— मीनाक्षी प्रसाद —
मैं कोई लेखिका नहीं हूँ। एक शास्त्रीय गायिका हूँ। सविता देवी की शिष्या पर साहित्य से दिलचस्पी है।
अपने देश में हम किसी महापुरुष या लेखक को याद करते हैं तो उनकी पत्नी को हम अक्सर भूल जाते हैं। पोस्टर और बैनर पर भी उनकी पत्नी का नाम या फोटो नहीं लगा होता है लेकिन ‘स्त्री दर्पण’ ने एक नया संकल्प लिया है। वह जब कभी किसी लेखक का जन्मदिन मनाएगा उसकी पत्नी को भी जरूर याद करेगा, पोस्टर-बैनर में उनका नाम-फोटो जरूर रहेगा। हम प्रेमचन्द की जयंती हर साल मनाते हैं पर उनकी पत्नी शिवरानी देवी को कभी याद नहीं करते जबकि वह खुद एक महत्त्वपूर्ण लेखिका थीं, उनके दो कहानी संग्रह भी निकले थे। प्रेमचन्द के निधन के बाद ‘हंस’ का संपादन उन्होंने किया था, ‘प्रेमचन्द घर में’ जैसी महत्त्वपूर्ण किताब लिखी। इसलिए स्त्री दर्पण जब कभी निराला, प्रसाद या मुक्तिबोध को याद करेगा तो उनकी पत्नी को भी याद करेगा। स्त्री दर्पण ने शिवरानी देवी पर कार्यक्रम किया था। आज तक हिंदी साहित्य में शिवरानी जी पर कार्यक्रम नहीं हुए थे। हमारे समाज में यह परंपरा शुरू होनी चाहिए।गांधी जयंती पर कस्तूरबा को भी याद करें। जेपी जयंती पर प्रभावती जी को भी।
बच्चन देवी का जन्मदिन तो पता नहीं आज तक। उनके परिवार वालों को भी नहीं मालूम क्योंकि उस जमाने में जन्म प्रमाणपत्र तो बनते नहीं थे लेकिन उनका जन्म 1908 में हुआ था। 1928 में उनका विवाह बीस साल की उम्र में हुआ। 16 नवम्बर 1940 को उनका निधन हो गया था। ‘शिवपूजन सहाय समग्र’ में बच्चन देवी पर एक अध्याय ही है।
वह बिहार के सारण जिले के बिलासपुर गांव में एक छोटे जमींदार परिवार की थीं। स्कूली शिक्षा उनकी नहीं हुई थी।बीसवीं सदी के दूसरे दशक में स्त्री शिक्षा गांवों तक नहीं उपलब्ध थी।
बच्चन देवी की रुचि साहित्य में थी और वे स्वाध्याय से किताबें पढ़ती थीं।
शिवपूजन सहाय की दो पत्नियों का आकस्मिक निधन हो गया था। जयशंकर प्रसाद और मैथिलीशरण गुप्त की भी दो पत्नियों का आकस्मिक निधन हो गया था और इन तीनों लेखकों की तीसरी शादी भी हुई थी। जब शिवपूजन सहाय की शादी बच्चन देवी से होने वाली थी तो उन दोनों के बीच विवाह-पूर्व एक लंबा पत्राचार चला था और उस पत्राचार के कुछ पत्र कुछ साल पहले इंडिया टुडे के साहित्य विशेषांक में छपे थे, संभवतः यह हिंदी के किसी लेखक के विवाह-पूर्व प्रेम-पत्राचार का पहला दस्तावेज था जो सामने आया। उन पत्रों को पढ़ने से पता चलता है कि बच्चन देवी ने स्वाध्याय से काफी कुछ अध्ययन किया था और साहित्य में उनकी दिलचस्पी गहरी थी और यही कारण था कि उन्होंने एक लेखक से विवाह का प्रस्ताव स्वीकार किया था।
शिवपूजन सहाय विवाह-पूर्व उनको गांव में किताबें भी भेजते थे और उन पत्रों में उन्होंने उनसे पूछा भी है क्या आपने पढ़ीं, कैसी लगीं। शिवपूजन जी ने शादी में निराला को भी आमंत्रित किया था लेकिन वह किन्हीं कारणों से गांव नहीं जा सके थे, पर रामवृक्ष बेनीपुरी, जानकी वल्लभ शास्त्री, जनार्दन प्रसाद द्विज जैसे लोग उस शादी में गए थे। शिवपूजन सहाय की पत्नी शादी के बाद बनारस आईं तो निराला, पांडेय बेचन शर्मा उग्र जैसे लोग उन्हें देखने गए थे और उन्होंने दुल्हन को मुंहदिखाई भी दिया था। उग्र जी ने तो शिवपूजन सहाय की पत्नी पर एक संस्मरण भी लिखा था।
बच्चन देवी लेखकों का बहुत ही सेवा-सत्कार किया करती थीं। उन्हें अपने समय के सभी महत्त्वपूर्ण लेखकों व महापुरुषों का स्वागत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनसे शिवपूजन जी को 2 पुत्र और दो पुत्रियां हुईं। उनके दोनों पुत्र अंग्रेजी के प्रोफेसर हुए। ज्येष्ठ पुत्र ने कैथरीन मैन्सफील्ड पर, कनिष्ठ पुत्र ने एडगर एलन पो पर पीएचडी की। बच्चन देवी का 1946 में ही निधन हो गया। मां का निधन कम उम्र में हो जाने के कारण सभी संतानों का जीवन बड़ा संघर्षपूर्ण बीता और शिवपूजन सहाय ने ही उनका पालन-पोषण किया।
शिवपूजन जी ने पत्नी के निधन के बाद उनकी स्मृति में 1954 में एक संगोष्ठी की शुरुआत की जिसका उदघाटन पुरुषोत्तम दास टंडन ने किया। दरअसल उन्हें आचार्य नरेंद्रदेव ने 1500 रुपए का वयोवृद्ध साहित्य पुरस्कार दिया था जिसमें शिवपूजन जी ने 1500 रु. की राशि अपनी ओर से मिलाकर बच्चन देवी गोष्ठी की शुरुआत की थी; पटना में यह गोष्ठी हर साल होती थी और अब तक करीब 185 गोष्ठियों हो चुकीं जिनमें महापंडित राहुल सांकृत्यायन, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, बालकृष्ण शर्मा नवीन, किशोरी दास वाजपेयी, जैनेंद्र कुमार, उदयशंकर भट्ट, रामवृक्ष बेनीपुरी, वियोगी हरि, भगवतीचरण वर्मा, दिनकर, मन्मथनाथ गुप्त, उपेंद्रनाथ अश्क, त्रिलोचन, अमृतराय, धर्मवीर भारती, उदय नारायण तिवारी, नागार्जुन, विद्यानिवास मिश्र जैसे अनेक विद्वानों के भाषण हुए। कुछ विदेशी विद्वानों ने भी बच्चन देवी गोष्ठी में भाषण दिया था जिनमें मैकग्रेगर, ओदोन स्मेकल के अलावा चार्ल्स नेपियर थे जो नेतरहाट स्कूल के पहले प्रिंसिपल थे। बिहार हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सतीशचन्द्र मिश्र ने भी 1969 में इस गोष्ठी में भाषण दिया था।