11 नवम्बर। भारत में खुद सरकारों द्वारा ही धार्मिक आधार पर उत्पीड़न का मामला हो या यौन हिंसा के मामले को लेकर मानवाधिकार का उल्लंघन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है। सर्वविदित है, कि वर्तमान समय में भारत सरकार द्वारा जितना मानवाधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है, अन्य देशों में सोचा भी नहीं जा सकता है। अगर अन्य देशों में मानवाधिकार का उल्लंघन होता तो अन्य देश भारत में मानवाधिकार की रक्षा के लिए भारत से अपील नहीं करते। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने भारत से आग्रह किया है, कि अपने यहाँ धार्मिक आधार पर उत्पीड़न और यौनहिंसा के मामलों को नियंत्रित करें। गुरुवार को भारत को संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने अपने यहाँ मानवाधिकारों की स्थिति को बेहतर करने के लिए नसीहतें दीं। यूएपीए के इस्तेमाल से लेकर मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाई और यौनहिंसा पर संयुक्त राष्ट्र में चर्चा हुई।
गौरतलब है, कि गुरुवार को जेनेवा में हुई यह चर्चा उस चार वर्षीय समीक्षा का हिस्सा थी, जिससे यूएन के सभी 193 सदस्य देशों को हर चार साल में एक बार गुजरना होता है। यूएन की मानवाधिकार परिषद में अमेरिकी दूत मिशेल टेलर ने कहा, कि भारत को यूएपीए का इस्तेमाल कम करना चाहिए। उन्होंने कहा, हम सिफारिश करते हैं कि भारत यूएपीए और ऐसे ही कानूनों का मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के खिलाफ विस्तृत इस्तेमाल कम करे। कानूनी सुरक्षा हासिल होने के बावजूद लैंगिक और धार्मिक आधार पर भेदभाव और हिंसा जारी है। आतंकवाद-रोधी कानूनों के प्रयोग के कारण मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को लंबे समय तक हिरासत में रखा जा रहा है।
विदित हो, कि यूएपीए को लेकर भारत में भी लगातार विरोध होता रहा है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है, कि इस कानून का इस्तेमाल विभिन्न सरकारें और पुलिस उत्पीड़न के लिए कर रही हैं। इसी साल अगस्त में भारत के गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने संसद को बताया था, कि 2018 से 2020 के बीच 4,690 लोगों को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया, जबकि सजा सिर्फ 149 लोगों को हुई। 2020 में ही 1,321 लोगों को इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था, और 80 लोगों को दोषी पाया गया था। सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां उत्तर प्रदेश में हुईं।