सूखे के बाद अब बाढ़ से पूर्वी उप्र का जन-जीवन अस्त-व्यस्त

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17 अक्टूबर। लगातार भारी बारिश, नेपाल के बांधों से छोड़े गए पानी से बढ़े नदियों के जलस्तर ने उत्तर प्रदेश के पूर्वी तराई क्षेत्रों में बाढ़ की भयानक विभीषिका उत्पन्न कर दी है। बाढ़ के कहर से जन जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। कार्यालय राहत आयुक्त लखनऊ द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, बाढ़ से उत्तर प्रदेश के 18 जिलों के 1,380 गाँव डूब गए हैं। गोरखपुर, श्रावस्ती, गोंडा, बहराइच, लखीमपुर खीरी, महाराजगंज सहित अन्य पूर्वी जिलों में बाढ़ ने जबरदस्त कहर बरपाया है। बलरामपुर को सबसे अधिक प्रभावित जिले के रूप में पहचाना गया है, जहाँ करीब 287 गाँव बाढ़ से प्रभावित हैं। इसके बाद सिद्धार्थनगर जिला अधिक प्रभावित बताया गया है।

नदी के किनारे स्थायी रूप से रहनेवाले सैकड़ों स्थानीय लोग और उनके पशु अब भुखमरी के कगार पर आ गए हैं, बाहर खुले आसमान में सोने को मजबूर हैं। इन जिलों में कई लोगों सहित मवेशी भी बाढ़ में बह गए। बहुत से लोग लापता हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश का किसान दोहरी मार का सामना कर रहा है। एक तरफ जहाँ 50 से अधिक जिलों में सामान्य से कम बारिश से फसलों को क्षति हुई, वहीं दूसरी तरफ फसल तैयार होने के समय हफ्तों की भारी बारिश ने फसलों को नष्ट कर दिया है, और बाढ़ ने तो किसानों और उनके पशुओं का जीना मुश्किल कर दिया है।

प्रभावित जिलों के किसानों ने मीडिया के हवाले से माँग की है कि “सरकार को पहले सूखे के कारण और अब भारी बारिश और बाढ़ के कारण किसानों को हुए नुकसान का उचित आकलन करना चाहिए ताकि उनकी भरपाई की जा सके।” वहीं सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने कृषि और राजस्व विभागों द्वारा बारिश और बाढ़ के कारण किसानों को हुए फसल के नुकसान का आकलन करने के लिए क्षेत्र के सर्वेक्षण का आदेश दिया है। अपर मुख्य सचिव कृषि देवेश चतुर्वेदी ने मीडिया के हवाले से कहा कि “कम बारिश से फसल को हुए नुकसान के आकलन को अभी अंतिम रूप दिया जा रहा है, जबकि भारी बारिश और बाढ़ ने भी कहर बरपाना शुरू कर दिया है। अब हम सूखे और अधिक बारिश दोनों के कारण हुए नुकसान की समग्र रिपोर्ट केंद्र को भेजेंगे।”

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