महँगाई के खिलाफ पूरे यूरोप में जनता सड़कों पर

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29 अक्टूबर। पिछले हफ्ते जब ब्रिटेन में अपनी आर्थिक योजना की आलोचना के बाद इस्तीफा देने वाली प्रधानमंत्री लिज ट्रस की कुर्सी एक और धनकुबेर ऋषि सुनक को सौंपने की तैयारी चल रही थी, तब उन्हीं दिनों रोमानिया में लोग जीवन-यापन की बढ़ती लागत से परेशान होकर बिगुल व ड्रम बजाते सड़कों पर उतर रहे थे। पूरे फ्रांस में लोग मुद्रास्फीति की दर के अनुरूप अपने वेतन में वृद्धि की माँग को लेकर सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। उधर पूर्वी यूरोप में चेक गणराज्य में लोग ऊर्जा संकट से निबटने में अपनी सरकार की कोताही पर कड़ा विरोध जता रहे थे तो जर्मनी में कीमतें बढ़ने के बाद बेहतर वेतन की माँग को लेकर पायलट हड़ताल कर रहे थे।

समूचे यूरोप में गर्मियां खत्म होने के बाद आसन्न सर्द दिनों की तैयारी में जुटे लोग महंगाई की मार से परेशान हैं। जीवन की बुनियादी जरूरतों व रोजमर्रा की चीजों की कीमतों में तेजी के कारण गुस्साए लोग सड़कों पर उतर रहे हैं और इससे राजनीतिक उथल-पुथल की आशंकाएं तेज हो चली हैं। ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी द्वारा अपना नेता बदलना इसी का उदाहरण है। लेकिन बदलाव के बावजूद किसी के पास फिलहाल इस संकट से उबरने का कारगर रास्ता नजर नहीं आता। यही वजह है, कि नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने भी अपनी आर्थिक योजना की घोषणा 17 नवंबर तक टाल दी है, जिसे पहले वह अगले सोमवार यानी 31 अक्टूबर को लाने वाले थे। जिन दिनों ऋषि सुनक 10, डाउनिंग स्ट्रीट में पहुँचने की तैयारी कर रहे थे, उसी समय तमाम आर्थिक विश्लेषक ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के मंदी की चपेट में आने की गहरी आशंका जतला रहे थे।

यूक्रेन पर रूसी हमले को नौवां महीना शुरू हो चुका है। इस लड़ाई के नतीजे में यूरोप में तेल व गैस के साथ-साथ खाद्य पदार्थों की कीमतों में भी बहुत तेजी आई है। इसका खासा असर आम लोगों के रहन-सहन पर पड़ा है। ऊर्जा कीमतों ने यूरो मुद्रा का इस्तेमाल करने वाले 19 देशों में मुद्रास्फीति को 9.9 फीसदी के रिकॉर्ड स्तर तक पहुँचा दिया है। लोगों के लिए जरूरत की वस्तुएं खरीदना मुश्किल हुआ है, तो जाहिर है कि उनके पास विरोध में सड़कों पर उतरने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। पिछले हफ्ते फ्रांस के अलग-अलग शहरों में एक लाख से ज्यादा लोगों ने सड़कों पर प्रदर्शन किया। वेतन बढ़वाने के लिए इस तरह का दबाव डलवाने के अलावा लोगों के पास कोई चारा नहीं बचा है।

पिछले हफ्ते के अंत में जर्मनी के छह शहरों में हजारों लोगों ने बढ़ी कीमतों से निबटने में सरकारी मदद के उचित वितरण की माँग को लेकर प्रदर्शन किया था। बर्लिन, डुसलडर्फ, हैनोवर, स्टुटगार्ट, ड्रेस्डेन व फ्रैंकफर्ट में इस तरह के प्रदर्शन हुए। गनीमत यही है कि यूरोप में फिलहाल गर्मी के लंबा खिंच जाने से अक्टूबर अंत में भी सर्दी अभी उतनी नहीं पड़ रही है, जितनी आम तौर पर पड़ जाती है। इससे वहाँ घरों को गर्म रखने के लिए गैस की माँग ने जोर नहीं पकड़ा है। लेकिन जब ऐसा अंततः होगा तो लोगों में बेचैनी बढ़ेगी और राजनीतिक स्थिरता पर भी असर तो पड़ेगा ही, खास तौर पर ऐसे दौर में जब राजनीतिक रूप से भी यूरोप हाल के कई दशकों की तुलना में इस समय सबसे ज्यादा बंटा हुआ नजर आ रहा है।

(‘मेहनतकश’ से साभार)

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