इतिहास और बदले का सिद्धांत

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किशन पटनायक (30 जून 1930 – 27 सितंबर 2004)

— किशन पटनायक —

(किशन जी ने यह टिप्पणी सितम्बर 1990 में लिखी थी, और यह उनकी पुस्तक ‘विकल्पहीन नहीं है दुनिया’ में संकलित है. संघ परिवार के घृणा आधारित राष्ट्रवाद का एक प्रमुख पहलू इतिहास को लेकर उसका प्रतिशोधी रवैया भी है. इस संदर्भ में किशन जी की टिप्पणी को फिर फिर पढ़ा जाना चाहिए.)

अतीत-युग की घटनाओं का बदला लेना अगर लोग शुरू करेंगे तो भारत एक पागलखाना हो जाएगा।

न्दिर-मसजिद विवाद के बारे में सोचने वाले लोग इतिहास के इस सिद्धांत पर ध्यान दें। यह पाठ्य पुस्तकों में सबक के तौर पर नहीं लिखा गया है। इसलिए पढ़े-लिखे लोग भी भ्रमित हो जाते हैं। अतः हम इसको सबक की शक्ल में लिपिबद्ध कर रहे हैं।

दो या तीन सौ साल में इतिहास का एक युग पूरा हो जाता है। तीन सौ साल से अधिक यह होता नहीं है। तीन सौ साल के बाद हरेक घटना अतीत-युग की हो जाती है। उसके साथ आप सीधी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर सकते।

उन दिनों के योद्धाओं से आप प्रेरणा ले सकते हैं लेकिन उनकी वीरता की आप वाहवाही नहीं ले सकते। उस पल की उपलब्धियों को आप आगे नहीं बढ़ा सकते। सिर्फ उनकी स्वस्थ धाराओं का नवीकरण और पुनर्जागरण कर सकते हैं। उन दिनों की गलतियों को आप सुधार नहीं सकते, जैसे मीरजाफर या जयचंद की गलती को सुधार नहीं सकते, सिर्फ आगे के लिए सतर्क हो सकते हैं।

इसी तरह उस युग के अपमानों का आप बदला नहीं ले सकते। होंठों पर तटस्थ मुसकान लिये आप उन पर थोड़ी देर मनन कर सकते हैं। बीते युग के असंख्य युद्धों और सन्धियों, जय-पराजय और मान-अपमान की घटनाओं को इतिहास के खेल के रूप में देखकर आपको अनुभव होगा कि आपकी छाती चौड़ी हो रही है, धमनियों में रक्त का प्रवाह तीव्र हो रहा है। हर युद्ध के बाद रक्त का मिश्रण होता है, और हमारी कौम तो दुनिया की सबसे अधिक हारी हुई कौम है।

तीन सौ साल बाद किसी की कोई सन्तान भी नहीं रह जाती है, सिर्फ वंशधर रह जाते हैं। किसी भी भाषा में परदादा और प्रपौत्र के आगे का संबंध जोड़ने वाला शब्द नहीं है। नाती, पोते, प्रपौत्र के बाद रिश्ते की स्मृति नष्ट हो जाती है। इसलिए कबीलाई संस्कृति में भी बदला लेने का अधिकार नाती-पोते तक रहता है।

युग बदलने से कर्म, विचार और भावनाओं का संदर्भ भी बदल जाता है। हमारे युग में मसजिद के स्थान पर मन्दिर बनाने का लक्ष्य हो नहीं सकता क्योंकि हमारे युग का संदर्भ भिन्न है।

बाबर द्वारा मंदिर तोड़ने का कोई तथ्य इतिहास में नहीं है, बल्कि उलटी बात है। बाबर ने अपने वसीयतनामे में अपने पुत्र को हिदायत दी थी कि तुमको हिन्दुस्तान का राजा बनना है तो गोमांस खाना छोड़ दो, मन्दिर को भी मत तोड़ो।

बाबर द्वारा मन्दिर तोड़े जाने के बारे में जितना ऐतिहासिक अनुमान है, उससे अधिक प्रमाण इसके हैं कि हमलावर आर्यों ने द्रविड़ों को मार-मारकर दक्षिण में भगा दिया। विश्व हिन्दू परिषद या भाजपा के ऐतिहासिक सिद्धांत के मुताबिक द्रविड़ों को संगठित होना चाहिए और आर्य-भगाओ आन्दोलन शुरू कर देना चाहिए। अगर रावण-वध के प्रतिवाद में राम-लक्ष्मण का पुतला जलाया जाए तो भाजपा की क्या प्रतिक्रिया होगी? कभी-कभी दलित नेता असन्तुलित होकर अपने भाषणों में कह देते हैं कि ब्राह्मण-राजपूत, हरिजनों की बहू-बेटियों की इज्जत लूटते रहे हैं, हमें इसका बदला लेना होगा। बदले के इस सिद्धांत को भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद पुष्ट कर रहे हैं।

अतीत-युग की घटनाओं का बदला लेना अगर लोग शुरू करेंगे तो भारत एक पागलखाना हो जाएगा।

इतिहास की गति संबंधी उपरोक्त मर्यादा का जहाँ भी उल्लंघन हुआ है, वहाँ विपर्यय घटित हुआ है। हिटलर ने ऐतिहासिक मर्यादा को तोड़ा था, तो एक विश्व-विपर्यय हुआ और जर्मनी तथा यूरोप तहस-नहस हो गए। सारी दुनिया का मार्गदर्शक बनने की प्रतिभा जिस जर्मनी में थी, वह आज अमरीका को झुक कर सलाम करता है।

इजराइल में भी इस ऐतिहासिक मर्यादा का उल्लंघन हुआ, जब ब्रिटेन और अमरीका के अस्त्र-शस्त्र बल पर यहूदियों ने दो हजार साल पीछे की घटना का बदला लिया। इजराइल एशिया का घृणित देश है। महान मस्तिष्कों की अधिकारी यहूदी जाति अमरीका की सैन्य शक्ति पर आश्रित हो गई है।

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