14 नवम्बर। आजादी के अमृत महोत्सव काल में देश की राजधानी में कचरे के ढेर के ऊपर नगर निगम के चुनाव होने वाले हैं। यह न्यू इंडिया की तस्वीर है, जहाँ हर क्षेत्र में असफल सरकारी तंत्र बस जुमले गढ़कर देश की दशा और दिशा तय कर रहा है। जैसे नोटबंदी से काला धन और आतंकवाद समाप्त हो गया, ठीक उसी तरह से स्वच्छ भारत के नारे से देश साफ हो गया है! दरअसल हमारे शहरों का हाल ऐसा हो चुका है, जहाँ बसकर संविधान द्वारा दिया गया ‘‘जीवन का अधिकार’’ भी बेमानी लगता है।
गौरतलब है, कि हमारे शहर आवास, सार्वजनिक परिवहन, ट्रैफिक, लगातार बढ़ती आबादी, हरियाली और जल संसाधन तथा इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, कचरे और तमाम तरह के प्रदूषण से जूझ रहे हैं। विदित हो, कि दिल्ली में वायु प्रदूषण इस कदर है, कि प्रसिद्ध वैज्ञानिक जर्नल ‘लांसेट’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली में वर्ष 2019 के दौरान वायु प्रदूषण के कारण 17500 असामयिक मौतें दर्ज की गईं। चेन्नई में वर्ष 2019 की गर्मियों के दौरान सभी जल संसाधन सूख गए थे, तो दूसरी तरफ थोड़ी सी बारिश भी इस शहर को जलमग्न कर देती है। झीलों के शहर बेंगलुरु में झील में पानी विषैला हो जाता है, और शहर का विकास इतना अनियोजित किया गया है, कि बारिश के मौसम में यह शहर कई बार बाढ़ की चपेट में आता है। बेंगलुरु के अनियोजित विकास ने यहाँ की ट्रैफिक व्यवस्था को भी डराने वाला कर दिया है।
विकास का आलम यह है, कि सतत विकास रिपोर्ट 2021 के अनुसार सतत विकास के सन्दर्भ में भारत कुल 165 देशों में 120वें स्थान पर है। इस रिपोर्ट को सस्टेनेबल डेवलपमेंट सोल्यूशन नेटवर्क और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा संयुक्त तौर पर प्रकाशित किया जाता है। वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्य देशों ने अगले 15 वर्षों तक, यानी वर्ष 2030 तक के लिए विकास के लक्ष्य निर्धारित किये थे। गरीबी उन्मूलन, भुखमरी समाप्त करना, बेहतर स्वास्थ्य, बेहतर शिक्षा सहित 17 और मुद्दे हैं। देश का बेहतर प्रदर्शन केवल जलवायु परिवर्तन रोकने के उपायों में रहा है। शहरों के विकास का सबसे दुखद पहलू यह है, कि इनके विकास के आधारभूत स्तम्भ झुग्गी-झोंपड़ी से आगे नहीं बढ़ पाते और शहर में झुग्गी-झोंपड़ी एक धब्बा मानकर कभी भी उजाड़ दी जाती हैं।
– अंकित कुमार निगम