15 दिसंबर। हाल ही में केंद्र सरकार ने मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप(एमएएनएफ) को बंद करने का फैसला लिया है। अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से जारी बयान में इसे दूसरे फेलोशिप पर ओवरलैप बताकर बंद करने की बात कही गई। अब इसे लेकर देशभर में छात्र विरोध कर रहे हैं। 12 दिसंबर को दिल्ली के शास्त्री भवन के बाहर जामिया, जेएनयू, डीयू, एयूडी और दिल्ली के अन्य विश्वविद्यालयों के सौ से अधिक छात्र इसके खिलाफ सड़क पर उतरे। यही नहीं देश के अन्य शैक्षणिक संस्थानों में भी इसका विरोध हुआ।
मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप बंद किए जाने के खिलाफ स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के कार्यकर्ताओं ने अन्य छात्र संगठनों के साथ मिलकर शिक्षा मंत्रालय के सामने सोमवार को प्रदर्शन किया। इस दौरान कई छात्रों को पुलिस ने हिरासत में लेकर देर शाम उन्हें छोड़ दिया। एसएफआई ने एमएएनएफ को बंद करने के खिलाफ 12 दिसंबर को विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था।
एसएफआई की दिल्ली इकाई ने अपने बयान में कहा कि एमएएनएफ बंद करने का सरकार का निर्णय देश के अल्पसंख्यकों के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैये को दर्शाता है। इसे छात्र विरोधी नई शिक्षा नीति के जारी रहने के तौर पर भी देखा जाना चाहिए। एसएफआई सार्वजनिक शिक्षा के लिए लड़ने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराता है, और एमएएनएफ को बहाली की माँग करता है। एसएफआई ने इस निर्णय को छात्रों के लिए बड़ा झटका बताया और कहा है, कि भविष्य में उच्च शिक्षा हासिल करने की उनकी सभी उम्मीदों को खत्म करता है।
एसएफआई के महासचिव मयूख बिस्वास ने कहा, शोधार्थियों को पिछले नौ महीने से अधिक समय से राशि नहीं मिली है। कोरोना महामारी के दौरान और बाद में संस्थागत मदद की कमी के कारण शोधकर्ताओं को परेशानियों का सामना करना पड़ा है। बिल के भुगतान न होने तथा देरी के कारण बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समुदायों के शोधकर्ताओं ने अपने शोधकार्यों को रोक दिया है। इस योजना को बंद करने के प्रयास का उन सभी लोगों को कड़ा विरोध करना चाहिए जो भारत की शिक्षा प्रणाली का लोकतंत्रीकरण करना चाहते हैं।
(MN News से साभार)