48वें सर्वोदय समाज सम्मेलन ने लोकतंत्र को बचाने का लिया संकल्प

0

16 मार्च. 48वें सर्वोदय समाज सम्मेलन के समापन पर एक राजनीतिक प्रस्ताव पारित करके मौजूदा सत्ता की वैचारिकी से आगाह करते हुए कहा गया कि अहिंसक समाज को हिंसक समाज बनाकर देश के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न किया जा रहा है। पारित प्रस्‍ताव में कहा गया है कि सर्वोदय समाज मनुष्यता और भारतीय लोकतंत्र को बचाने के संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभाएगा और हमेशा की तरह धर्मनिरपेक्ष व लोकतंत्र में विश्वास रखने वालों का साथ देता रहेगा। यह सम्मेलन लोकतंत्र, संविधान व धर्मनिरपेक्षता को बचाने के प्रत्येक संघर्ष में सहभागी बनने और पहल करने का संकल्प लेता है।

सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा देश को हिंसक बनाने की कोशिश

इस प्रस्ताव के प्रारंभ में कहा गया है कि देश ने अपनी 75 वर्ष की लंबी यात्रा में लोकतंत्र पर आए तमाम संकट देखे हैं और उनका सामना भी किया है। इन संकटों में आपातकाल प्रमुख है। उस दौरान हमारा संघर्ष भारत में लोकतंत्र की बहाली में महत्वपूर्ण साबित हुआ था। परंतु वर्तमान में सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा लोकतंत्र को जो संकट में डाला जा रहा है अभूतपूर्व है। भारत के अहिंसक समाज को आज हिंसक बनाने की कोशिश की जा रही है। सत्य की जगह असत्य को स्थापित करने को जैसे राजकीय मान्यता मिल रही है। भारतीय लोकतंत्र में चुनाव को अर्थहीन बनाया जा रहा है। चुनी हुई सरकार एक झटके में बदल दी जाती है और जनता अवाक देखती रह जाती है।

संविधान, भारत के संघीय स्वरूप, बहुलतावादी चरित्र, सांप्रदायिक सौहार्द पर संकट

पारित प्रस्‍ताव में कहा गया है कि राजनीतिक तौर पर हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं, जिसमें आजादी के बाद पहली बार भारतीय संविधान, भारत का संघवाद, भारत का बहुलतावादी चरित्र, सांप्रदायिक सौहार्द एकसाथ संकट में नजर आ रहे हैं। भारत के संवैधानिक प्रावधानों की मनमाफिक विवेचना की जा रही है। इतना ही नहीं, प्राकृतिक संसाधनों और जनसामान्य की संपत्ति की चोरी को जैसे वैधता मिलती जा रही है। राष्ट्र में संपत्ति का संग्रहण कुछ गिने-चुने लोगों के पास होता जा रहा है।

भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। नई आर्थिक नीतियों की वजह से भारत में बेरोजगारी बढ़ती ही जा रही है; युवा लगातार हतोत्साहित हो रहे हैं। आत्महत्या कर रहे हैं। भर्ती में होने वाले घोटालों के चलते उन्हें रोजगार नहीं मिल पा रहा है। अधिक रोजगार देनेवाले छोटे उद्योग, जिनमें ग्रामोद्योग भी शामिल है, अब अंतिम सांस ले रहे हैं।

देश में धर्मान्धता का भयावह दौर

भारत में धर्मांधता का भयावह दौर शुरू हो गया है। अनेक ऐसे लोग जो स्वयं को धर्म का प्रवर्तक कहते थे आज हत्या व बलात्कार के मामलों में सजायाफ्ता होकर जेल में है। ऐसे में हम गांधीजनों को पुनः धर्म को लेकर बापू के विचारों को प्रसारित व प्रचारित करना अनिवार्य हो गया है। आज धर्म की आड़ में समाज के तमाम लोगों व वर्गों को भयभीत किया जा रहा है। इससे समाज में विभाजन बढ़ता जा रहा है। हमें याद रखना होगा कि बापू ने अपने रचनात्मक कार्यों में पहला स्थान “सर्वधर्म समभाव” को ही दिया था। अल्पसंख्यक आज भयभीत है और ऐसा किसी एक वर्ग के ही साथ नहीं है।

आरक्षित नौकरियों का संकट

भारतीय समाज के प्रमुख अंग अनुसूचित जाति और जनजातियों के मध्य भी लगातार असुरक्षा बढ़ रही है। नई आर्थिक नीतियों और अंधाधुंध निजीकरण की वजह से उनके लिए आरक्षित नौकरियां कमोबेश खत्म हो गई हैं. इन वर्गों में भी आक्रामकता और हताशा बढ़ती जा रही है। हमें इस विषय पर गंभीर मंथन करना अनिवार्य है।

भारत में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों में व्याप्त बर्बरता और नृशंसता सभी सीमाएं लांघ रही है। उनमें व्याप्त असुरक्षा हमारे लिए शर्म का विषय है। मनोरंजन के नए माध्यमों और सोशल मीडिया में बढ़ती अश्लीलता ने इसे और हवा दी है।

लोकतांत्रिक, संवैधानिक संस्थाओं को खतरा

गौरतलब है भारत में लोकतांत्रिक, संवैधानिक संस्थाओं का वास्तविक स्वरूप अब खतरे में है। उनका मनचाहा और मनमाना दुरुपयोग हो रहा है। इनका एकपक्षीय होना भारतीय लोकतंत्र के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के प्रयास चल रहे हैं। गांधी, नेहरू, विनोबा, जयप्रकाश, मौलाना आजाद जैसी विभूतियों और भारत की महान सांस्कृतिक परंपरा से बने और विकसित हुए भारत नामक विचार को नष्ट किए जाने के प्रयास चल रहे हैं। हम इस प्रवृत्ति की निंदा करते हैं।

आज भारत में कृषि और कृषक दोनों संकट में है। यदि यह संकट में रहते हैं तो भारत भी संकट के बाहर नहीं आ सकता। कृषि और गांव बचेंगे तो ही भारत बचेगा।

हम गांधीजनों को “खादी” के महत्व को पुनः स्थापित करना होगा। विनोबा ने खादी को बापू का सर्वश्रेष्ठ आविष्कार कहा है.खादी एक परिपूर्ण जीवन शैली है, यह महज एक वस्त्र भर नहीं है, गांधी विचार से ओतप्रोत अर्थव्यवस्था जिसे स्व. जेसी कुमारप्पा ने बहुत सुंदरता से व्याख्यायित किया है जो आशा की एकमात्र किरण नजर आ रही है, हमें उसको प्रचारित करना होगा।

मानव और मानवीय मूल्यों पर गंभीर संकट

आज बापू के विचारों को अप्रासंगिक बनाने के प्रयास जोर-शोर से चल रहे हैं। मुंह पर नाम भले ही गांधी का लिया जा रहा हो लेकिन वास्तविकता इसके उलट ही है। पहले भी कहा है कि सर्वोदय समाज और भारतीय समाज के समक्ष कभी भी इतनी विकट और विषम परिस्थितियां नहीं थी। आज मानव और मानवीय मूल्य दोनों ही आज गंभीर संकट के दौर से गुजर रहे हैं। मानवाधिकारों पर खतरा मंडरा ही रहा है।

प्रस्ताव में कहा गया कि यह याद रखना होगा कि सर्वोदय समाज की स्थापना के समय जो विराट व्यक्तित्व हमारे साथ थे वैसे अब नहीं है। अतः हमें उनके उनसे प्रेरणा लेकर सामूहिक प्रयास करने होंगे। बापू के एकादश व्रत प्रकाशस्तंभ की तरह हमारे साथ है।

सम्‍मेलन में देश भर से जुटे सैंकड़ों लोकसेवकों, सर्वोदय मित्रों, गांधीवादियों ने सर्वसम्मति से इस प्रस्‍ताव का हाथ उठाकर समर्थन किया।

इससे पहले सम्मेलन के अन्तिम सत्र में अहिंसक समाज के आयाम विषय पर विशेष सत्र में चर्चा हुई। वरिष्ठ सर्वोदयी मोहन हीराबाई हीरालाल ने कहा कि आज हम लोगों ने जो बीज दिखाए हैं, उससे हिंसक समाज का निर्माण हुआ है। इसके लिए उत्तरदायी कुछ कारक हैं: उनमें से एक लोकतंत्र है, जहां निर्णय लेने और हम पर शासन करने वाले प्रतिनिधियों को चुनने में बहुमत शामिल होता है। अल्पसंख्यक की उपेक्षा करना हिंसक कृत्य है। बहुसंख्यकवाद पर आधारित व्यवस्था ने हिंसा को जन्म दिया है और एक अहिंसक समाज के निर्माण में बाधा उत्पन्न की है। हम सभी की सहमति से बनी निर्णय लेने की प्रणाली से अहिंसक समाज का निर्माण कर सकते हैं। उन्होंने अंत में नारा दिया : हमारा मंत्र होना चाहिए जय जगत, हमारा तंत्र ग्रामदान से ग्रामस्वराज, हमारा लक्ष्य विश्व शांति होना चाहिए।

गांधी संग्रहालय, दिल्ली के संयोजक अन्नामलाई ने बताया कि गांधी अहिंसा का प्रयोग करने वाले एकमात्र व्यक्ति थे। यदि हम अहिंसक क्रांति करना चाहते हैं, तो हमें महिलाओं और युवाओं के साथ जुड़ना चाहिए। महाराष्ट्र से रवींद्र रूपम ने कहा कि गांधीवादी विचार हमारी पारिवारिक और सामाजिक संस्थाओं जैसी संस्थाओं तक नहीं फैले हैं, जबकि फासीवादी समूह लोगों को बेहतर तरीके से लामबंद करते जा रहे हैं।

केंद्रीय गांधी स्मारक निधि के मंत्री संजय सिंह ने कहा कि गांधी के विचारों में मानव के रचनात्मक विकास की क्षमता है। गांधी ने पश्चिमी सभ्यता का विरोध करते हुए नई तालीम, खादी जैसे वैकल्पिक मॉडल शिक्षा में दिखाए थे, लेकिन हम इन विचारों को बड़ी आबादी तक नहीं पहुंचा पाए हैं।

मगन संग्रहालय, वर्धा की अध्यक्ष डॉ. विभा गुप्ता ने कहा कि हमें अपनी ताकत को पहचानना चाहिए कि पूरे देश में बड़ी संख्या में ऐसे संगठन हैं, जो गांधीवादी विचारों पर जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि हम गांधी के राजनीतिक अहिंसा प्रयोगों के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, लेकिन कुटीर उद्योगों के क्षेत्र में उनके अनूठे प्रयोगों के बारे में कम जानते हैं।

सम्मेलन में सिद्धेश्वर पिल्लई, मदन मोहन वर्मा, मिहिर कटारिया, मारुति तरुण, प्रह्लाद निमारे, मिहिर प्रताप, शंकर राणा, मोहम्मद जाकिर हुसैन, गोविंद मुंडा, बलराम सेन ने भी अपने विचार रखे। सत्र का संचालन डॉ. विश्वजीत ने किया।

सर्वोदय समाज सम्‍मेलन के समापन सत्र के अध्यक्ष वरिष्ठ गांधीमार्गी विचारक अमरनाथ भाई ने आज की परिस्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद देशभर में लोग थोड़ा जगे हैं, ऐसा लग रहा है। क्योंकि अब बोल रहे हैं, लिख रहे हैं, इतना ही नहीं सरकार भी थोड़ी डरी हुई है। आज हमारे सामने दो चुनौतियां हैं, पहली, हमें सत्ता से मुक्त होना है और दूसरी, गांधी का स्वराज बनाना है। मार्क्स ने वर्ग संघर्ष की बात कही थी, गांधी ने मेरा वर्ग निराकरण की बात कही। साधन शुद्धि की बात कही।

समापन सत्र में प्रसिद्ध गांधीमार्गी विचारक तारा गांधी भट्टाचार्य ने कहा कि बापू की अंतिम इच्छा थी कि सर्वोदय को सशक्त करना है। सर्वोदय के बिना विकास संभव नहीं, सर्वोदय ही विकास है। इसलिए और कोई बदले अथवा ना बदले, स्वयं अपने में बदलाव लाएं।

सम्मेलन के दौरान आयोजन में महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रफुल्ल, अविनाश काकड़े, एकनाथ डगवार का सम्मान किया गया। सम्मेलन का निवेदन पत्र मध्यप्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष चिन्मय मिश्र ने प्रस्‍तुत किया। समापन सत्र में सर्वोदय समाज के संयोजक सोमनाथ रोड़े, सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल, आश्रम प्रतिष्ठान की अध्यक्ष आशा बोथरा और कार्यक्रम के संयोजक अविनाश काकडे ने सभी के प्रति धन्यवाद प्रकट किया।

(सप्रेस)

Leave a Comment