कविता का हिन्द स्वराज

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किशन पटनायक (दायें) के साथ लेखक


— कश्मीर उप्पल —

किशन पटनायक की कविता? अच्छा, इस विधा में भी लिखा है। किशन पटनायक के पाठकों की यह जिज्ञासा भी उनकी इस कविता को महत्त्वपूर्ण बना देती है। आखिर कविता में अपनी बात कहने की बाध्यता क्या होगी? किशन पटनायक का लेखन हमारे समय के अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर है। वे हमारे समय के एक ऐसे द्रष्टा हैं जो हमारी दुनिया का स्वप्न भंग कर एक और स्वप्न रचते भी हैं ।

किशन पटनायक इस कविता के पूर्व एक सूचना भी हमें देते हैं, ‘भोपाल गैस त्रासदी की बरसी के दिन सारो वीवा की याद में लिखी गयी एक कविता’। यह सूचना हमें सचेत करती है कि हमारा सामना संसार के विरोधाभासों/विरोधाभासों के संसार से है। किशन पटनायक की कविता को देखना सूर्य को देखना है। जल, थल, आकाश पर बनते उसके प्रतिबिम्ब हो देखना है। इस कविता पर भोपाल गैस त्रासदी और सारो वीवा का रक्तिम वितान तना हुआ है। ग्लोबीकरण का सागर संसार के तटों पर पछाड़ खा रहा है। हमें मनु और दो ध्रुव सभ्यताओं के आदिपुरुष याद आते हैं जो जल प्लावन से एक ऊंची दुनिया की ओर हमें ले चलेंगे।

वंशवती नदी के तट पर
वंशवती नदी के मनोरम अंधकार में
जब होंगे हम एक नाव पर सवार

यूनियन कार्बाइड में छुपा मृत्यु का रहस्य एक पूरे शहर के जीवन को मृत्यु के अंधकार से ढक लेता है। सभी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भी कुछ ऐसा खेल खेल रही हैं जिसमें मृत्यु प्रत्यक्ष दीखती नहीं हैं पर वह मंडराती रहती है- पूरी सभ्यता के ऊपर। शैल कम्पनी द्वारा नाइजीरिया में तेल का खनन किया जाता है। इस प्रक्रिया में किसानों की हजारों एकड़ भूमि नष्ट हो गई है। वहाँ के प्रमुख कवि केन सारो वीवा की अगुआई में एक किसान आंदोलन उठ खड़ा हुआ था। इस आंदोलन में भड़क उठी हिंसा में कुछ लोग मारे गए। केन सारो वीवा पर हत्या का मुकदमा चला और उन्हें फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। देश की राजनीतिक व्यवस्था के साथ न्याय व्यवस्था का अंतिम आश्रय भी अंधकार के घटाटोप में अदृश्य होता जा रहा है। नर्मदा नदी के विस्थापितों का असली दर्द अदालत के प्रांगण में भूखा लेटा है।

मृत्यु एक अंधकार है
अंधकार मृत्यु नहीं है

इस कविता के आलोक में गांधी भी दिखलाई देते हैं। गांधी और किशन पटनायक दोनों ही सभ्यता के संकट और उसकी संभावना और अनुसंधानकर्ता हैं। ये दोनों मनुष्य जाति के शोषण और अपमान के विरुद्ध उठी आवाज हैं। किसी भी देश को उसकी आत्मा की प्रकृति के विरुद्ध नहीं मोड़ा जा सकता है किंतु ऐसा गांधी के समय से लेकर आज तक हो रहा है। गांधी के समय का जो ग्लोबीकरण प्रत्यक्ष राज्य स्थापित करके चल रहा था, वह समाप्त नहीं हुआ है। हमारी स्वतंत्रता के पश्चात अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं के माध्यम से विदेशी पूंजी और तकनीक का खेल निरंतर जारी है। आधुनिक टेकनोलॉजी के विकास का एक चमकीला अंधकार हमारी स्वाधीनता पर छा गया है –

शताब्दियों-शताब्दियों से रोक रखा है अंधकार को
आओ चलें अंधकार की ओर
या तुम रह जाओगे
इन रोशनियों के छोटे-छोटे अंधकारों में

गांधी ने ‘हिंद स्वराज्य’ में लिखा था  “अंग्रेज हिन्दुस्तानी बनकर रहें तो हम उन्हें अपने में मिला ले सकते हैं। हाँ अगर वे अपनी सभ्यता के साथ यहां रहना चाहें तो हिन्दुस्तान में उनके लिए जगह नहीं है।” यूरोप की सभ्यता में अपने लाभ के लिए कुछ भी संभव है। अमेरिका और कई देशों के मूल निवासियों का समूल नाश, गुलामों का व्यापार और उपनिवेशवाद को अपने विकास का मूल मंत्र मानना यूरोप के विकास का मॉडल है। इंग्लैण्ड में बड़े-बड़े जमींदारों ने छोटे-छोटे किसानों को उनकी भूमि से बेदखल कर दिया था। उन किसानों की दशा का वर्णन शेक्सपियर ने ‘किंग लियर’ के तीसरे अंक में और कार्ल मार्क्स ने ‘पूंजी’ के प्रथम अंक में किया है। आज हमारे देश में पश्चिम की टेक्नोलॉजी से आक्रांत होकर सारा सामाजिक और आर्थिक ढॉंचा मरणासन्न हो गया है।

रात्रि और उषा और प्रदोष का अंधकार
गंगा और समुद्र के गहवरों का अंधकार
जल स्थल काल और भूगोल का अंधकार

हमारे देश का विभाजन भूगोल का एक ऐसा अंधकार है जो दिनोंदिन गहराता जा रहा है। गांधी ने ‘हिंद स्वराज्य’ में कुछ कड़े शब्दों का प्रयोग किया है, ठीक वैसे ही किशन पटनायक ने भी। ये कड़े शब्द हमारी सुप्त-संवेदना को झकझोरते हैं। गांधी कहते हैं, “इंग्लैण्ड की जो हालत है वह सचमुच दयनीय-तरस खाने लायक है। मैं तो भगवान से यही मांगता हूं कि हिंदुस्तान की ऐसी हालत कभी न हो। जिसे आप पार्लियामेंट की माता कहते हैं, वह पार्लियामेंट तो बाँझ और वेश्या है।”

सर्वश्रेष्ठ विश्वसुंदरी के हाथ
पर हाथ रखे महामहिम नृत्य कर रहे हैं
तो क्या हत्या हो गई बिल्कुल स्पष्ट?

‘हिंद स्वराज्य’ और इस कविता के रचना काल के समय में साम्य आश्चर्यजनक है। गांधी ने ‘हिंद स्वराज्य’ 1909 में, भारत की स्वतंत्रता के 38 वर्ष पूर्व, लिखा था। किशन पटनायक ने यह कविता भोपाल गैस त्रासदी (1984) की पहली बरसी के दिन, स्वतंत्रता मिलने के 38 वर्ष बाद लिखी। अर्थात स्वतंत्रता के 38 वर्ष पूर्व से 38 वर्ष पश्चात् देश में कुछ नहीं बदला!

यहाँ प्रस्तुत है किशन जी की वह पूरी कविता –

अंधकार का अर्थ बदलने के लिए

मृत्यु अगर आएगी फिर कभी मेरे लिए
किसी एक आश्विन या आषाढ़ या वैशाख के संध्या क्षण में
वंशवती नदी के तट पर
वंशवती नदी मनोरम अंधकार में

जब होंगे हम एक नाव पर सवार
जिसका चालक एक बालक होगा
और अंधकार घना होता जाएगा
तब होगा एक अच्छा साक्षात्कार मृत्यु से

मृत्यु एक अंधकार है
अंधकार मृत्यु नहीं है
मृत्यु मृत्यु नहीं है
मृत्यु का जयगान करो

– 2 –
आज सारी बत्तियां गुल कर दो
आज अंधकार को आने दो
क्या तुम अंधे हो.
जो अंधकार से डरते हो?
शताब्दियों-शताब्दियों से रोक रखा है अंधकार को
आओ चलें अंधकार की ओर
या तुम रह जाओगे
इन रोशनियों के छोटे-छोटे अंधकारों में?

– 3 –
रात्रि और उषा और प्रदोष का अंधकार
गंगा और समुद्र के गह्वरों का अंधकार
जल स्थल काल और भूगोल का अंधकार
चंद्र, तारा, शतसूर्य, ब्रह्माण्ड का अंधकार
हमारी बेटियों के योनिस्थलों, जठरों का अंधकार

क्या इन्हें तुम देख पाओगे
हमारी रोशनियों के अंधकार में?

– 4 –

कारों का अंधकार, कंप्यूटरों का अंधकार, स्कूलों का अंधकार, अस्पतालों का अंधकार, संस्थाओं का अंधकार, मठों का अंधकार
कचहरियों और बाजार का अंधकार
नगरों और सभ्यता का अंधकार
तुम्हारी रोशनियों के द्वारा परिवेष्ठित ये सारे अंधकार.
एक महा अंधकार को आने दो.

– 5 –
आज एक हत्या होगी
होगी नि:संदेह
घोषणाएं प्रसारित हो चुकी हैं
कारनामों पर हस्ताक्षर
एकसाथ कई देशों का हुआ है
चारों ओर सर्वसम्मति है
दुविधा में रहने वाले अब अगुवाई कर रहे हैं.

कोलाहल में सन्नाटा
महामहिम, कातिल न्यूयार्क-लंदन और आर्मेस्टर्डम से एक
फ्लाई कर चुके हैं
वे पहुँच चुके हैं
अब हमारे पिद्दी राजा से भेंट करने गए हैं
विलंब बरदाश्त है
हमारे महाद्वीप की यह प्रथम हत्या होगी
जिसमें खून नहीं गिरेगा
और हत्या होगी बिलकुल स्पष्ट
एक महायांत्रिक हत्या
चारों ओर सफेद रहेगा

सर्वश्रेष्ठ विश्व सुंदरी के हाथ
पर हाथ रखे महामहिम नृत्य कर रहे हैं
तो क्या हत्या हो गयी है बिलकुल स्पष्ट?

किसी ने कहा एक बात लगती है फूहड़
आयातित विश्व सुंदरी का चूतड़
‘और उसका स्तन?’
‘और उसका जंघा स्थल?’

महामहिम कातिल का जीवन परिचय वितरित हो रहा है
उसकी आयु है 38 वर्ष
हारवर्ड, आक्सफोर्ड और पेरिस से
एकसाथ स्नातक है वह
कभी नहीं किया है कामिनी संपर्क
समलैंगिक समाज का सदस्य है वह
सिगरेट नहीं पीता है

ये सारी योग्यताएँ अपेक्षित थीं
तब सवाल क्यों है हत्या की स्पष्टता के बारे में
यह खून का धब्बा कहाँ से आया
लोग शव को नहीं खून को देख रहे हैं
लोग खून को समझना चाहते हैं
लोग सारी बातों को फिर से पूछ रहे हैं

क्या फिर से होगी हत्या?
कौन होगा कातिल?
कैसे होगी हत्या
और हत्या क्यों होगी?
सारी बातों को फिर से पूछ कर
लोग अंधकार मचा रहे हैं
दोपहर का चमचमाता अंधकार
जिसमें सर्वसम्मति टूट रही है.
——

पुनश्च

किशन जी जब भी इटारसी आते मेरे घर ही रुकते और केसला जाते आते। इसी तरह सच्चिदा जी भी। अगस्त 2001 में जब किशन जी इटारसी आये तो रेल में उनका पूर्व सांसद का रेलवे का पास राह में कहीं गुम गया। नये के लिए फोटो जरूरी था। 20अगस्त 2001को हम दोनों इटारसी के अज़ीज़ फोटो स्टूडियो गए। वहां ये फोटो खींचा गया था। उसी रात किशन जी को बहुत तेज शायद अस्थमा का अटैक हुआ। मै उन्हें अपने स्कूटर से सरकारी अस्पताल ले गया, उन्हें इंजेक्शन लगे। कुछ समय बाद हम घर वापस आये। दूसरे दिन आराम किये बिना मीटिंग में चले गए। किशन जी से गिरधर राठी ने 1977 में इटारसी में परिचय कराया था। यहाँ वे अपने कई समाजवादी साथियों के साथ सरकारी रेस्ट हाउस में रुके थे। यहाँ से केसला जाकर समाजवादी केन्द्र स्थापना का निर्णय हुआ था। इटारसी नगर देश के मध्य में स्थित है। केसला में कई एकड़ भूमि मिली थी। बाद के वर्षों में उस भूमि-कथा ने अलग रंग ले लिया था.

स्मरण रहे कि गिरधर राठी आपातकाल में पूरे 18 महीने जेल में रहकर अपने वृद्ध माता-पिता के पास इटारसी आये थे।

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