1 नवम्बर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार इन पहलुओं पर नाकाम साबित हो रही है कि अर्थव्यवस्था को कैसे पटरी पर लाया जाए? विकास को कैसे बढ़ावा दिया जाए? निवेश को कैसे बढ़ाया जाए? और रोजगार का सृजन कैसे किया जाए? कृषि मजदूरों की हालत तो और भी शोचनीय है। 14 करोड़ से ऊपर की संख्या वाला यह तबका सबसे गरीब तबका है, जिसे सबसे कम मजदूरी मिलती है, जो जीवित रहने के लिए कई किस्म के मौसमी काम करने के लिए मजबूर होता है।
श्रम मंत्रालय के श्रम ब्यूरो द्वारा एकत्र किए गए नवीनतम आँकड़ों से पता चलता है कि पिछले पाँच वर्षों में पुरुष कृषि मजदूरों की मजदूरी केवल 15 रुपए प्रतिवर्ष की चौंकाने वाली बहुत ही कम दर से बढ़ी है। यानी पाँच साल में लगभग 29 प्रतिशत या इस वर्ष में केवल 6 प्रतिशत बढ़ी है। अगस्त 2022 में उपलब्ध डेटा के मुताबिक, कुल मेहनताना 343 रुपये प्रतिदिन था। विदित हो कि खेतिहर मजदूरों को फसल चक्र के आधार पर काम उपलब्ध होता है। उन्हें इस चक्र में लगातार 10-15 दिनों तक जुताई या रोपाई, निराई या पानी या कटाई का काम मिल सकता है, जोकि हफ्तों या महीनों के अंतराल में होता है।
इसी दौरान वस्तुओं की कीमतों में लगभग 28 प्रतिशत की लगातार वृद्धि हुई है। यह महंगाई प्रभावी रूप से मजदूरी में हुई मामूली वृद्धि को बहुत कम कर देती है। उदाहरण के लिए अगस्त 2022 में जब पुरुष कृषि मजदूर को प्रतिदिन औसतन 343 रुपये मिल रहे थे, तो महिला श्रमिक को केवल औसत दैनिक वेतन 271 रुपये मिल रहा था। यह पुरुष मजदूरों की तुलना में 20 प्रतिशत कम है। ग्रामीण मजदूरी में पुरुष और महिला के बीच ये अंतर सभी प्रकार के कामों में मौजूद है।