डॉ जरनैल सिंह आनंद की चार कविताएं

0
पेंटिंग - कौशलेश पाण्डेय

1. एक आम दिन बापू को याद करते हुए

एक बहुत बड़ी सुंदर बिल्डिंग के सामने
खेतों में
एक छोटी सी कुटिया है
जहाँ पर भूत रहते हैं

ये भुतहा घर है
रात को यहाँ पर
कोई रौशनी नहीं होती
बाहर बैठ कर ये खाना बनाते हैं

मैंने कभी उस औरत के होंठों पर
कोई मुस्कराहट नहीं देखी
न ही उस आदमी के
बचे खेलते हैं अपनी भयानक होनी से बेखबर

मैं उस घर को देखता हूँ
जो खाली खाली लगता है
हालांकि वहां पर ये परिवार रहता है
शायद ये घर किसी जेल से भी बदतर है

लगता नहीं उन्हें कोई नाराज़गी हो
या कोई गुस्सा हो अपनी किस्मत पे
वो जी रहे हैं बस मरने के लिए
बस यही उनका न हिलने वाला विश्वास है

यदि उन्हें खाने को रोटी नहीं मिलती
न रहने को स्थान
ताकि वो मनुष्यों की तरह रह सकें
तो मैं क्या कर सकता हूँ?

उन्हें क्या दे सकता हूँ?
तब बापू की याद आती है
कि मैं भी उतना ही पहनूं जितना कि ये
और उतना ही खाऊं, जितना कम ये खाते हैं।

2. खूबसूरत लम्हों की गाथा

ज़िंदगी अच्छे बुरे लम्हों की बनी होती है
और ये लम्हे अच्छे से अच्छे और बुरे से बुरे
लोगों के मन में निरंतर आते रहते हैं

मसलन हम बाजार में हैं
किसी भीख मांग रहे बच्चे को देख कर
हमारा मन रो पड़ता है
हम चाहते हैं कि ऐसे बच्चों के  लिए
कुछ करें

लेकिन ये लम्हे पल के पल ही आते हैं
और चले जाते हैं
ज़्यादातर हम उन्हीं लम्हों को पकड़ कर रखते हैं
जो अच्छे नहीं होते
जिनमें बुराई होती है

ऐसी बात नहीं कि हम अच्छा नहीं सोचते
सोचते हैं
लेकिन सिर्फ अपने बारे में
दूसरों के बारे नहीं

महान व्यक्ति सदैव दूसरों के बारे में सोचते हैं
और उनमें ऐसे लम्हों की निरंतरता बनी रहती है
बापू भी ऐसे लम्हों का
एक निरन्तर सिरजन थे
वो खूबसूत लम्हों की अटूट गाथा थे

आज भी वो गाथा गायी जा रही है
उसके स्वर आज भी
हमारी सोच को निर्देशित करते हैं
आओ हम भी खूबसूरत लम्हों को इकट्ठा करें
और जैसा बापू ने किया
किसी अमर गाथा का निर्माण करें।

पेंटिंग – सब्बीर सरदार

3. तलाश

फ़क़ीर चरखा कात कर पेट पाल लेता था
उसे न कोई भूख थी
न कोई सनक

कोट पतलून
ये सब अमीरी किसी की लूटपाट
के बिना नहीं होती

घर में बहन और पत्नी
और उनसे पहले अपनी माँ
प्यार के नाम पर किसको नहीं ठगा गया

थोड़ा प्यार ही तो देना था
बड़ी बड़ी थ्योरी की बातें होती रहीं
घरों में तांडव होता रहा

भूख नहीं होती अभिलाषाएं नहीं होतीं
आकांक्षाएं नहीं होतीं
तो ये लड़ाई भी नहीं होती

अच्छी ज़िंदगी की तलाश में
देश खो गया
अब हम एनआरआई हैं

सब कुछ देखा है सिवाय ख़ुशी के
शायद वो फ़कीर खुश होगा जिसके तन पर
शर्ट भी नहीं है

किस बात का रंज है बापू ?
विदेशी कपड़ा तो जला दिया
देश से नफरत करने वाले देशियों का किया करें?

4. समझदार लोग

ज़िंदगी लेन और देन का सौदा होती है
कई लोग जानते हैं
सच्चा सौदा कौन-सा होता है

दे तो वही सकता है जिसके पास
देने को कुछ हो
ये समाज तो भूखे नंगों का है

भूखे नंगे लोग थोड़ा खाकर गुज़ारा
कर लेते हैं
लेकिन ये कैसी भूख है मिटती ही नहीं

पेट की भूख की बात और होती है
यहाँ तो तन भी भूखा है
और मन भी

और ये लोग तन से तो ढके हुए हैं
पर मन से भूखे हैं
कैसी होड़ लगी है, कहाँ रुकेंगे ?

उन भूखे नंगों को सलाम
जो पाकेटमारी में
सौ दो सौ की बेईमानी करते हैं

और पकड़े जाने पर जेल चले जाते हैं
बनिस्बत उन सुशील गुंडों के
जिनपर कानून भी हाथ नहीं डालता

बापू ने अपने पास कुछ नहीं रखा
नानक जी ने भी तो सब कुछ
कुदरत का था कुदरत के नाम किया
[तेरा तुझको सोनपिआ किआ लगे मेरा ]

इन दोनों के बीच हम ही कुछ समझदार लोग हैं
जिन्हें सच्चा सौदा करना आता है
और देखो हमने ही इस ज़िंदगी को अंडरवर्ल्ड बना डाला है।

(डॉ जरनैल सिंह आनंद अंतरराष्ट्रीय ख्याति के विद्वान और लेखक हैं। अंग्रेजी तथा पंजाबी के अलावा हिन्दी और उर्दू में भी लिखते हैं। अंग्रेजी में इनकी कविता, कथा साहित्य, कथेतर गद्य तथा दर्शन और अध्यात्म की कुल डेढ़ सौ से ऊपर किताबें प्रकाशित हैं। यहां दी गयी कविताएं उन्होंने सीधे हिन्दी में लिखी हैं।)

Leave a Comment