— विमल कुमार —
हिंदी साहित्य की दुनिया में आपसी संवाद का संकट आज भी विद्यमान है। ऐसे में कलाओं की विभिन्न विधाओं के बीच संवाद की कामना करना थोड़ा और मुश्किल है पर गाहे बगाहे संवाद होता रहता है जो भले ही दुर्लभ घटना हो। साहित्य का संगीत तथा चित्रकला के बीच थोड़ा बहुत संवाद कभी कभी रचनाओं में दिखाई देता है लेकिन संगीत का चित्रकला से चित्रकला का नृत्य से संवाद नहीं के बराबर है।
रज़ा फाउंडेशन ने इस दिशा में कुछ अभिनव कदम उठाए हैं। पिछले दिनों देश की चार प्रसिद्ध नृत्यांगनाओं ने नृत्य और चित्र के बीच आत्मीय और अंतरंग संवाद किया। मौका था रज़ा जन्मशती। वरिष्ठ नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली, रमा वैद्यनाथन और अन्वेषा महंथ ने रज़ा के चित्रों पर नृत्य कर एक अनोखा प्रयोग किया। यूँ तो प्रेरणा जी ने 1995 में ही पहली बार रज़ा के चित्रों पर फ्रांस में नृत्य प्रस्तुत कर संवाद बनाने का पहला प्रयास किया था पर अब इस संवाद को बनाने में चार नृत्यांगनाएं शामिल थीं।
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नृत्य में चित्र
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रज़ा की चित्रकला से नृत्य का संवाद
उसकी आँखों में एक कैनवास था
पांव थे कुचियाँ के मानिंद
होंठों पर थे कुछ वाटर कलर
लय में थीं रेखाएं
मुद्राओं में भाव
नर्तकी एक चित्र बना रही थी
मंच पर अपने नृत्य से
कर रही थी वह एक संवाद
पूरे ब्रह्मांड से
दूर अंतरिक्ष में जाती हुई
क्या नृत्य के जरिये भी चित्र बनाया जा सकता है? क्या दो विधाओं में इस तरह संवाद बनाया जा सकता है?
रजा फाउंडेशन ने कल शाम रजा जन्मशती के मौके पर एक अद्भुत कलात्मक प्रयोग किया। यह नवाचार देखकर दर्शक खुद अपने भीतर एक आंतरिक लय में डूब गए। एक दूसरी ही दुनिया में चले गए जिसमें ताल भंगिमा मुद्राएं आंगिक भाव और बोल भी शामिल थे। इस तरह उन्होंने एक कॉस्मॉस की भी रचना की। एक शून्य का निर्माण किया और जीवन सत्य और आनंद का संधान किया। एक अलौकिक संसार को विन्यस्त किया।
यह तीसरा अवसर था जब रजा साहब के चित्रों पर इस तरह नृत्य का कार्यक्रम हो रहा था।
आज से 28 साल पहले फ्रांस में रजा के चित्रों पर जयपुर घराने की नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली ने नृत्य का कार्यक्रम किया था। कला की दुनिया में यह पहला प्रयोग था।कविताओं पर नृत्य के कार्यक्रम होते रहते हैं, बिस्मिल्लाह ख़ान की शहनाई रविशंकर के सितारवादन पर तथा कुमार गन्धर्व, मल्लिकार्जुन मंसूर, भीमसेन जोशी की गायकी पर कविगण कविताएं लिखते रहे हैं; निराला, दिनकर, बच्चन, रघुवीर सहाय, अशोक वाजपेयी आदि की कविताओं पर नृत्य भी होते रहे हैं लेकिन चित्रों पर नृत्य के कार्यक्रम दुर्लभ ही हैं।
प्रसिद्ध कवि एवम् संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी के प्रयासों से यह नवाचार संभव हुआ। वे हमेशा कला की दुनिया में नवोन्मेष पर जोर देते रहे हैं और कला की विधाओं के बीच आपसी संवाद पर बल देते रहे हैं पर दुर्भाग्य से यह आपसी संवाद बहुत कम और विरल है।
संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित प्रेरणा श्रीमाली, रमा वैद्यनाथन और संगीत नाटक अकादेमी के बिस्मिल्लाह ख़ान पुरस्कार से सम्मानित युवा नृत्यांगना अन्वेषा महन्त ने बहुत ही गरिमा, तल्लीनता और गहन मुद्राओं, भंगिमा तथा ताजगी के साथ रजा साहब के चित्रों पर नृत्य किया।
अशोक वाजपेयी ने बताया कि रज़ा साहब की जन्मशती पर यह अभिनव कार्यक्रम इसलिए भी हो रहा है कि रज़ा साहब को नृत्य में भी रुचि थी। उनके चित्रों में भी एक लय है। एक दार्शनिकता भी है। यह प्रस्तुति रज़ा साहब के चित्रों की नृत्य में अनुकृति नहीं है बल्कि एक संवाद है। नृत्य का चित्रकला से संवाद।
संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित भरत नाट्यम की नृत्यांगना रमा वैद्यनाथन ने भी सुंदर प्रस्तुति की। उन्होंने रज़ा साहब के चित्रों को मंच पर प्रस्तुत कर अपना नृत्य पेश किया। यह बिल्कुल नया प्रयोग था।
कला की दुनिया में शायद ही किसी नर्तकी ने ऐसा प्रयोग किया हो। इस तरह कल की शीतलहरी से भरी शाम में नृत्य के भाव और मुद्राओं ने एक तरह की ऊष्मा भर दी।
92 वर्षीय राजनेता डॉक्टर कर्ण सिंह, 87 वर्षीय आलोचक मुरली मनोहर प्रसाद सिंह और 82 वर्षीय अशोक वाजपेयी इस ठंड में एक दर्शक के रूप में इस नृत्य का अवलोकन और रसास्वादन ही नहीं कर रहे थे बल्कि एक संवाद भी कायम कर रहे थे।