— अच्युतानंद किशोर ‘नवीन’ —
गत एक साल से मैं बावन बीघा स्थित नवनीत की चक्की से गेहूं पिसाता आ रहा हूं। छठ पूजा की पूर्व संध्या पर मैं पूजा वास्ते गेहूं पिसाने गया था। पहुंचा तो देखा तीसेक की संख्या में लोग खड़े थे और गेहूं के झोले तीन कतारों में क्रमानुसार रखे हुए थे।
नवनीत से पूछा तो उसने कहा कि आधे घंटे में गेंहू पिस जाएगा। हालांकि मुझे पूरे दो घंटे की प्रतीक्षा करनी पड़ी। एक चीज पर मैंने गौर किया कि लोग गेहूं लाते हैं तो एक दस-बारह बरस का बालक उसे सीधे कतार में बिना तौले लगा देता है। फिर पिस जाने के बाद लोग सीधे उसे घर ले जाते हैं। किसी से पैसे लेते मैने नहीं देखा। दरियाफ्त किया तो ज्ञात हुआ कि छठ पूजा की गेहूं की पिसाई नवनीत नहीं लेता है। हालांकि चक्की मालिक की इस उदारता का बेजा फायदा भी कुछ लोगों ने उठाया। पूजा के इतर गेहूं के बड़े बड़े झोले के गेहूं भी पिसा ले गए।
आज के उत्तर आधुनिक युग में जहां पैसा ही भगवान है वहां नवनीत की निःस्वार्थ सेवा चमत्कृत करती है, प्रातः चार बजे से ही इस कार्य में अपने दो सहयोगियों के साथ तल्लीन था।
चूंकि पूजा त्योहार सब बाजार पूंजी के हवाले है और बरसों से देखता आ रहा हूं कि पूजा सामग्री के दाम अनाप शनाप लिये जाते रहे हैं। एक रुपए का सामान पूजा उत्सव में आराम से पांच सात में बेचा जाता है। जम की पूजा के नाम पर लोगों को लूटा जाता है। वहां मुझे नवनीत किसी दूसरी दुनिया का प्राणी लग रहा था।
महात्मा गांधी ने सात पापों को रेखांकित किया था। उसमें से एक है त्यागहीन पूजा। नवनीत ने इसी त्याग के द्वारा भगवान दिनकर को अर्घ्य दिया है। नीतिहीन व्यापार को भी गांधी सात पापों में शुमार करते हैं। व्यापार का अर्थ निखालिस मुनाफा कमाना नहीं हो सकता।
कोलकाता के लोहिया विचार मंच के वरीय साथी और चौरंगी वार्ता पत्रिका के अभिन्न सहयोगी स्वर्गीय योगेंद्र पाल जी ने किताबों की एक दुकान खोली थी। एक दिन शाम को एक विद्यार्थी किताब खरीदकर ले गया और अगले दिन वापस करने आया तो योगेंद्र पाल जी ने पूरी कीमत वापस कर दी। विद्यार्थी के जाने के बाद वहां बैठे उनके एक साथी ने कहा, “तुम्हारी दुकान नहीं चलेगी, बंद हो जाएगी।” योगेंद्र जी ने अचरज से पूछा कैसे? उनके मित्र ने कहा कि तुम्हें कुछ राशि काट लेनी चाहिए थी। हो सकता है उसने अपने काम की चीज रात भर में कापी में उतार ली हो। इसका तो सीधे सीधे निहितार्थ निकलता है कि व्यापार शुद्ध रूप से शोषण पर टिकता है। और वाकई योगेंद्र पाल जी की दुकान कुछ ही दिनों के बाद बंद हो गई। अब यहीं व्यापार को नीति नैतिकता से जोड़ने की बात पैदा होती है। तो नीति नैतिकता तो यही कहती है की व्यापार के मुनाफे के एक अंश को परमार्थ में लगाना चाहिए।
पांच फीट आठ इंच के दुबले-पतले नवनीत को देखकर यह आश्वस्ति होती है कि घोर तिमिर में भी एक दीया जल रहा है। शुभ संभावना अभी खत्म नहीं हुई है।
नन्हीं चिड़िये की चोंच में दबे तिनके जितनी नैतिकता तो बची ही रहेगी – जो एक उद्धरण , एक प्रेरणा , एक आग और एक प्रकाश स्तंभ की तरह आदमी को उद्वेलित करती रहेगी ..