नचिकेता नागरिक-धर्म के निर्वाह के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रहे

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स्मृतिशेष : नचिकेता देसाई


— आनंद कुमार —

ल वरिष्ठ पत्रकार और प्रतिबद्ध समाजसेवक नचिकेता देसाई के निधन की हतप्रभ कर देने वाली खबर मिली. क्योंकि परसों ही दिन में लंबी बात हुई थी. मैंने कवि राजेंद्र राजन के सुझाव पर फ़ोन करके श्री नारायण देसाई रचित गांधी जीवनी के अनुवाद और प्रकाशन की अनुमति माँगी थी. वह इस प्रस्ताव से प्रसन्न हुए क्योंकि वह राजेंद्र राजन द्वारा एक अन्य किताब के अनुवाद से बहुत प्रभावित थे. सहर्ष स्वीकृति देने के बाद अपनी लेखन-संपादन योजना की चर्चा करने लगे. वह अपने पितामह श्री महादेव देसाई के बारे में लिखी अपनी किताब के सुंदर प्रकाशन से अत्यंत संतुष्ट थे. इस अनुभव से प्रोत्साहित होकर अपने यशस्वी पितामह श्री नारायण देसाई की 1940 से निधन के पहले तक लिखी दैनिक डायरी के संपादन में जुट चुके थे.

1970 के दशक में नचिकेता जी से हमारा परिचय काशी विश्वविद्यालय में हुआ और आजीवन घनिष्ठता बनी रही. वह विनोबा के विचारों से प्रभावित थे और हम डा. लोहिया के अनुयायी थे. लेकिन गांधी विचार के प्रति झुकाव हमारी निकटता का आधार था. सर्वोदय आंदोलन से जुड़ी तरुण शांति सेना के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने बनारस की विद्यार्थी राजनीति के अतिरिक्त संपूर्ण क्रांति आंदोलन में भी उल्लेखनीय योगदान किया.

महात्मा गांधी के स्वनामधन्य सचिव महादेव देसाई का पौत्र और सर्वोदय चिंतक नारायण देसाई का पुत्र होने के नाते उनकी विशिष्ट विरासत थी. लोकनायक जयप्रकाश नारायण के प्रिय थे. सर्वोदय आंदोलन के सभी नायकों से निकट परिचय था. लेकिन हमने उन्हें इसके बारे में किसी प्रकार के घमंड से बहुत दूर पाया. एक साधारण विद्यार्थी की तरह से राजघाट से रोज साइकिल से बीएचयू पढ़ाई के लिए आना और कभी-कभी तरुण शांति सेना के पर्चे बाँटना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था. पढ़ने-लिखने में उनकी शुरू से रुचि थी. इसलिए अपने जैसी प्रवृत्ति वाले सहपाठियों की एक टोली भी बना ली थी. इसमें सुशील त्रिपाठी, सुधेंदु पटेल, अजय मिश्रा, नरेंद्र नीरव, सुरेश ‘भ्रमर’ आदि शामिल थे. कुछ समय बाद उनके छोटे भाई अफलातून देसाई भी एक समाजवादी विद्यार्थी नेता के रूप में सक्रिय हो गए.

नचिकेता की गुजरात के बुद्धिजीवी समाज और सामाजिक कार्यकर्ताओं में बहुत इज्जत थी. नवनिर्माण आंदोलन के मनीषी जानी, गुजरात विद्यापीठ के कुलपति सुदर्शन अयंगार, नागरिक अधिकारों के आंदोलनकारी एडवोकेट मुकुल सिन्हा और स्वराज अभियान के के.आर. कोश्टी (वकील) से विशेष निकटता थी. इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आंदोलन में उन्होंने सक्रिय योगदान किया. गुजरात में आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य थे. बाद में ‘आप’ में व्यक्तिवाद की बीमारी बढ़ते देख अलग हो गए थे. लेकिन नागरिक धर्म के निर्वाह के लिए हमेशा प्रतिबद्ध बने रहे. इसी क्रम में उन्होंने साबरमती आश्रम के व्यवसायीकरण करने का खुला विरोध किया.

नचिकेता हमारे लिए गुजरात के सामाजिक-राजनीतिक जीवन के व्याख्याकार थे. जानकारी का अक्षय भंडार थे. लेकिन इधर स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थिति के कारण सबकुछ स्थगित करना पड़ा. पहले किडनी में कैंसर की रिपोर्ट आयी और आपरेशन करना पड़ा. फिर हृदय रोग का दौरा पड़ा. लेकिन वह धीरज से चिकित्सा के अनुशासन का पालन करते रहे. क्रमश: जीवनयात्रा के समापन की घड़ी नजदीक आने लगी. फिर भी अपने भरसक सहज रहे और अंतिम दिनों तक अपनी दिनचर्या का पालन करते थे. कभी-कभी किसी मित्र से फोन से बात करने का अवसर मिलने पर बहुत प्रफुल्लित हो जाते थे.

गांधी जीवनयात्रा, सर्वोदय आंदोलन और नयी पीढ़ी को नेतृत्व का अवसर दिलाना उनकी विशेष रुचि के काम थे. वह आशावादी बुद्धिजीवी थे. आम आदमी पार्टी का प्रयोग विफल होने पर भी परिवर्तन की राजनीति से सक्रिय संबंध नहीं खत्म किया. गुजरात के चुनाव परिणाम से नाखुश थे. इधर राहुल गांधी की पदयात्रा के परिणामस्वरूप फिर से आशान्वित हो रहे थे. तभी साँसों का तानाबाना टूट गया…


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