रामजी प्रसाद ‘भैरव’ की तीन कविताएँ

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पेंटिंग- अनिल शर्मा


1. खरोंच के निशान हैं

जब मेरा माथा
दुखने लगता है
दिन भर की कचर पचर से
आंख बन्द कर लेता हूं
कुछ भी याद नहीं रखना चाहता
किससे मिला, सुख या दुख
किसने दी थोड़ी सी प्रसन्नता
किसने जले पर नमक छिड़का
किसने उपहास में उड़ा दिए
मेरे मासूम से सवाल
हंसी ठहाकों में
मैं उन्हें स्मृतियों से बाहर
छोड़ आया था कब का
इस समय मेरा माथा केवल
तुम्हारे कोमल स्पर्श की
कल्पना चाहते थे
तुम्हारी कोमल सींक सी
उंगलियों के पोर
छू रहे हो
केवल मेरा माथा ही नहीं
मेरा अंतस भी
जहां कुछ क्रूर निर्मम
लोगों द्वारा खरोंच के निशान हैं।

2. अच्छा किया तस्वीरें हटा दीं

कभी सोचता हूं
एलबम से तस्वीर हटाने से पूर्व
तुमने जेहन से तस्वीरें हटाई होंगी
बल्कि हर उस जगह से
जहां करीने से
कभी सपनों की तरह सजाया था मुझे
कभी कभी तो यह भी
सोच लेता हूं
तुम्हें दिल से खेलने के बजाय
किसी खिलौने से खेल लेना चाहिए था
आख़िर में
खिलौना टूटने का दर्द
न तुम्हें होता न मुझे
जैसे तुम अब हंस रही हो
ठीक वैसे ही
तब भी हंसती
तुम्हारे लिए क्या फर्क होता
बस अदा ही तो ठहरती
लेकिन नहीं
तुमने तो अपनी स्मृतियों की कैद से
मुझे आज़ाद कर दिया
अच्छा किया प्रिये !
अच्छा किया जो तस्वीरें हटा दीं।

पेंटिंग- अनिल शर्मा

3. बरसात की उस रात का सपना

सच तो यह है कि
बरसात की उस रात का सपना
बिल्कुल सगा और अपना था
आकाश में अल्हड़ बादल
खूब उमड़ घुमड़ रहे थे
चांद को घनी अंधियारी रात ने निगल लिया था
तारे तो मारे भय के चुपचाप खिसक लिये
हवाएं भी स्पर्धा में होड़ी होड़ा बह रही थीं
वृक्ष सनसनाते हुए
एक दूसरे को छूने के लिए
बांहें फैला उठे थे
वर्षा की बूंदें
आकाश से तीर की तरह बरस उठीं
सब छिपे रहे अपने घरौंदों में
पर दो प्रेमी भीग रहे थे
एक दूसरे से लिपटे
वर्षा की बूंदों की मार सहते हुए आलिंगनबद्ध
उन्हें किसी प्रकार की चिंता या भय नहीं था
आकाश में दामिनी दमक दमक कर
भयाक्रांत करने की कोशिश करती
पर उन्हें कोई परवाह नहीं
जैसे किसी दूसरी दुनिया के प्राणी हों
बरसात की उस रात का सपना
चाह कर भी नहीं टूटा।

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