लोकतंत्र को बचाने का जेपी मार्ग

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— पुनीत कुमार —

धुनिक भारत में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की भूमिका को समझना और उसकी व्याख्या करना बेहद जरूरी जान पड़ता है। आज की शब्दावली में कहें तो जेपी एक समाजवादी नेता होने के अलावा “आंदोलन-जीवी” भी थे। उन्होंने अपने जीवन में तीन बड़े आंदोलनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। पहला, भारत का स्वतंत्रता आंदोलन, दूसरा भूदान आंदोलन और तीसरा बिहार का छात्र आंदोलन, जिसे लोकतंत्र बचाने के जेपी मार्ग के रूप में याद किया जा सकता है। क्या जेपी आज के खतरे से निपटने के लिए कोई तरकीब सुझाते हैं? शायद यह तीन सीख हम उनसे ले सकते हैं –

1. लोकशक्ति राज्यशक्ति से ऊपर

आजादी के बाद गांधी के अलावा, चंद ही स्वतंत्रता आंदोलन नेता ऐसे थे जिन्होंने अपने लिए कोई राजनीतिक गद्दी नहीं चुनी। जयप्रकाश नारायण उनमें से एक थे। सदैव उन्होंने लोकशक्ति को राज्यशक्ति से ऊपर रखा। इंदिरा गांधी की तानाशाही को सड़क पर लोगों की इच्छाशक्ति से परास्त किया। योगेंद्र यादव राजनीति के दो हिस्सों की बात करते हैं- कला और आत्मा। इंदिरा राजनीति की कला में माहिर थीं और जेपी राजनीति की आत्मा को समझते थे। यह शायद उनके बीच का सबसे बड़ा अंतर था। जेपी के ऐसा बनने में गांधी का बहुत बड़ा हाथ था। आज के खतरे को भी लोकशक्ति से ही दूर किया जा सकता है। भारत जोड़ो यात्रा जैसे कुछ प्रयास आज हो रहे हैं, जो लोगों के बीच जाकर, उन्हें सशक्त कर रहे हैं। लोकशक्ति को सुदृढ़ करना चाहते हैं। यह प्रयास कितना कामयाब होगा, भविष्य में देखा जाएगा, परंतु ऐसे और भी प्रयासों की जरूरत है, यह बात स्पष्ट है।

2. संपूर्ण क्रांति केवल राजनीतिक नहीं

हम जानते हैं कि जेपी की संपूर्ण क्रांति अपने भीतर सात क्रांतियों को सम्मिलित करती थी – राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षिक और आध्यात्मिक। क्या यह संपूर्ण क्रांति भारत में आज तक संभव हुई? जी नहीं। क्या इसकी आज कोई आवश्कता है? जी बिलकुल। क्या केवल मौजूदा सरकार को सत्ता (राजनीतिक हल) से हटाकर, लोकतंत्र पर खतरा समाप्त हो जाएगा? जी नहीं, हालांकि यह जरूरी है, पर एकमात्र कदम नहीं है। भारत की अन्य पार्टियां भी दूध की धुली नही हैं। कांग्रेस छत्तीसगढ़ में हसदेव जंगल में क्या कर रही है हम जानते हैं, राजस्थान के मुख्यमंत्री को अडानी के सामने नतमस्तक होता भी देख रहे हैं। इधर, बड़ा हिंदूवादी दिखने के लिए अरविंद केजरीवाल, अंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाएं दोहराने के कारण, अपने एक मंत्री के इस्तीफा देने और उनका इस्तीफा स्वीकार करने पर मौन हैं। इतनी दिक्कत है तो आंबेडकर की तस्वीर क्यों टांगी है, बगल वाली तस्वीर एक नास्तिक की है, याद है ना?

तो हमारे लिए सीख यह है कि राजनीतिक विकल्प के अलावा, एक संपूर्ण विकल्प भी तैयार करें। एक वैचारिक और समाजवादी विकल्प।

3. युवा देंगे जवाब

हम सब जानते हैं कि जब 1974 में बिहार आंदोलन उठ रहा था, तब लोकनायक 72 वर्ष के हो चले थे, और जीवन के काफी वर्ष जेल में बिताने के कारण बीमार रहने लगे थे। फिर भी जब युवाओं ने विनती की तब वह आंदोलन का नेतृत्व करने को राजी हो गए थे। उनको देश के युवाओं के ऊपर बहुत भरोसा था। वह जानते थे कि युवा देश को अच्छी दिशा में मोड़ सकते हैं। उनका गांधी मैदान से नारा, युवाओं के लिए ही था – “जात-पांत तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो। समाज के प्रवाह को, नई दिशा में मोड़ दो।” आज का युवा उनके विश्वास पर खरा उतरता है? मैं नहीं जानता। कुछ युवा खुले तौर पर राजनीतिक विकल्प में भागीदारी दे रहे हैं। जो युवा राजनीति से परे रहना चाहते हैं, वे जेपी की दूसरी सीख पर ध्यान दें और संपूर्ण विकल्प में योगदान दें। यह तीसरी सीख इस देश के लोकतंत्र को बचाने का काम करेगी।

यह तीन सीख का त्रिकोण, शायद आज के भारत में लोकतंत्र को बचाने का जेपी मार्ग कहलाए।

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