजगारी भत्ता, निर्धारित न्यूनतम मजदूरी के आधे से कम नहीं होगा।
धारा 5
अगर रोजगार की मांग किए जाने के तीन महीने के भीतर, जिला रोजगार अधिकारी द्वारा रोजगार मुहैया नहीं कराया जाता है, तो राज्य प्रार्थी को बेरोजगारी भत्ता देगा, जो कि निर्धारित न्यूनतम मजदूरी के आधे से कम नहीं होगा।
धारा 6
किसी भी व्यक्ति को रोजगार अधिकार अधिनियम के तहत जो रोजगार दिया जाएगा उसका स्थानान्तरण उस व्यक्ति के निवास स्थान से 50 किलोमीटर के दायरे में किया जा सकेगा।
धारा 7
इस योजना के लिए आवश्यक धन केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों को उपलब्ध कराया जाएगा।
धारा 8
इस योजना का सहभागितापूर्ण सोशल ऑडिट हर साल जिला स्तर पर या उससे नीचे के स्तर पर कराया जाएगा, जैसी अनिवार्यता मनरेगा अधिनियम में है।
धारा 9
इस अधिनियम की योजना को अधिक कारगर बनाने के लिए भारत सरकार और राज्य सरकारें नियम बना सकती हैं। जहां केंद्र सरकार और राज्य सरकार के नियमों में टकराव होगा, वहां केंद्र सरकार के नियम मान्य होंगे।
धारा 10
अगर पहले के किसी अधिनियम के प्रावधान इस अधिनियम के प्रावधानों के आड़े आते हैं तो पूर्व अधिनियम के संबंधित प्रावधान निरस्त माने जाएंगे और इस अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे।