18 अक्टूबर। केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा 2020 के क्षेत्रवार भूजल संसाधनों के आकलन में पाया गया, कि पंजाब के अधिकांश जिलों में भूजल का अत्यधिक दोहन किया गया है। कुछ जिलों में भूजल स्तर को अत्यधिक गंभीर रूप में चिह्नित किया गया। मध्य पंजाब के अधिकांश स्थानों पर भूमिगत जलस्तर पहले ही 150-200 मीटर तक नीचे पहुँच चुका है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार, यदि वर्तमान में दोहन निरंतर जारी रहता है, तो पंजाब का भूमिगत जलस्तर वर्ष 2039 तक 300 मीटर से नीचे तक जाने की आशंका है। विशेषज्ञों ने पंजाब का भूजल सूख जाने पर भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए एक बड़े खतरे की चेतावनी दी है। नहर आधारित सिंचाई तकनीकों में सुधार के लिए धान को चरणबद्ध तरीके से हटाने और ब्रिटिश काल की नहर प्रणालियों को फिर से तैयार करने की सिफारिश की जा रही है।
पिछले महीने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की एक निगरानी समिति ने शहीद भगतसिंह नगर (पूर्वनाम नवांशहर) जिले की जिला पर्यावरण योजना की समीक्षा की। समिति ने गिरते भूजल स्तर पर काफी जोर दिया और बताया, कि उपयोग योग्य भूजल जमीन के नीचे 300 मीटर यानी 1,000 फीट की गहराई पर उपलब्ध है। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल पैनल के सदस्य बलबीर सिंह सीचेवाल ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, कि ’17 वर्षों में भूजल की कमी’ के बारे में उनकी भविष्यवाणी अफवाहों पर आधारित नहीं थी। यह केंद्रीय भूजल बोर्ड की 2019 की रिपोर्ट से आया है, जिसमें 2017 तक पंजाब के भूजल की स्थिति का अध्ययन किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है, कि यदि निकासी की वर्तमान दर जारी रही, तो अगले 22 वर्षों के भीतर राज्य का भूजल गायब हो जाएगा।
सीचेवाल ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि “पाँच साल बीत चुके हैं, और पंजाब के भूजल की कमी दर में कोई गिरावट नहीं आई है। हमारे पास सिर्फ 17 साल बचे हैं। स्थिति बहुत नाजुक है। लगातार सरकारों ने इस मुद्दे पर न तो गंभीरता से विचार किया न ही तत्काल ध्यान दिया है। इसे रोकने का समय आ गया है। अन्यथा पंजाब को बर्बाद होने से कोई नहीं रोक सकता।” रिपोर्ट के अनुसार, भूजल स्तर के गिरने की औसत वार्षिक दर लगभग 0.49 मीटर/वर्ष है। मध्य और दक्षिणी पंजाब के अधिकांश जिले जैसे भटिंडा, फतेहगढ़ साहिब, होशियारपुर, जालंधर, मोगा पठानकोट, पटियाला और संगरूर आदि अत्यधिक प्रभावित हैं।
सेवानिवृत्त सिविल अधिकारी कहन सिंह पन्नू, ‘पंजाब वतावरण चेतना लहर’ के वर्तमान संयोजक तथा राज्य में पर्यावरण के मुद्दों को मुख्यधारा में लाने के लिए काम करने वाले एक समूह ने बताया, कि एक निश्चित सीमा तक ही भूमिगत जल निकाला जा सकता है। यह वैज्ञानिक रूप से सत्य है कि 100 मीटर की गहराई में स्थित जलभरे में अच्छी गुणवत्ता वाला पानी उपलब्ध है। यदि जलस्तर 300 मीटर से नीचे चला जाता है, तो पानी की गुणवत्ता अत्यधिक दूषित हो जाती है, जो सिंचाई या पीने के योग्य नहीं होती है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार पहले 100 मीटर में पंजाब का भूजल 2029 तक समाप्त हो जाएगा और 2039 तक यह 300 मीटर से नीचे चला जाएगा।
पंजाब सिंचाई विभाग के साथ वर्षों तक काम करने वाले कहन सिंह पन्नू ने मोंगाबे-इंडिया से कहा, कि मध्य पंजाब में पहले से ऐसे ही बहुत गाँव हैं, जहाँ भूजल पहले ही 100 मीटर से नीचे चला गया है, और 150-200 मीटर तक पहुँच गया है। पन्नू ने कहा, “राज्य के 138 खण्डों में से 109 खण्ड(79 फीसदी) ‘अतिशोषित’ हैं, जिसका स्पष्ट अर्थ है, कि वे तेजी से 300 मीटर की सीमा तक पहुँच रहे हैं।” पन्नू ने आग्रह किया कि भूजल की वर्तमान कमी को राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया जाए क्योंकि पंजाब राज्य भारत का ‘भोजन का कटोरा’ है। उन्होंने कहा कि “पंजाब, देश में गेहूं और चावल दोनों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। अगर पंजाब के खेत बंजर हो जाते हैं, तो यह पूरे देश में एक बड़ी खाद्य सुरक्षा चुनौती पैदा कर देगा। अगर देश चाहता है कि पंजाब, राष्ट्र का पेट भरता रहे, तो इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, इसके समाधान का समय आ गया है।”
पंजाब में मुख्य रूप से दो फसल प्रणालियां हैं : गेहूं और धान। केंद्रीय भूजल बोर्ड की ‘ग्राउंडवाटर इयरबुक’ के अनुसार पंजाब में अधिकांश भूजल का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है। प्रख्यात कृषि विशेषज्ञ सरदार सिंह जोहल ने कहा, “पंजाब में गेहूं की तुलना में धान की फसल जल संसाधनों के अत्यधिक दोहन के लिए जिम्मेदार है।” पिछले 30 वर्षों से धान को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की वकालत कर रहे जोहल ने कहा कि धान, जो कभी पंजाब की मूल फसल नहीं थी, को 1960 के दशक की हरित क्रांति रणनीति के तहत एक सुनिश्चित बाजार खरीद प्रणाली के माध्यम से इस पर लगाया गया था। उनका मत है कि पंजाब, देश को अपनी खाद्य सुरक्षा हासिल करने में मदद कर सकता था, लेकिन इसने खुद को नुकसान पहुँचाया है। उन्होंने सिफारिश की कि धान के कम से कम 50% क्षेत्र को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया जाए। जोहल ने कहा, “पंजाब के 25-27 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सभी किस्मों की धान की खेती की जाती है, जबकि पंजाब में केवल 10-12 लाख हेक्टेयर धान के क्षेत्र के लिए जल संसाधन उपलब्ध हैं। शेष बचे धान के क्षेत्रों को तत्काल समाप्त करने की आवश्यकता है।”
पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार फसल विविधीकरण की दिशा में कदम उठा रही है। इसने हाल ही में भूजल को बचाने के लिए चावल प्रौद्योगिकी की सीधी बुवाई को प्रोत्साहित करने की योजना की घोषणा की। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी मूंग दाल की सुनिश्चित खरीद का ऐलान किया। इससे मूंग का रकबा पिछले साल के 20,000 हेक्टेयर से बढ़कर 40,000 हेक्टेयर हो गया। हालांकि मूंग दाल की खेती किसानों की आय को गेहूं और धान चक्र के बीच एक और फसल के साथ पूरक करने के लिए केवल एक पहल है। विशेषज्ञों और किसानों का कहना है कि राज्य सरकार को धान की जगह लेने के लिए मक्का जैसी फसलों को बढ़ावा देने की जरूरत है। इस बुवाई के मौसम में पंजाब में मक्का का रकबा 40,000 हेक्टेयर से अधिक नहीं है। एक किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि “किसान धान के अलावा किसी भी फसल को बोने के लिए तैयार हैं, अगर सरकार यह सुनिश्चित करती है कि उसका सही खरीद मूल्य है, और खेत की पूरी उपज सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदी जाती है। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक धान को खत्म करना मुश्किल है, क्योंकि यह हमारी आजीविका का भी मामला है।” उन्होंने कहा कि फसल के पैटर्न में कोई भी बदलाव तभी सफल होगा जब एक सुनिश्चित रिटर्न होगा।
(Jantaweekly.org से साभार)
अनुवाद : अंकित कुमार निगम