— कमल सिंह —
प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
वर्ष 1952 के चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी की हार ने जयप्रकाश नारायण को निराश किया। पंचमढ़ी (मध्य प्रदेश) में लोहिया की सदारत में समाजवादियों का सम्मेलन हुआ। इसमें राममनोहर लोहिया ने संघर्ष की रणनीति पेश की। सितम्बर 1952 में आचार्य कृपालानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी के विलय से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनी। 1953 में जयप्रकाश नारायण पंचमढ़ी के प्रस्ताव के बरखिलाफ नेहरू के साथ सहयोग कर समाजवाद की दिशा में आगे बढ़ने की नीति पेश कर रहे थे। लोहिया इसके खिलाफ थे। देवीदत्त अग्निहोत्री प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के कानपुर के प्रधान मंत्री और इलाहाबाद राज्य सम्मेलन के लिए प्रतिनिधियों में चुने गए। 18 सितम्बर 1955 को पीपीएन स्कूल में देवीदत्त अग्निहोत्री ने समाजवादियों का सम्मेलन आयोजित किया। इसमें प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सांसद आचार्य कृपालानी, सुचेता कृपालानी, अशोक मेहता, कामत साहब, विधायक गेंदा सिंह और सालिग राम जायसवाल, प्रदेश मंत्री आमंत्रित थे। पार्टी में जहां लोहिया कांग्रेस व कम्युनिस्टों से समान दूरी की नीति पेश कर रहे थे, कानपुर से देवीदत्त अग्निहोत्री ने कांग्रेस के खिलाफ वामपंथियों की एकजुटता के लिए अपील की।
जून 1955 में लोहिया ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी छोड़ दी तथा दिसंबर 1955 में हैदराबाद सम्मेलन में सोशलिस्ट पार्टी गठित की। 1957 के आम चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की ओर से देवीदत्त अग्निहोत्री ने कानपुर शहर के उत्तरी क्षेत्र से हरिहर नाथ शास्त्री की पत्नी शंकुन्तला श्रीवास्तव का नाम विधायक प्रत्याशी के रूप में घोषित किया और लोकसभा के लिए कम्युनिस्ट समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी एसएम बनर्जी के समर्थन का ऐलान किया।
समाजवादी अंदोलन में दो फाड़ हो चुका था। समाजवादियों की एकता का प्रयास 1957 में जेपी और लोहिया ने मिलकर किया। कानपुर में उत्तर प्रदेश के समाजवादियों का एकता सम्मेलन मार्च 1963 में आहूत किया गया। सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष देवीदत्त अग्निहोत्री थे। वे दो वर्ष पहले पार्टी से अलग हो गए थे। 4 जनवरी 1963 को चन्द्रशेखर ने उन्हें प्रसोपा में फिर सम्मिलित कर लिया। मई 1964 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी तथा सोशलिस्ट पार्टी के रामगढ़ और गया अधिवेशनों में विलय का निश्चय किया गया और 6 जून 1964 को दिल्ली में दोनों दलों की संयुक्त बैठक में विलय की पुष्टि की गई। इस प्रकार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी दोनों के एकीकरण से बनी।
समाजवादियों का कांग्रेस में जाना
1952 के चुनाव में हार के बाद आचार्य नरेन्द्र देव व जयप्रकाश नारायण की सोच नेहरू के साथ वार्ता व कांग्रेस व सर्वोदय की ओर रुझान के साथ प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के काग्रेस में विलय अशोक मेहता के देवरिया चुनाव में हार के बाद हो गया था। अशोक मेहता प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष थे। 1962 में उन्होंने पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था। उनके साथ चन्द्र शेखर भी कांग्रेस में चले गए थे। इसी क्रम में दादा देवीदत्त अग्निहोत्री ने भी कानपुर के प्रसोपा नेताओं के साथ कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। 1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद 1970 में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अर्जुन अरोड़ा ने बताया कि कांग्रेस का लक्ष्य समाजवादी समाज की स्थापना करना है। देवीदत्त अग्निहोत्री ने इसमें सिंडीकेट की पूंजीवादपरस्त नीतियों के विरोध का आह्वान किया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस का समर्थन कर रही थी। 1975 में स्वतंत्रता सेनानी सम्मेलन तिलक हॉल में 27-28 सितम्बर को हुआ। इसमें प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी की नीतियों को आर्थिक क्रांति बताया गया। सम्मेलन के आयोजकों में शिव बालकराम, अर्जुन अरोड़ा, रामरतन गुप्ता, शिवनारायण टंडन, राजाराम शास्त्री, सूरज प्रसाद अवस्थी, तारा अग्रवाल, उमाशंकर शुक्ल, संत सिंह यूसुफ आदि के साथ देवीदत्त अग्निहोत्री भी शामिल थे।
1977 में जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में चन्द्रशेखर कानपुर आए। उन्होंने दादा देवीदत्त अग्निहोत्री से मुलाकात कर उन्हें जनता पार्टी में सम्मिलित किया।
जनता से निरंतर जुड़ाव
1964 में दादा कानपुर किराएदार संघ के उपाध्यक्ष थे। उन्होंने सरकार के भूमि कर अधिनियम के किराएदार विरोधी चरित्र का पर्दाफाश किया। जुलाई के अंत में समाजवादी कार्यसमिति की बैठक में खाद्य समस्या की भीषणता की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए मांग की गई कि खाद्य पदार्थों का खुले बाजार में भी वही भाव होना चाहिए जो भाव सरकारी दुकानों पर हो। व्यापारियों को खाद्यान्न रखने की मात्रा और समय-सीमा सरकार सुनिश्चित करे। खाद्यान्न का अंतर-प्रांतीय व्यापार प्रतिबंधित किया जाए। खाद्यान्न उत्पाद व्यय का बजट बढ़ाया जाए। इस बैठक में देवीदत्त अग्निहोत्री, रामनारायण त्रिपाठी, प्रेम नारायण मिश्र, बालेश्वर दुबे, सुरेन्द्र दीक्षित और बलवंत सिंह जैसे प्रमुख समाजवादी नेता सम्मिलित थे। समाजवादियों के प्रतिनिधिमंडल ने खाद्यमंत्री से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन दिया।
देवीदत्त अग्निहोत्री कानपुर कोयला व्यापारी संघ के अध्यक्ष भी थे। 20 मई, 1969 को उनके नेतृत्व में राज्य के खाद्य एवं रसद मंत्री मंगला प्रसाद को ज्ञापन देकर कोयला व्यवसायियों की समस्या से अवगत कराया गया, कोयले का निर्धारित कोटा बढ़ाए जाने तथा कोयले के वितरण की व्यवस्था में सुधार की मांग की गई। वे पांच वर्ष अपने गांव के सरपंच रहे। फतेहपुर स्वतंत्रता सेनानी परिषद के अध्यक्ष रहे। 1976 में भारत चीन मैत्री संघ के अध्यक्ष रहे। 26 सितम्बर 1977 को अंतरराष्ट्रीय सर्वहारा के महान शिक्षक माओ त्से तुंग के जन्म दिवस पर उनकी अध्यक्षता में भारत चीन मैत्री संघ के तत्वावधान में इंडियन मेडिकल हॉल में कार्यक्रम का आयोजन हुआ। वे महर्षि वाल्मिकी विद्यालय, कानपुर के अध्यक्ष थे।
11 दिसम्बर 1993 को कैंसर से जूझते हुए उन्होंने अंतिम विश्राम लिया। उनके देहावसान पर सुदर्शन चक्र, रामनारायण त्रिपाठी, जगदीश अवस्थी(पूर्व सांसद), शिवनाथ सिंह कुशवाह, शिवकुमार बेरिया(विधायक), दौलत राम, पारसनाथ यादव, कुलदीप सक्सेना, सुभाषिनी अली, देवौ कृष्ण मिश्रा, मो. शफी, श्रीधर, अरविन्द कुमार समेत जनपद के अनेक समाजकर्मियों ने शोक व्यक्त करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित किए। अंतिम विदाई दी।
(समाप्त)