क्या हमारे देश में बनाना रिपब्लिक के दिन शुरू हो गए?

0
कार्टून साभार


— डॉ सुरेश खैरनार —

द्रास हाईकोर्ट के वकीलों में से एक श्रीमती विक्टोरिया गौरी नाम की महिला की अतिरिक्त न्यायमूर्ति के पद पर नियुक्ति को लेकर हंगामा मचा हुआ है. वह भारतीय जनता पार्टी की सक्रिय पदाधिकारी रही हैं इस कारण यह विवाद चल रहा है.

इस प्रसंग को देखते हुए, मुझे पचास साल पहले की एक घटना याद आ रही है. नागपुर के एक वरिष्ठ वकील जो पचास वर्षों से भी अधिक समय से मेरे करीबियों में से एक थे उनकी पिछले साल वृद्धावस्था के कारण मृत्यु हो गई. लेकिन सत्तर के दशक में हाईकोर्ट के जज के रूप में उनकी नियुक्ति होते-होते रह गयी थी, कारण था उनके छोटे भाई और बहन का जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में शामिल होना. फिर 1977 में जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद के समय फिर से उनका नाम जज के लिए आया. लेकिन इस बार भी उनकी नियुक्ति नहीं हो सकी, क्योंकि जेपी आंदोलन के विरोध में काम करने वाली दूर की उनकी एक रिश्तेदार नागपुर आने के समय उनके घर पर ठहरा करती थीं! यह उदाहरण मुझे अधिकृत रूप से मालूम है !

श्रीमती विक्टोरिया गौरी वर्तमान सत्ताधारी दल की पदाधिकारी ही नहीं हैं, वह कन्याकुमारी जिले की पहली महिला वकील रही हैं और भारतीय जनता पार्टी के अखिल भारतीय महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महासचिव भी ! और मोदी सरकार ने उन्हें अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के पद पर नियुक्त किया था, उनके ‘पूर्व कार्य’ को देखते हुए ! उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कई चर्चाओं में प्रवक्ता के रूप में हिस्सेदारी की थी, लव जेहाद तथा धर्मपरिवर्तन जैसे मुद्दों पर! संवेदनशील मुद्दों पर उनकी आपत्तिजनक टिप्पणियां सार्वजनिक जानकारी में हैं ! वह भारतीय जनता पार्टी की चुनावी राजनीति में भी सक्रिय रही हैं और खुद भी जनप्रतिनिधि रह चुकी हैं. इस सब के बावजूद उन्हें अतिरिक्त न्यायाधीश की शपथ दिलाई गई है ! इस तरह की विवादास्पद महिला को न्याय करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, तो स्वाभाविक रूप से उनके न्यायिक निर्णयों पर सवालिया निशान लगेगा ही !

अतिरिक्त न्यायाधीश के तौर पर उनकी नियुक्ति को लेकर, किसी ने आपत्ति करते हुए, कोर्ट में याचिका दायर करने की कोशिश की. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया है ! और विक्टोरिया गौरी के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण करने की औपचारिकताएं पूरी कर लेने के बावजूद, इस मामले की काफी चर्चा है !

मुख्य रूप से हमारे देश की न्यायपालिका और वर्तमान केंद्र सरकार के बीच में कॉलेजियम को लेकर काफी विवाद चल रहा है ! आए दिन कानून मंत्री से लेकर उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ और एक तरह से पूरी सरकार की ही कॉलेजियम को लेकर आपत्ति जारी है ! कानून मंत्री तो साफ-साफ कह रहे हैं कि “सरकार की सिफारिश पर न्यायालय को जजों की नियुक्ति करनी चाहिए !” कहीं श्रीमती विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति न्यायपालिका में वर्तमान केंद्र सरकार के हस्तक्षेप का नतीजा तो नहीं है? यह अंदेशा इसलिए पैदा होता है, क्योंकि भारत के न्यायिक इतिहास में पहली बार, आज से पांच साल पहले, सर्वोच्च न्यायालय के चार न्यायाधीशों – जस्टिस चलमेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसफ और जस्टिस रंजन गोगोई – ने अपने सरकारी आवास पर 12 जनवरी, 2018 के दिन, पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा था कि “वह बहुत दबाव में काम कर रहे हैं !”

2014 से, वर्तमान सरकार आने के बाद से, सत्ता सत्तारूढ़ दल तथाकथित मुख्यधारा के मीडिया संस्थानों को अपनी तरफ करने में कामयाब हो गया है ! और यही बात हमारे देश की अत्यंत संवेदनशील एजेंसियों आईबी, सीबीआई, ईडी तथा पुलिस, पैरा मिलिटरी, मिलिटरी तथा शिक्षा, स्वास्थ्य, रेल, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों तथा यातायात के सभी विभागों को लेकर कही जा सकती है!

वर्तमान समय में, देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था संसद की भी स्वायत्तता ताजा बजट सत्र के दौरान उजागर हो चुकी है ! किस तरह से, विरोधी दलों के नेताओं के भाषणों के महत्वपूर्ण अंशों को ! संसदीय कार्यवाही के रेकॉर्ड से हटाया गया ! यह भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार देखने में आ रहा है ! और प्रधानमंत्री खुद चिल्ला-चिल्ला कर, छाती ठोंकते हुए, देश की 140 करोड़ जनसंख्या का सुरक्षा-कवच हासिल होने और नेहरू सरनेम अपने नाम के आगे क्यों नहीं लगाते, जैसी बेसिरपैर की बातें घंटा भर करते हैं, मगर उन्हें कोई रोक नहीं लगाई ! उलटे संपूर्ण देश में उसे प्रचार-प्रसार के लिए विशेष रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है !

यह सब कुछ देखते हुए लगता है कि हमारे देश की सभी संवैधानिक संस्थानों ने वर्तमान सरकार के सामने घुटने टेक दिए हैं !

जबकि हमारे देश की आजादी के पचहत्तर साल होने के उत्सवों का सिलसिला जारी है ! और आने वाले 25 वर्ष मतलब अमृतकाल बोलकर उसके भी तरह-तरह के कार्यक्रम किए जा रहे हैं ! लेकिन इन उत्सवों की आड़ में हमारे देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं को मजबूत करने की जगह कमजोर करने के कृत्य को क्या कहेंगे? बनाना रिपब्लिक !

Leave a Comment