26 मार्च. जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति ने अवमानना मामले में राहुल गाँधी को दो साल की सजा और लोकसभा सचिवालय द्वारा उनकी संसद सदस्यता से बर्खास्तगी को सुनियोजित राजनीतिक षडयंत्र करार दिया है।
जसवा कार्यकारिणी ने कहा है कि इस प्रकरण के जो पहलू उजागर हो चुके हैं वे सुनियोजित तिकड़म की ओर ही संकेत करते हैं।
एक चुनावी सभा में राहुल गाँधी के चोर और मोदी सम्बन्धी बयान के बाद एक मोदी आहत होकर सूरत के सीजेएम कोर्ट में 15 अप्रैल 2019 को निजी शिकायत दर्ज कराते हैं। वे माँग करते हैं कि हर तारीख पर राहुल गाँधी को हाजिर होने का आदेश दिया जाय। कोर्ट द्वारा इस माँग को नकारे जाने के बाद वे स्वयं अपने ही द्वारा दर्ज मामले पर हाईकोर्ट से स्टे माँगते हैं। फरवरी 2023 में राहुल लोकसभा में सरकार और अडाणी पर बोलते हैं। इसके पाँच सात दिन बाद याचिकाकर्ता अपने मामले पर स्वीकृत स्टे को हटाने की माँग करता है। स्टे खत्म होती है। नया सीजेएम फिर से मामले की सुनवाई करता है। पाँच सप्ताह में बड़ी तेजी से फैसला आता है। यह सीजेएम अनुराग ठाकुर और अन्य सांसदों के मुस्लिम विरोधी बयानों पर अन्य जगहों की अदालतों के नरम रवैये से अनजान तो नहीं ही होगा। उन्हीं के नक्शेकदम पर, भाजपाइयों पर नरमी और विपक्षियों पर सख्ती की परम्परा निभाते हुए राहुल गाँधी को उस मामले के तहत संभव अधिकतम दो साल की सजा देता है। ठीक उतनी सजा, जिस पर लोकसभा सचिवालय सांसद पर बर्खास्तगी की कार्रवाई कर सकता था। भाजपापक्षीय और राहुल विरोधी सीजेएम ने सजा की जमीन तैयार कर लोकसभा सचिवालय को संकेत कर दिया था।
लोकसभा सचिवालय ने भी अभूतपूर्व तेजी दिखलाते हुए एक दिन के भीतर राहुल की सदस्यता रद्द कर दी। राहुल गाँधी को लोकसभा में बोलने का मौका माँगने के बावजूद नहीं दिया गया। अडाणी घोटाले पर विपक्षी दलों के जेपीसी जाँच की माँग को नकारा गया। और राहुल को कोर्ट और लोकसभा में सजा के बाद भाजपाइयों द्वारा अपने बचाव में बयानबाजी तेज कर दी गयी। राहुल गांधी को पिछड़ा-विरोधी बताने की भाजपाई मुहिम चल पड़ी है । ये सारे सिलसिले मोदी-शाह अडाणी निर्देशित एक कूटयोजना का आभास देते हैं।
जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी का मानना है कि राहुल गाँधी के बढ़ते प्रभाव और अपनी घटती चमक से डरी-घबरायी मोदी सरकार ने पूरी योजना बनाकर यह कदम उठाया है।
जसवा ने कहा है कि राहुल का वह चुनावी बयान बेशक अनुचित था किन्तु यह अशिष्टता तो आज राजनीति की सामान्य परिघटना बन गयी है। और भाजपा तो इससे कई गुना ज्यादा अशिष्टता बरतती रही है। उसके नेता सांसद मंत्री एक पूरी कौम के कत्लेआम का एलान करते फिरते हैं। गाँधी का अपमान तो उनका शगल है। प्रधानमंत्री मोदी ने जर्सी गाय, हाइब्रिड बछड़ा, पचास हजार की गर्लफ्रेंड जैसे ओछे अपमानजनक शब्द कहे हैं। क्या भाजपा के शीर्ष नेता सभी आतंकी मुसलमान क्यों जैसे आरोप नहीं उछालते रहे हैं? राहुल के बयान की तुलना में ये बयान कम अपमानजनक हैं क्या? ऐसे माहौल में यह एकतरफा और चरम कार्रवाई अनैतिक है, बेईमानी है।
जसवा ने राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश से आग्रह किया है कि वे अपनी पहल से हस्तक्षेप करें और संसदीय एवं न्यायिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपनी आस्था का परिचय दें।
यह शासन अभिव्यक्ति और न्याय के मामले में घोर पक्षपात और दोहरापन बरत रहा है। इसके खिलाफ सारी राजनीतिक शक्तियाँ एकजुट आवाज उठायें। अपनी सशक्त एकजुटता बनायें। नागरिक शक्ति लोकतंत्र को बचाने के लिए आगे आए।
एक बार फिर ज्यादा धारदार तरीके से यह जिम्मेदारी उभर आयी है कि अपनी आवाज, अपना हक, अपनी उम्मीद बचानी है तो 2024 में भाजपा को बड़ी हार हरानी होगी।