हिंदू बहन ने मुस्लिम भाई को किडनी देकर बचाई जान

0

19 अक्टूबर। आधुनिक दौर में सामाजिक विभाजन की घटनाएं आम हैं। लेकिन बहुत सारी जगह पर आज भी सामाजिक सौहार्द की मिसालें सामने आ जाती हैं। ताजा मामला उत्तर प्रदेश के मेरठ का है। जहाँ धर्म की दीवार को तोड़ते हुए हिंदू-मुस्लिम परिवारों ने एक दूसरे को किडनी देने का फैसला किया है। अफसर अली के शरीर में अनीता की किडनी और अंकुर के शरीर में अकबर की किडनी लगेगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, न्यूटिमा हॉस्पिटल में दो लोगों ने गुर्दा प्रत्यारोपण कर हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल पेश की है। गुर्दा देनेवालों में एक महिला भी शामिल है। अफसर अली को अनीता मेहरा नाम की महिला और अंकुर मेहरा को अकबर अली नाम के युवक ने गुर्दा देकर हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश की है। अब अफसर अली के शरीर में अनीता का गुर्दा काम करेगा और अंकुर मेहरा के शरीर में अकबर अली का गुर्दा काम करेगा।

न्यूटिमा हॉस्पिटल के गुर्दा रोग विशेषज्ञ डॉ. संदीप गर्ग, डॉ. शालीन शर्मा एवं डॉ. शरत चन्द्र गर्ग ने जानकारी देते हुए बताया, कि स्वैप विधि से गाजियाबाद निवासी अफसर अली व मोदीनगर निवासी अंकुर मेहरा को अमरोहा निवासी अकबर अली व अनीता मेहरा ने गुर्दा दान कर हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल पेश की है। दोनो परिवारों ने सामाजिक सौहार्द को लेकर अति प्रशंसनीय कार्य किया है। जब किसी मरीज के गुर्दे पूर्ण रूप से काम करना बंद कर देते हैं, तो मरीज के पास केवल दो विकल्प शेष बचते हैं। पहला गुर्दा रोग विशेषज्ञ अनुसार मरीज लगातार डायलिसिस कराए, दूसरा वह गुर्दा प्रत्यारोपण कराकर सामान्य जीवन व्यतीत करे। इसे रेनल ट्रांसप्लांट विधि कहते हैं।

रेनल ट्रांसप्लांट के लिए डोनर होना जरूरी है। डोनर का ब्लड ग्रुप आमतौर पर रिसीवर से मैच होना चाहिए। यदि दोनों डोनर और रिसीवर का ब्लड ग्रुप मैच नहीं करता है, तो इस परिस्थिति में मरीज का स्वैप ट्रांसप्लांट या एबी ट्रांसप्लांट कर सकते हैं। स्वैप ट्रांसप्लांट में आमतौर पर दो परिवारों के बीच अंगों का आदान प्रदान होता है, जो ब्लड ग्रुप मैच न होने के कारण अपने ही परिवार के किसी सदस्य को अंगदान नहीं कर सकते, ऐसे में दो या चार मरीजों के परिवारों को बुलाकर नियमानुसार पारिवारिक सदस्यों की आपसी सहमति से एक परिवार दूसरे परिवार को और दूसरा परिवार पहले परिवार को गुर्दा दान कर देता है। गुर्दा प्रत्यारोपण में सात लाख रुपये का खर्च आता है। विशेष परिस्थितियों में अनुमानित खर्च बढ़ भी सकता है। इसके पश्चात प्रति माह पाँच से सात हजार रुपये का खर्च आता है।

(‘सबरंग इंडिया’ से साभार)

Leave a Comment