मुलताई गोलीकांड की कहानी डॉ सुनीलम की जुबानी

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ज से 25 साल पहले 12 जनवरी, 1998 के दिन बैतूल जिले के मुलताई तहसील के ग्राम सोनेगांव से साढे़ ग्यारह बजे मैं निकला था। मुलताई शहर के नागपुर नाका आते-आते हजारों किसान जुड़ गये। मुलताई गुड़ बाजार के आसपास अफरा-तफरी का माहौल था। पता चला कि कांशीराम जी सभा जल्दी खत्म कर हैलीकॉप्टर से वापस चले गये। थाने के सामने गोदी में छोटा सा बच्चा लेकर बाडेगांव की एक महिला मिली, जिसके सिर से खून बह रहा था। उसने बताया कि तहसील पर पुलिस वाले पत्थर और गोली चला रहे हैं।

मैं सीधा मुलताई थाने में गया। थाना प्रभारी ने कहा कि आज हम तुम्हारी नेतागीरी खत्म कर देंगे। मुझे कुछ समझ में नहीं आया क्योंकि किसान संघर्ष समिति ने 25 दिसंबर 1997 के गठन के बाद सोयाबीन और गेहूं की फसल लगातार 4 वर्षों तक खराब होने के कारण सरकार से फसली बीमा का लाभ देने, 5 हजार रुपये हेक्टेयर का सोयाबीन का मुआवजा देने, कर्जा माफी, बिजली बिल माफी और जानवरों को चारा उपलब्ध कराने की मांग करते हुए अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया था। 9 जनवरी को 75 हजार किसानों की 50 किलोमीटर दूर बैतूल तक ऐतिहासिक रैली निकाली थी, तथा 11 जनवरी को सफल बंद किया था।

सब कुछ पुलिस, प्रशासन की जानकारी में शांतिपूर्ण तरीके से हो रहा था। अधिकारियों की सहमति से ही यह तय हुआ था कि कांशीराम जी की सभा के बाद 12 बजे किसान संघर्ष समिति का तहसील की तालाबंदी का कार्यक्रम होगा। लेकिन जब हम मुलताई तहसील कार्यालय के एकदम सामने बस स्टैंड पहुंचे, तब हमने पुलिस गोलीचालन होते हुए देखा। मैं जीप के बोनट पर खड़ा हुआ, लाउडस्पीकर से बार-बार चिल्ला रहा था कि गोलीचालन बंद करो, किसान शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं।

तभी अचानक मेरे आसपास खड़े दो साथी गिर पड़े। मेरी नजर तहसील कार्यालय की खिड़की पर पड़ी, जहां मैंने तत्कालीन पुलिस अधीक्षक जी पी सिंह को गोली चलाते देखा।

मैं समझ गया कि मुझे जान से मारने का इरादा है तथा गलती से बगल के दो साथियों को गोली लग गयी है। मैं बोनट से कूद गया और साथियों की मदद से गोलीचालन में घायल साथियों को जीप में बिठाया।

गाड़ी का स्टेयरिंग सदाशिव गडेकर ने संभाला, जो आज मुलताई जनपद के उपाध्यक्ष हैं। हम 50 मीटर की दूरी पर स्थित शासकीय चिकित्सालय में गये। अस्पताल के सभी कमरे खचाखच भरे हुए थे। सभी कमरों में किसान थे। मुझे अस्पताल की नर्सों ने महिलाओं के प्रसूति वार्ड में अंदर भेज दिया, वहां संस्थापक प्रदेश अध्यक्ष टंटी चौधरी जी, कलावती बाई और 10-12 साथी मौजूद थे। बाहर गोलियां चलने की आवाज आ रही थी। पुलिस अस्पताल में भी गोली चला रही थी। शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया। मैंने सभी साथियों को कमरे से निकाल कर
जबरदस्ती गांव भिजवा दिया। क्योंकि मुझे डर था कि पुलिस जब मुझपर गोली चलाएगी तब मेरे साथी की जान भी खतरे में पढ़ सकती है। चिकित्सा अधिकारी डा. पी के तिवारी ने जिलाधीश रजनीश वैश्य को सूचना दे दी।

ज्यों ही रात का अंधेरा हुआ, स्वयं पुलिस अधीक्षक और जिलाधीश आकर मुझे मुलताई थाने की हवालात में ले गये। कपड़े उतार कर लात-जूता-बेल्ट और लाठियों से पीटना शुरू किया, जिसे थर्ड डिग्री ट्रीटमेंट कहा जाता है।
अमानवीय यातनाओं का दौर 36 घंटे चला। मैं लहूलुहान था। जो भी पुलिस वाला आता, बेहोशी की हालत में भी मुझे पीटता था।

अगले दिन रात को मुझे पारेगांव रोड पर ले जाया गया। बंदूक के साथ झाड़ियों में बेहोशी की हालत में फेंक दिया गया। फोटो खींचे गये। तभी आपस में पुलिस अधिकारी झगड़ने लगे, कहने लगे कि इसने 24 किसानों को मरवा दिया है। यह हमें भी मरवा देगा। हमारे भी बाल-बच्चे हैं। आईजी साहब खुद आकर एनकाउंटर करें।

मुझे वापस ले जाया गया। खाली कागजों पर अंगूठे लगवाये गये। अगले दिन सुबह मुझे हथकड़ी और बेड़ी लगाकर मजिस्ट्रेट के घर ले जाकर पेश किया गया। मजिस्ट्रेट ने हथकड़ी बेड़ी खोलने को कहा। इंस्पेक्टर ने इनकार कर दिया। उसने कहा कि यह खूंखार आतंकवादी है।

मजिस्ट्रेट ने कहा कि मैं जानता हूं कि आतंकवादी कौन है? पूरा गोलीचालन मैंने अपनी आंखों से देखा है। अगर हथकड़ी-बेड़ी नहीं खोलोगे तो मैं तुम्हारी गिरफ्तारी का आदेश निकाल दूंगा।

फिर उन्होंने आवाज देकर अपनी बेटी को बुलाकर कहा कि देखो कभी-कभी देवता इस रूप में भी आते हैं। हल्दी का दूध पिलवाया। डिटॉल से खून साफ करवाया और कहा कि मुझे मालूम है कि पुलिस एनकाउंटर करना चाहती है। मैं सीधे भोपाल जेल पुलिस वैन में ताला लगवाकर भेज रहा हूं। जेल से 4 महीने बाद जमानत हुई।

जबलपुर उच्च न्यायालय में सरकार ने जमानत देने का विरोध करते हुए तर्क दिया कि यदि डा. सुनीलम मुलताई जाएगा, तो लोग उसे जिंदा जला कर मार डालेंगे; क्योंकि उसने किसानों की हत्या करवायी है। लेकिन तमाम धमकियों के बावजूद जेल से मैं सीधा मुलताई गया। पुलिस दमन झेला। हर 12 तारीख को किसान महापंचायत का सिलसिला जारी रखा। देश भर के किसान संगठनों के बड़े नेता महेंद्र सिंह टिकैत, विजय जावंधिया, शरद जोशी, नंजुदा स्वामी, जनसंगठनों के नेता मेधा पाटकर, स्वामी अग्निवेश, सुनील भाई, समाजवादी नेता पूर्व सांसद सुरेन्द्र मोहन जी,पूर्व केंद्रीय मंत्री मधु दंडवते जी, शरद यादव, जयपाल रेड्डी जी, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, देवेगौडा, भी मुलताई पहुंचे। पीयूसीएल सहित साथ तमाम मानव अधिकार संगठनों ने जनसुनवाई की, डा. बीडी शर्मा जी और सुरेन्द्र मोहन जी ने लगातार किसान संघर्ष समिति का साथ दिया, मुलताई आकर लगातार किसानों का मार्गदर्शन किया।

चिखलीकला की महापंचायत में डा. बीडी शर्माजी, मेधा पाटकर जी तथा मेरे बार-बार मना करने के बावजूद किसान महापंचायत ने मुझे चुनाव लड़ाने का फैसला किया। चुनाव हुआ। कुल वोट के 50 प्रतिशत वोट देकर मुझे किसानों ने विधायक बनाया। 5 साल बाद भी 60 प्रतिशत वोट देकर फिर एक बार विधायक चुना। इस बीच मुझ पर 250 किसानों पर 67 मुकदमे चलते रहे। हालांकि मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा मुकदमे वापस लेने, शहीद स्तंभ बनवाने, शहीद किसानों के परिवारों को स्थायी नौकरी दिलवाने की घोषणा सदन के भीतर और बाहर लगातार की जाती रही, लेकिन मुकदमे चलते रहे।
साजिशपूर्वक पहले बैतूल लोकसभा क्षेत्र को आरक्षित कर दिया गया। बाद में मुलताई क्षेत्र का परिसीमन कर, करोड़ों रुपये खर्च कर जातिगत समीकरण बनाकर मुझे हराया गया।

चुनाव हारते ही सभी केस तेजी से चलने लगे। हर हफ्ते हमें पेशी पर जाना पड़ता था, मुझ पर एवं किसानों पर दर्ज किये गये सभी 140 प्रकरणों में एड. आराधना भार्गव ने निशुल्क पैरवी की। 3 प्रकरणों में षड्यंत्रपूर्वक मुझे और तीन साथियों को आजीवन कारावास की सजा 17 वर्ष बाद सुनाई गयी। मुझे कुल 54 वर्ष की सजा हुई।

चार महीने जेल काटने के बाद मैं जमानत पर रिहा हुआ। तब से आज तक जबलपुर हाईकोर्ट से जमानत पर हूं। इस कारण आज भी मुलताई और बैतूल न्यायालय में लगातार जाना होता है।

गत 25 वर्षों से किसान संघर्ष समिति के स्थापना दिवस 25 दिसंबर और 12 जनवरी को शहीद किसान स्मृति सम्मेलन आयोजित करते हैं। सम्मेलन के पहले हम लगभग 100 गांवों का दौरा नियमित करते हैं। हर माह 12 तारीख को किसान पंचायत आयोजित की जाती है। कोरोना काल में भी यह सिलसिला नहीं टूटा, अब तक 300 किसान पंचायतें की जा चुकी हैं। 12 जनवरी 23 को 25वीं किसान पंचायत होगी।

मुझे संतोष हैं कि गत वर्षों में मैं किसानों की एकजुटता बढ़ाने में कामयाब रहा हूं। किसान संघर्ष समिति शुरू से ही जन आंदोलनों के साथ जुड़ी रही। मंदसौर गोलीकांड के बाद हमने अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का गठन किया। सम्पूर्ण कर्जा मुक्ति और लाभकारी मूल्य की गारंटी कानून बनाने और लागू कराने का प्रयास किया लेकिन सरकार ने 3 किसान विरोधी कानून लागू कर दिए जिन्हें रद्द कराने में संयुक्त किसान मोर्चा को 380 दिन लग गए। 715 किसानों की शहादत हमें झेलनी पड़ी। केंद्र सरकार को किसानों की ताकत के आगे घुटने टेकने पड़े।
3 कानूनों को रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

किसान संगठन फिर एमएसपी पर खरीद की कानूनी गारंटी लागू कराने की मांग को लेकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू कर चुके हैं। 26 नवंबर 22 को देश भर में राजभवनों पर प्रदर्शन किए गए। 26 जनवरी को देशभर में ट्रैक्टर रैली निकाली जाएंगी।

यक्ष प्रश्न यह है कि इस बार सरकार आंदोलन से कैसे निपटेगी? कानून बनाएगी या मुलताई और मंदसौर की तरह गोलीचालन के माध्यम से किसानों से निपटेगी?
हम मुलताई गोलीचालन के बाद से ही जनांदोलनों पर आंदोलनों के दौरान पुलिस गोलीचालन पर कानूनी प्रतिबंध की मांग कर रहे हैं। लेकिन अब तक सरकारें इस मांग को नजरअंदाज करती रही हैं। राजनीतिक दलों ने भी इस मांग को अपने चुनावी एजेंडा में स्थान नहीं दिया है. सभी पार्टियां चाहती हैं कि उनके पास सरकार में काबिज होने पर जनांदोलनों को हिंसात्मक तरीके से कुचलने का अधिकार होना चाहिए।

निचोड़ यह है कि मुलताई गोलीचालन से सरकारों और राजनीतिक दलों ने कोई सबक नहीं सीखा है। वे किसान, किसानी और गांवों के खात्मे पर आमादा हैं। परंतु किसान भी आंदोलन के लिए कमर कसकर तैयार हैं।

जहां तक किसानों के मुद्दों का सवाल है, किसानों को राजस्व और फसल बीमा का मुआवजा पहले की तुलना में अधिक मिल रहा है परंतु अभी भी मुआवजा नाकाफी है। अनावरी तय करने की इकाई अभी किसान का खेत तो नहीं हुई परंतु तहसील की जगह पटवारी हलका हुई है, जो किसानों के लिए नाकाफी है।

25 वर्षों में यह अंतर जरूर आया है कि किसान अपने अधिकारों के लिए पहले की तुलना में अधिक सजग और संगठित हैं। इस स्थिति तक पहुंचाने में किसान संघर्ष समिति ने भी अपनी सीमित ताकत के साथ अहम भूमिका निभाई है।

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