
1. बुद्ध उनके लिए
बुद्ध उनके लिए
करुणा के सागर करुणाकर नहीं
सम्यक सम्बुद्ध तथागत नहीं
पहले जानो फिर मानो के जनक भी नहीं
तर्क और तथ्य पर बात करने वाले
महामानव भी नहीं
शील, प्रज्ञा और परिमिता की बात करने वाले
शास्ता भी नहीं
ना अष्टांग मार्ग के प्रतिपादक।
बुद्ध उनके लिए
हैं मात्र एक वस्तु
जिनकी मूर्ति के सिर में उगाते हैं वे फूल और बोनसाई
बनाकर उसको फ्लावर पॉट
कार्यालय के एक कोने को सजाते हैं
उनकी तस्वीरों को लगाते हैं वे
मसाज पार्लर में और स्पा में
जहाँ क्या होता है शायद ही छुपा हो किसी से।
बुद्ध उनके लिए
एक बुत भर हैं
इसलिए उनके बुत को गोलियों से उड़ा देते हैं वे
यह समझ कर कि
इस तरह बुद्ध मिट जाएंगे उनके देश से
क्योंकि बुद्ध मौन हैं
आत्मा और परमात्मा के प्रश्न पर
स्वर्ग और नरक के सवाल पर
फिर उनको तो जन्नत में चाहिए बहत्तर हूरें।
बुद्ध उनके लिए
नास्तिकता के परिचायक हैं
इसलिए आग लगा दी नालंदा के पुस्तकालय में
नेस्तनाबूद कर दिया तक्षशिला और विक्रमशिला
यज्ञ और वर्ण व्यवस्था को नकारने वाले भंते
कैसे पसंद आते उनको?
इसलिए कर दिया जमींदोज उनको
कर दिया तब्दील बौद्ध मठों को अपने हिसाब से
बुद्ध की मूर्तियों को बना लिया
अपना देवी देवता तोड़ मोड़ कर
ताकि बुद्ध सदा के लिए समाप्त हो जाएं।
बुद्ध उनके लिए
एक वैश्विक संदेश भर हैं ‘युद्ध के विरुद्ध’
भले उनकी सारी ऊर्जा लगे अपने धर्म प्रचार में
सत्ता सुख भी धर्म को मजबूत करके मिले
पर जब भी विदेश जाएं वें
या आए कोई विदेशी मेहमान
तो कहते नहीं थकते
बुद्ध की एक मूर्ति उन्हें पकड़ाते हुए
हमने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिया।
बुद्ध उनके लिए
उनकी जाति के नायक हैं
इसलिए उनके ऊपर वे करने लगे हैं सेमिनार
कुछ काव्य गोष्ठी
कुछ गाना बजाना
और कराकर जातीय सम्मेलन
देते हैं संदेश कि बुद्ध की भांति
हम भी हैं शांतिप्रिय और अहिंसक
मानवता के पोषक,
अनय के उदघोषक,
लेकिन सब जानते हैं कि सदियों से रहे हैं वे
समाज में सबसे बड़े शोषक।
2. फिर वे मुझे कहते हैं
मैं जब कहता हूँ उनको
कौन भाग रहा है विदेश
लेकर हजारों करोड़ देश का
देख तो लो
फिर वे कहते हैं आप एकदम कुरैशी हो गए हैं।
फिर कहता हूँ उनसे
कौन है प्रमुख पदों पर देश में
न्यायपालिका में, व्यवस्थापिका में
कौन है सारे देश की सारी एजेंसियों का प्रमुख
कौन है सारे राज्यों में मुख्यमंत्री और राज्यपाल
कौन है पुलिस प्रशासन का प्रमुख हरेक राज्य में
फिर भी खतरे में रहता है आपका धर्म
देख तो लो
फिर वे कहते हैं आप पटेलूउद्दीन हो गए हैं
फिर जब कहता हूँ कि
जरा देखो कैसे देश धार्मिक कट्टर हो गया
जबकि विद्यालय से विश्वविद्यालय तक पढ़ा जाता रहा
कि यह देश है धर्म निरपेक्ष
क्या हाल हो गया है शिक्षा का
देख तो लो
फिर वे कहते हैं आप लिब्रांडू हो गए हैं।
यह हाल है हर जगह
समाज हो या हो कार्यालय
बाजार हो या हो कोई सार्वजनिक यातायात का साधन
ट्रेन, बस, टेंपो या हो मेट्रो
खतरे में है धर्म
क्या हाल हो गया है इंसानियत का
देख तो लो
फिर वे बोल पड़ते हैं कि
आपके जैसे लोगों के कारण देश गुलाम हुआ
फिर वे कहते हैं आप ओवैसी हो गए हैं
सच कहूँ तो हम अब अकेले पड़ जाते हैं
मन कहता है मत करो बहस
क्योंकि माहौल ही कुछ ऐसा है
किंतु लाख बोलें वे मुझे ओवैसी, कुरैशी या लिब्रांडू
हम लड़ते रहेंगे इस बात के लिए
कि अनेकता में एकता
भारत की विशेषता।
3. सघन संरचना
गुरु जी ने किया सबसे पहले गुणगान
गुरुकुल की व्यवस्था की
फिर गीत गाया सारे धर्मग्रंथों का
फिर वेद, पुराण, उपनिषदों की महिमा बताई
सारे बच्चे सुनते रहे ध्यान से।
वेद को ईश्वरीय पुस्तक घोषित किया
बच्चों को रामायण गीता और महाभारत के
महत्त्व को बताया
उन्होंने संस्कृत की महत्ता बताई और
उसे देवभाषा की संज्ञा दी
बताया कि आर्य समाज बहुत बड़ा संस्कृत समर्थक है
फिर एक बच्चे ने कहा दयानंद सरस्वती
हिंदी के प्रचारक क्यों थे
आपने ही बताया गुरु जी
कि दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार के दौरान
उनको मिली थी जलालत और ईंट पत्थर से हुआ था
उनपर हमला।
गुरु जी लगातार हमें उलझाते रहे एक जटिल संरचना में
बहुत महीन जाल में मानो बच्चों को फंसाते रहे
बच्चों के सवाल का जवाब देते उन्होंने कहा
संस्कृत से ही हिंदी क्या समस्त भाषाएं नि:सृत हैं
सबका अर्थ दुनिया की सारी भाषाएँ।
कोमल मस्तिष्क में बच्चों के ये सारी बातें जम रही थीं
जैसे सीमेंट जम जाता है रेत लोहे और पानी के साथ छत में
फिर भी बच्चों को कुछ और पूछना था ही
पूछ लिया कि फिर तुलसीदास ने अवधी को क्यों चुना
जबाब देते गुरु जी ने कहा कि अवधी भी हिंदी की है बोली
मूलत: उसको हिंदी ही मानो।
फिर बात आगे बढ़ाते गुरु जी ने हिंदी को हिंदू में बदल दिया
और पूरी ताकत से हिंदू स्थान बताया भारत को
और दुखी होते कहा पर यहाँ हिंदुओं की हालत पतली है
इसलिए हमें बचाना है हिंदू, हिंदी और हिंदुस्तान।
नतीजा सारे बच्चों ने गुरु जी की बात को समझ लिया
और सब जुट गए गुरुदेव की आज्ञा के पालन में
होड़ लग गयी सबमें कौन आलसी शिष्य है
गुरु जी का यह बताने में
और कबूतरों की तरह कसम खाने वाले बहुजन के बच्चे भी
यह कहते कि बहेलिया आएगा जाल बिछाएगा
दाना डालेगा
हम नहीं जाएंगे, फंसने से बच जाएंगे
लेकिन आज बहुतायत में बहुजन के बच्चे
उस जाल में फॅंस कर गुरु जी आज्ञा मान रहे हैं।

4. रोम जलता है और नीरो बंसी बजाता है
डर पैदा किया जाता है धर्मसत्ता से
सबसे भयानक भय होता है ईश्वर का
ईश्वर से डरो जैसे वाक्य बचपन से सुनता है इंसान
फिर भय अलौकिक शक्तियों का दिखाया जाता है
भूत, प्रेत और पिशाच भी धॅंस जाते हैं
अवचेतन में ईश्वर के साथ
मानो हिमखंड का बड़ा हिस्सा डूबा हुआ हो समुंदर तल में।
डर पैदा किया जाता है राजसत्ता से
राजा का खौफ़ ईश्वर और पिशाच से कहीं बड़ा होता है
दृश्य भय अदृश्य भय से बड़ा होना लाज़मी है
राजा भय के लिए सहारा लेता है अपने दरबारियों का
अपने अधिकारियों का और जासूसों का
प्रचार तंत्र के मारक हथियार से त्रास को करता है कायम।
राजसत्ता और धर्मसत्ता का हो जाए गठबंधन
तो आसानी से जनता में भय घर करने लगता है ऐसे
जैसे नाव के तल में हुए छिद्र से पानी घुसने लगता है
और देखते ही देखते इंसानों से भरी नाव
जलमग्न हो जाती है
धर्मसत्ता मानसिक रूप से बनाती है दुर्बल इंसान को
और राजसत्ता अपने तंत्र के माध्यम से कराती है शारीरिक हमले बना देती है ख़ौफ़ज़दा अपने मातहत प्रजा को
और फिर रोम जलता है नीरो बंसी बजाता रहता है।
5. दीवार पर टँगी तलवारें
म्यान में पड़ी है जो तलवार
निकलती नहीं अब कभी
अन्याय को खत्म करने के लिए
ना ही अब उठती है इंसाफ वास्ते।
दिखती है कभी कभी शादियों में
वर लिये रहते हैं उसे हाथों में
बेशक, नहीं है उनको निपुणता
तलवारबाजी में, परन्तु
जातीय गौरव के प्रदर्शन में
आवश्यक है दुनिया को दिखलाना।
अब तो रहती है ड्राइंग रूम की
दीवार पर टँगी हुई
उसकी शोभा बढ़ाने के लिए
लोगों को दिखाने के लिए
बतलाती यह दूसरों को कि
जिंदा है अब भी नफ़रत
जिंदा है द्वेष और घृणा
मिली है जो उनको विरासत में।
दुनिया जानती है कि
जब भी उठी हैं तलवारें
बहाए हैं उसने रक्त
इंसानी या किसी भी जीव जंतु के
या किसी स्त्री के अपहरण में
या किसी राज्य के विस्तार के लिए
या किसी राजा के अहंकार की तुष्टि के लिए
या उठी है गरीब या निरीह को
गुलाम बनाने के लिए।
तलवारें नहीं हो सकीं कभी शांति दूत
होंगी भी कैसे?
हिंसा का हासिल शांति नहीं
हिंसा का हासिल ही है हिंसा
इसलिए दीवारों पर टँगी तलवार
मुझे नहीं करती रोमांचित
मन जरूर कहता है कि
अब भी इंसान में है जिंदा
आदिम और पाशविक प्रवृत्ति।
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