— प्रोफेसर राजकुमार जैन —
सन् 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी के घटकों ने एक पार्टी बनाकर तथा एक दूसरे को एडजस्ट कर चुनाव लड़कर जीत हासिल कर ली थी। जनता पार्टी के केंद्रीय संगठन से लेकर राज्य स्तर पर भी आपसी रज़ामंदी से अस्थायी पदाधिकारियों तथा कार्यकारिणी का निर्माण कर लिया था, परंतु 1978 के विधानसभा चुनाव में स्थिति में परिवर्तन आ चुका था। पार्टी में आंतरिक रूप से विभिन्न घटक, अपने-अपने हितों को साधने में लग गए थे। विधानसभा में अधिक से अधिक उनके समर्थकों को टिकट मिले, चुनाव के बाद राज्य में कौन मुख्यमंत्री, मंत्री बने की रणनीति पर चलने लगे। घटक समीकरण तथा नेताओं का तालमेल भी चलने लगा। जनता पार्टी घटकों के समूह से बनी पार्टी थी। कैडर आधारित नहीं थी। इसलिए समय-समय पर ग्रुपों में आपसी समझौता और विरोध भी चलता रहता था।
चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश में भारतीय लोकदल की स्थिति से खुश नहीं थे। जनसंघ घटक भारतीय लोकदल के प्रभाव वाले क्षेत्र में अपना दखल बनाए रखने के प्रयास में लगा था।
जनसंघ के लोग जो पहले चौधरी चरण सिंह के साथ थे अब वह मोरार जी देसाई व अन्य ग्रुपों के साथ मिलकर चौधरी चरण सिंह, राजनारायण, देवीलाल, कर्पूरी ठाकुर के खिलाफ़ लामबंदी कर रहे थे।
मोरारजी देसाई का राजनारायण जी के लिए व्यवहार कटु क्यों हो गया? शुरू में समझ नहीं आ रहा था, परंतु बाद में यह स्पष्ट हो गया।
मार्च 1977 से मार्च 1978 तक मोरारजी देसाई तथा चौधरी चरण सिंह में मित्रतापूर्ण संबंध थे, परंतु मार्च 1978 में यकायक मोरारजी देसाई का व्यवहार चौधरी चरण सिंह के लिए सख़्ती वाला हो गया। हालांकि मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनवाने में सबसे अहम भूमिका राजनारायण जी की थी। मोरारजी देसाई राजनारायण जी से भी खफ़ा हो गए थे। यद्यपि राजनारायण जी मोरारजी देसाई के विरुद्ध कोई काम नहीं कर रहे थे।
चौधरी चरण सिंह ने 11 मार्च को एक खत लिखा, जिसमें मोरारजी देसाई के पुत्र कांति देसाई के विरुद्ध कई आरोप लगाए गए थे तथा मांग की थी कि इसकी जांच करवायी जाए। मोरारजी भाई को शक था कि राजनारायण ने यह खत चौधरी चरण सिंह से लिखवाया।
चौधरी चरण सिंह खुलेआम अपनी बैठक में कहते थे कि मैं कैसे मोरारजी से कम हूं। मोरारजी कितने कम वोटों से जीतकर आए है। मेरे अनुयायियों की संख्या बहुत बड़ी है। मैं क्यों नहीं प्रधानमंत्री बन सकता? क्या इस जनता पार्टी को बनवाने में मैंने भूमिका नहीं निभायी? उनके दरबार में बैठने वाले बाद में मोरारजी देसाई को इसकी रपट देते थे।
इसके बाद मोरारजी देसाई ने 13 मार्च 1978 को चौधरी चरण सिंह को जवाबी ख़त में उनके दामाद, यहां तक कि उनकी पत्नी तक पर लगने वाले आरोपों का हवाला दिया। इसके बाद चौधरी चरण सिंह ने मोरारजी को लिखा कि अगर मेरे रिश्तेदार पर आरोप है तो इसका अर्थ मेरी ईमानदारी पर धब्बा है। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कृपा कर जल्द-से-जल्द जांच कमीशन बैठा दें। इसके बाद कई पत्रों का इनमें आदान-प्रदान हुआ।
उत्तर प्रदेश चौधरी चरण सिंह का प्रभाव क्षेत्र था। वहां पर राजनारायण जी के सुझाव पर चौधरी चरण सिंह ने रामनरेश सिंह यादव को मुख्यमंत्री बनवाया था। इधर जनता पार्टी में घटक दलों में उठापटक शुरू हो चुकी थी। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार तथा ओड़िशा में लोकदल घटक की चौधरी चरण सिंह, राजनारायण समर्थक सरकारें थी। मोरारजी देसाई जनसंघ, बाबू जगजीवन राम और चंद्रशेखर ग्रुप रामनरेश यादव को मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते थे। केंद्रीय संसदीय बोर्ड ने निर्णय लिया कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री को नये सिरे से विश्वास मत लेना चाहिए।
चौधरी चरण सिंह ने इसके विरोध में सेंट्रल पार्लियामेंटरी बोर्ड तथा राष्ट्रीय समिति से इस्तीफ़ा दे दिया। राजनारायण जी ने सेंट्रल बोर्ड के निर्णय की निंदा की। उ.प्र. के चौधरी चरण सिंह विरोधी विधायकों ने राजनारायण जी के वक्तव्य की कड़ी आलोचना की। हालांकि राजनारायण जी का मानना था कि पार्टी के तीन सर्वोच्च नेताओं मोरारजी, चौधरी चरण सिंह, बाबू जगजीवन राम में कोई गंभीर मतभेद नहीं है। वे मोरारजी देसाई के विरुद्ध किसी भी प्रकार के अविश्वास प्रस्ताव के विरोधी थे।
उत्तर प्रदेश में रामनरेश यादव सरकार के पुनः विश्वास-मत हासिल करने के संबंध में जनसंघ का राष्ट्रीय नेतृत्व बंटा हुआ था। राजनारायण जी ने स्थानीय स्तर पर विधायकों को प्रभावित कर, चुनाव में रामनरेश यादव को पुनः विश्वास-मत में भारी बहुमत से चुनाव जितवा दिया।
उत्तर प्रदेश विधानमंडल से मिली जीत के बाद राजनारायण जी ने ज़ोर-शोर से मांग करना शुरू कर दिया कि जनता पार्टी राष्ट्रीय कार्यकारिणी को भंग कर दिया जाना चाहिए तथा जनता पार्टी के संसद सदस्यों तथा विधायकों द्वारा कमेटी तथा पदाधिकारी चुने जाने चाहिए।
राजनारायण जी ने विस्तार से बताया कि केंद्रीय संसदीय बोर्ड ने जिस प्रकार हरियाणा, उत्तर प्रदेश में पुनः विश्वास-मत हासिल करने का आदेश सुनाया, वह अन्यायपूर्ण है।
राजनारायण जी ने केंद्रीय दफ़्तर पर आरोप लगाया कि वे पार्टी सदस्यता के फ़ार्म नहीं दे रहे हैं। राजनारायण जी ने पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर जी के नरौरा कैम्प जाने की भी आलोचना कर दी।
उत्तर प्रदेश जनसंघ ग्रुप ने उत्तर प्रदेश में मंत्री पद के पुनर्गठन की मांग कर दी, परंतु रामनरेश यादव ने इसे नकार दिया।
अब जनसंघ, मोरारजी देसाई, जगजीवन राम तथा चंद्रशेखर ग्रुप, भारतीय लोक दल ग्रुप तथा राजनारायण जी के विरुद्ध सक्रिय हो गये।
एक तरफ राजनारायण जी नहीं चाहते थे कि मोरारजी देसाई पर कोई आंच आए। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोरारजी की धारणा बन गयी थी कि चरण सिंह, राजनारायण के माध्यम से, मुझे हटाना चाहते हैं। इसलिए मोरारजी देसाई, राजनारायण जी को हटाकर, चौधरी चरण सिंह को दिखाना चाहते थे कि तुम्हारी क्या ताकत है। इधर जनसंघ भी भारतीय लोकदल को दबा के रखना चाह रहा था। इसलिए वह चंद्रशेखर जी का समर्थन कर रहा था।
जनता पार्टी के नेता राजनारायण जी पर अनुशासनहीनता के आरोप लगााने लगे। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने प्रस्ताव पास कर राजनारायण जी की ओर इंगित करते हुए एक जनता बुलेटिन जारी की-
“राष्ट्रीय समिति पार्टी में बढ़ती हुई अनुशासनहीनता को गंभीरता से लेती है। सार्वजनिक रूप से प्रेस इत्यादि में पार्टी आलोचना को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कितना भी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो, उसके खि़लाफ़ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी।”
13 मार्च 1978 को लगभग 52 जनता पार्टी संसद सदस्यों ने, जिसमें मोरारजी देसाई के कांग्रेस (ओ), बहुगुणा ग्रुप, चंद्रशेखर समर्थक, जगजीवन राम, पी.एस.पी. के पुराने सदस्य तथा जनसंघ के सदस्यों ने एक स्मरणपत्र पर हस्ताक्षर कर राजनारायण जी की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को भेजा।
मोरारजी,चंद्रशेखर के समर्थक चौधरी चरण सिंह को पसंद नहीं करते थे। इसलिए वे चौधरी चरण सिंह के समर्थक चौधरी देवीलाल, राजनारायण पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के लिए कटिबद्ध थे।
अटल बिहारी वाजपेयी का शुरू से ही पार्टी में सौहार्द तथा एकता का प्रयास रहा था। उन्होंने राजनारायण जी को सलाह दी कि वे पार्टी के अध्यक्ष को बदलने पर अपनी शक्ति व्यर्थ न कर हरिजन, अल्पसंख्यक तथा अन्य वंचित तबकों के उत्थान के प्रोग्राम में अपने को लगाएं। भाजपा का एक बड़ा तबका जैसे सुन्दर सिंह भंडारी, नानाजी देशमुख इत्यादि मोरारजी देसाई तथा चंद्रशेखर जी के साथ थे।
रवि राय जो कि चौधरी चरण सिंह, राजनारायण खेमे की तरफ से पार्टी में महासचिव थे, ने जनता पार्टी की 23 जून 1978 को हु॓ई संसदीय बोर्ड की बैठक का हवाला देते हुए लिखा है कि पहले से सुनियोजित ढंग से राजनारायण जी के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का मन बना लिया गया था। बोर्ड की बैठक में यहां तक कहा गया कि तुम पार्टी से इनको निकालो, हम सरकार से इनको निकालेंगे। दो आदमियों (चौधरी चरणसिंह, राजनारायण) को पार्टी से बाहर करने पर कुछ फ़र्क नहीं पडे़गा। बोर्ड की बैठक में तय किया गया कि राजनारायण जी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। तथा नोटिस भी जारी कर दिया गया। अटल बिहारी वाजपेयी ने चौधरी चरण सिंह से मिलकर अपील की, संकट को और गहरा करने से बचना चाहिए। संसदीय बोर्ड ने वाजपेयी की सलाह को गंभीरता से नहीं लिया। जनता पार्टी संसदीय बोर्ड ने तो जयप्रकाश जी की सलाह को भी अनसुना कर ही दिया था। इसके बाद जयप्रकाश जी ने राजनारायण जी से अपील की कि वे बहुमत की राय का सम्मान करें। पार्टी के विघटन को बचाने के लिए उन्हें बड़प्पन का परिचय देना चाहिए।
प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने 25 जून को राजस्थान के कोटा में राजनारायण जी को चेतावनी देते हुए कहा कि या तो अनुशासन में रहो या मंत्री पद छोड़ो।
चंद्रशेखर जी ने 6 जून 1978 को अनुशासन के संबंध में कहा, यद्यपि जो पार्टी सदस्य सार्वजनिक रूप से पार्टी के आंतरिक विषयों को व्यक्त करते हैं, वे स्वयं अनुशासनहीनता के लिए ज़िम्मेदार हैं। साथ ही चंद्रशेखर जी ने यह भी कहा कि वे राजनारायण जी के ख़िलाफ़ कोई भी कार्रवाई नहीं करने जा रहे, क्योंकि कुछ अपवाद हमेशा होते हैं। क्या अन्य पार्टियों में भी अपवाद नहीं हैं?
(क्रमशः)