हिसार सेंट्रल जेल (हरियाणा) से। राजनारायण जी रिहा। – दूसरी किस्त

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राजनारायण (23 नवंबर 1917 - 31 दिसंबर 1986)


— प्रोफेसर राजकुमार जैन —

लाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले से घबराकर इन्दिरा गांधी की सरकार ने 26 जून 1975 को देशभर में आपातकाल लगा दिया। लाखों लोगों को सरकार ने मीसा, डी.आई.आर. जैसे क़ानूनों के तहत गिरफ़्तार कर जेलों में बंद कर दिया।

जयप्रकाश नारायण आपातकाल लगाए जाने के लिए अपने को दोषी मान रहे थे। उनकी जेल डायरी के अनुसार उनकी मान्यता थी कि गुजरात में जनता फ्रंट की जीत से इन्दिरा गांधी को लगा कि चुनाव में विरोधी पार्टियों के फ्रंट बन जाने पर आगामी लोकसभा चुनाव में मैं हार जाऊंगी, परंतु यह सत्य नहीं था।

भ्रम फैलाया गया कि आपातकाल संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दबाव में लगाया गया। श्रीमती गांधी तथा उनके समर्थक लगातार आपातकाल लगाने के लिए मजबूर होने का कारण जयप्रकाश नारायण को ठहरा रहे थे। कांग्रेसी इस बात को कैसे स्वीकार कर सकते थे कि इलाहाबाद के निर्णय के कारण हमने आपातकाल लगाया।

आपातकाल समाप्ति के बाद बनी जनता पार्टी सरकार ने आपातकाल की ज़्यादतियों की जांच के लिए शाह कमीशन बैठाया था। शाह कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि ‘आपातकाल जैसे भयंकर कदम उठाने की नींव 12 जून 1975 को पड़ गई थी।’

हाईकोर्ट का निर्णय आ जाने के बाद ही दबाव में जनता पार्टी बनी। उससे पहले विरोधी दलों में आपसी संघर्ष था। नेतृत्व, विचारधारा, व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा इत्यादि के कारण एक दल के निर्माण की कोई गुंजाइश नहीं थी।सोशलिस्ट कार्यकर्ताओं में आज तक बहस जारी है कि हमारे नेताओं ने सोशलिस्ट पार्टी का अस्तित्व समाप्त कर अगर जनता पार्टी में न मिलाया होता तो हमारे आंदोलन की यह दुर्गति न होती। एक मायने में यह हक़ीक़त भी है।

मेरे जैसा कार्यकर्ता भी सोशलिस्ट पार्टी के अस्तित्व को मिटाकर विरोधी दल की एक पार्टी बनाने के खिलाफ था, एक पार्टी बनाने की बात तो क्या, फेडरल पार्टी तक के पक्ष में नहीं था।

आपातकाल समाप्ति व लोकसभा भंग की घोषणा तथा नये चुनाव की घोषणा के 15 दिन बीत जाने के बावजूद सोशलिस्ट नेताओं राजनारायण, मधु लिमये, जार्ज फर्नांडीज़ को रिहा नहीं किया गया।

मैं हिसार जेल में मीसाबंदी था। वहीं पर राजनारायण जी तथा जार्ज फर्नांडीज़ भी बंदी थे।

मेरी रिहाई के आदेश आ गए थे। राजनारायण जी को जब इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने एक पत्र मेरे साथी रविन्द्र मनचंदा, वे भी मीसा बंदी थे, को देते हुए कहा कि इसे राजकुमार को दे दो तथा कहा कि वे इसे अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर को पढ़वा दें। उनको श्रीमती गांधी के विरुद्घ रायबरेली से चुनाव लड़ना चाहिए। राजनारायण जी को अपने छूटने की कोई आस नहीं थी। रिहा होने के बाद मैंने पहले अटल बिहारी वाजपेयी जी को तथा इसके बाद चंद्रशेखर जी को राजनारायण जी का वह संदेश दिखला दिया।

7 फरवरी को हिसार जेल से राजनारायण जी को रिहा किया गया। रायबरेली से कोई बड़ा नेता चुनाव लड़ना नहीं चाहता था। राजनारायण जी ने जेल से छूटने के फ़ौरन बाद घोषणा कर दी कि वे रायबरेली से चुनाव लड़ेंगे।

चुनाव में भारी बहुमत से जनता पार्टी की जीत हुई। राजनारायण जी ने रायबरेली से श्रीमती इन्दिरा गांधी को हरा दिया।

जनता पार्टी सरकार के प्रधानमंत्री की रेस में दो नेताओं के नाम चल रहे थे। मधु लिमये, चंद्रशेखर तथा हेमवतीनन्दन बहुगुणा ने बाबू जगजीवन राम का नाम प्रस्तावित किया, परंतु राजनारायण जी, कांग्रेस (ओ), जनसंघ, बीजू पटनायक, पीलू मोदी मोरारजी देसाई के पक्ष में थे।

23 मार्च को दिल्ली के मावलंकर हॉल में लोहिया के जन्मदिवस पर एक सभा हुई। इसमें मोरारजी देसाई, राजनारायण, मधु लिमये, जार्ज फर्नांडीज़, एच.एन. बहुगुणा शामिल थे। सभा में राजनारायण जी ने घोषणा की कि वे मंत्री नहीं बनेंगे। राजनारायण जी ने मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए बड़ी चतुराई से चौधरी चरण सिंह को समझाया कि आप नेता के चुनाव में नहीं जीत सकते। अगर आप अपना समर्थन मोरारजी देसाई को दे दें तो आपकी स्थिति वैसी ही होगी, जैसी अहमियत सरदार पटेल की नेहरू जी के साथ थी।

गांधी पीस फाउंडेशन में नवनिर्वाचित संसद सदस्यों की बैठक हुई, जिसमें राजनारायण जी ने प्रस्ताव किया कि जयप्रकाश नारायण तथा आचार्य कृपालानी संसद सदस्यों की राय जानकर परिणाम की घोषणा कर दें। आचार्य कृपालानी किसी भी कीमत पर जगजीवन राम का समर्थन नहीं करेंगे, राजनारायण जी जानते थे। चौधरी साहब ने राजनारायण जी की योजनानुसार आचार्य कृपालानी को मोरार जी देसाई के समर्थन का खत लिख दिया।

संसद के केंद्रीय कक्ष में जनता पार्टी के सदस्यों की बैठक में आचार्य कृपालानी ने घोषणा की- सभी बातों को ध्यान में रखकर, मैं और जे.पी. इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि देश का नेतृत्व मोरारजी देसाई करें। मुझे आशा है कि पार्टी एकमत से इस निर्णय का समर्थन करेगी, क्योंकि प्रधानमंत्री का एक ही पद होता है। अन्यथा जगजीवन राम जी का नाम भी इस पद के लिए होता।

मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बन गए। राजनारायण जी ने पहले घोषणा की थी कि वे मंत्री नहीं बनेंगे, परंतु अब उनका कहना था कि रायबरेली की जनता का मुझ पर बड़ा दबाव है कि मैं मंत्री बनूं। राजनारायण जी को मंत्री पद पर मनोनीत कर दिया गया, परंतु पहले शपथ समारोह में जार्ज फर्नांडीज और राजनारायण जी ने बाबू जगजीवन राम को आदर दिखाने हेतु शपथ नहीं ली।

जनता पार्टी का अध्यक्ष बनवाने में राजनारायण जी की बड़ी भूमिका थी। साधारणतया यह समझा जाता है कि जेपी के कारण चंद्रशेखर जनता पार्टी के अध्यक्ष बने। यह अंशतः ही सच है। असली भूमिका इसमें राजनारायण जी की ही थी। उन्होंने चौधरी चरण सिंह को समझाया कि क्योंकि मोरारजी देसाई तथा चंद्रशेखर जी के संबंध अच्छे नहीं रहे हैं। चंद्रशेखरजी के अध्यक्ष बनने का लाभ उनको मिलेगा। चौधरी चरण सिंह ने चंद्रशेखर जी के समर्थन में अपनी राय व्यक्त कर दी। आचार्य कृपालानी हालांकि चंद्रशेखर के पक्ष में नहीं थे, परंतु चौधरी साहब के समर्थन के कारण चंद्रशेखर जी अध्यक्ष घोषित कर दिये गये।

(जारी)

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