1. मंत्रोच्चार
मुझे लगता है मेरे नित्य मंत्रोच्चार की
मोटी परत शिवालय पर चढ़ गई है
मंत्रों के तीव्र स्वर में अभिव्यंजना करते-करते
जिह्वा विराम चाहती है क्योंकि भोलेनाथ
उस जटिल परत के नीचे घनघनाते स्वरों को
उपेक्षा की नाव में मंझधार में छोड़ चुके हैं….
अतः निर्णय यह लेती हूॅं कि
कुछ दिन मंत्रोच्चार की प्रक्रिया को रोक दिया जाए
जिससे मोटी, जमी परत को दरकने का
भरपूर समय मिलेगा और मेरी गुहार का रास्ता
भोलेनाथ के श्रवण मार्ग तक पहुॅंचने का
साफ हो जाएगा और उन मंत्रों की गूंज को
कोने में पड़े-पड़े केतकी और कनेर के फूल
सुन-सुनकर चढ़ाने योग्य हो जाएंगे
क्योंकि ईशकथा का श्रवण करने से
सारे श्राप और पाप धुल जाते हैं……
2. सुनो हिचकियो
सुनो हिचकियो!
तुम एकांत में आना
अन्यथा तुम हो जाओगी बदनाम
नाम दिए जाएंगे तुम्हें दस तरह के
लगाए जाएंगे कयास सौ तरह के
तुम सबके बीच आओ
तो दबे पाॅंव आना
अपनी उपस्थिति का भान
किसी को ना कराना
यदि ताड़ लिया किसी ने
तो बदनाम होंगे तुम और हम दोनों
जब मेरे एकांत को भंग करने का
मन करे तो चली आना
वहाॅं खूब शोर करना और
अपने मन गुन की कहना
उसके बाद भी तुम्हारा दिल ना भरे
तो खुले गगन के नीचे जोर-शोर से
अपनी उपस्थिति को दर्ज कराना
और एक नये ग्रंथ की आधारशिला रख देना।
3. छठी ज्ञानेन्द्री
कम पड़ रही हैं तुम्हारे लिए पाॅंच ज्ञानेन्द्रियाॅं
उठो, सोचो और प्रयास करो
जागृत करने का छठी ज्ञानेन्द्री को
अपनी थर्ड आई को
बोलो एक साॅंस में महामृत्युंजय मंत्र अनगिनत बार
चढ़ो पहाड़ की चोटी, बच्चे की तरह
भरी सर्दी में हो स्नान ठंडे जल से
ढूॅंढ़ लाओ नमक सागर से
हर उस मछली की आंख से
निचोड़ लाओ समस्त खारापन
हर दूसरे व्यक्ति की बातों से
बो आओ सब खेतों में ईख की फसल
खिला दो पत्थरों पर कुसुमालय
एकत्रित कर लो हर उस मासूम की
आंखों में तैरते मोतियों को
बनाकर माला उनकी
अर्पित कर दो शिव के चरणों में
लूट लो कटी पतंग
उसके पीछे भागते बच्चे के लिए
भरकर साॅंसों में उजास मन को सुवासित कर लो
बसंत की प्रतीक्षा में अपनी पलकों को बिछा दो
हर उदास के चेहरे पर अपने कंवलों को रख दो
उसकी तपिश में उसे तपने दो
इतना सब करने के बाद
तब कहीं जाकर तुम्हारे कानों में
वेदों और ऋचाओं की गुंजन
भीतर तक बिंध जाएगी
और तुम्हारा हृदय मधुमास का उद्यान बन जाएगा
यह वह अद्भुत क्षण होगा
जब सब तुममें और तुम सबमें व्याप्त होंगे
तब इस सुखानुभूति का रसपान करने के लिए
तुम्हारी थर्ड आई और छठी ज्ञानेन्द्री को
विवश होकर तुम्हारे समक्ष
आत्मसमर्पण करना ही होगा।

4. दृढ़ संकल्प
मुझे बनना है वेदों का हृदय
वो महामृत्युंजय मंत्र
जो गुनगुनाया जाएगा
मेरे मिट जाने के बाद भी
मुझे गढ़नी हैं प्रेम कविताएं
आकाश रेखा पर
जिन्हें कोई पहनाएगा चुनरी प्रेम की
मेरे मिट जाने के बाद भी
मुझे ढलना है पाषाण में प्रतिमा-सी
जिसे उकेरा और तराशा जाएगा
मेरे मिट जाने के बाद भी
मुझे बांधनी है पट्टी पल्लू को चीरकर
आंखों में प्रेम का दर ढूंढते प्रेयस के घावों पर
जो रहेगी औषधियुक्त
मेरे मिट जाने के बाद भी
मुझे गुनगुनाने हैं रफी के गीत
सुनना है रवींद्र संगीत
जिसकी महक फिज़ा में रहेगी
मेरे मिट जाने के बाद भी
नहीं किया जाएगा याद
तो वो होगा
मेरा स्त्री होना….
मरने से पहले करने हैं ज़रूरी इन्तज़मात
बोने है कुछ बीज प्रेम के
डालकर खाद अपनत्व और अमरत्व की
सींचना है आकांक्षाओं के जल से
जहां प्रेम का भावी भ्रूण पोषित होगा
उसके प्रस्फुटन पर फीकी हो जाएंगी
वो तमाम प्रेम कविताएं
जिन्हें नहीं रोपा गया प्रेम से
टीपने हैं वे छेद
जो यदा-कदा टपकाते हैं
अविश्वास की धार
उर के मरुस्थल पर
ठसाठस भरने हैं भंडारगृह के सारे कनस्तर
अनुराग और प्रणय से भरे गीतों से
जो कभी नहीं रीतेंगे
मेरे मिट जाने के बाद भी
5. स्त्री के अमूल्य प्रहर
स्त्री चौके में सिर्फ रोटियां ही नहीं बेलती
वह बेलती है अपनी थकान
पचाती है दुख
सेंकती है सपने
और परोसती है मुट्ठी भर आसमान
स्त्री चौके में…..
वह रात को बेलती है पति का बिस्तर
घोलती है उनकी थकान
भरती है श्वासों में उजास
ऊर्जान्वित करती है अल सुबह
गढ़ चुंबन सूरज को
स्त्री चौके में ….
वह बुहारती है आसमान
लीपती है धरती
सिलती है लंगोट आसमान का
और चोली धरती की
संवारती है केश नदी-सी नववधू के
स्त्री चौके में ….
वो छानती है अपनी इच्छाएं
फेंटती है समस्त ब्रह्मांड
तलती है पकौड़े भांति-भांति के
जीवित रखती है अन्नपूर्णा को
स्त्री चौके में सिर्फ रोटियां ही नहीं बेलती….

6. जनम जनम का साथ
तुम मेरे मीत सदृश होने के
मतिभ्रम को हरा रखना
ज़िदा गोश्त के ठंडे गोश्त में
तब्दील हो जाने तक
मछलियों के गगन में विचरण तक
पंछियों का बसेरा साहिल तक
पाषाणों पर कुसुमालय उगने तक
किंतु…
जीवित रहेगी तो बस कविता
और फकत प्रेम कविता
हर्फों से सफ़हा तक
सफ़हा से ज़ेहन तक
ज़ेहन से आसमां तक
जो बांची जाएगी युगों तक….
7. शिकायती पत्रिका पेटी
मुझे इल्म है
तुम्हें लगता है उबाऊ, नागवार
और अनचीता
मेरा यूं बेलगाम होकर
दुख -सुख की खाई पाटता
वृत्तांत सखियों से बतियाना
खगवृंदों से पैगाम भेजना
तितली संग उड़ना
और पौ फटने पर बिछौना ना छोड़नाा
तुम्हारे इस “शिकायती प्रार्थना -पत्र “को
मन की दुछत्ती पर पड़ी
“शिकायती पत्रिका पेटी” में
बिना टिकट चस्पा किए
प्रेषित कर दिया है….
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