मलियाना जनसंहार : फैसला बनाम न्याय

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— रमाशंकर सिंह —

भी कुछ हफ्ते पहले उत्तर प्रदेश और राजस्थान की निचली अदालतों ने अपने फैसले सुनाये हैं, समय हो तो नजर कर लीजिए, वैसे फर्क तो कुछ पड़ता नहीं आप पर और न ही मुझे खास उम्मीद ही बची है….

1987 में यूपी के मेरठ के निकट एक कस्बे मलियाना में प्रादेशिक सशस्त्र बल (पीएसी) की एक टुकड़ी अपने पचास के करीब जवानों को लेकर घुसी और घरों से अकारण लोगों को निकालकर हाथ ऊपर करवाकर इकट्ठे कर लिया और अचानक सबको गोलियों से भून दिया!

68 लोग मार दिये गये!

कोई कारण नहीं था, कैसा भी कारण नहीं था !

लाशों को तुरत फुरत कहीं कहीं ठिकाने लगाया गया, ज्यादातर लाशें मिलीं ही नहीं। कुछ नहर में बहा दी गयीं, कुछ वहीं जला दी गयीं !

रात को ही दिल्ली के एक दो पत्रकार वहॉं पहुँच गये और खबर बाहर आ गयी !

प्रबुद्ध नागरिकों, विपक्षी एनजीओ और पत्रकारों की एक जॉंच कमेटी बनी, बयान लिये गये और रिपोर्ट पर कुछ दिनों तक मीडिया व विपक्ष की हायतौबा हुई और फिर धीरे से सब कुछ शांत हो गया लेकिन मामला अदालत में जाना था सो गया !

36 साल बाद अब निचली अदालत ने फैसला दिया है कि सभी 41 आरोपी बरी और 68 लोगों की हत्या का कोई जिम्मेवार नहीं है।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मुख्य जाँच अधिकारी का बयान और गवाही तक नहीं हुई और 36 साल बाद भारत की महान स्वतंत्र न्यायपालिका ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। अब ऐसा भी माना जा सकता है कि 68 गाँववासियों ने पुलिस की बंदूकें छीनकर खुद ही एक दूसरे में गोली मार ली और तत्कालीन सरकार को बदनाम करने के लिए मर गये और अपनी लाशों को खुद उठाकर निकट की नहर में बहा दिया ! मारे गये सब मुसलमान थे, एक दो को छोड़कर, जो उन्हीं के घरों से निकाले गये थे। मारने वाले सब पीएसी की टुकड़ी के सदस्य थे ।

किसके आदेश से गोली चलाई थी?
कौन अफसर साथ था?
और यह मत पूछिए कि 1987 में किसका राज था?
यह भी मत पूछिए कि जिन लोगों ने तत्कालीन जॉंच कमीशन में मदद की, वे अब कहॉं हैं, क्या कर रहे हैं? क्यों चुप हैं ?

यह तो बिल्कुल मत जानिए कि केंद्रीय गृह उपमंत्री मेरठ में कुछ दिन पहले जिला प्रशासन की बैठक में क्या कहने गये थे?
कौन था वो मंत्री?
किस पद तक उस मंत्री का बाद में प्रमोशन हुआ था?
तत्कालीन एजेंडा क्या था?

और आज से वो कैसे फर्क था?

जैसे ही आप यह सच जानने की कोशिश करेंगे तो आपको फासीवाद का समर्थक भी कहा जा सकता है, सांप्रदायिक तत्त्वों का भी, खासतौर पर तत्कालीन जाँचकर्ताओं द्वारा !

आज की सत्ता इसलिए आँख मूँदे रहेगी कि उनका ही तो एजेंडा चल रहा है और राहुल समेत बाकी विपक्ष अभी दर्पण के सामने व्यस्त है इसलिए मलियाना का राजनीतिक पर्यटन भी नहीं करेंगे।

सिर्फ एक दो पत्रकारों ने कुछ कहीं लिखा है !

राजस्थान (जयपुर) में आतंकवादियों ने एक ही दिन विस्फोट कर करीब 70 नागरिक मार डाले थे। उस पर क्या फैसला आया? न्यायपालिका ने किया किया?
हर चीज मैं क्यों बताऊँ?
खुद पता करिए!

क्या यह देश हर राजनीतिक पक्ष द्वारा मिलजुल कर ठगा लूटा मारा जा रहा है?

हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट सबको यह पता है पर क्या मजाल कि न्यायपालिका की तराजू नागरिकों की ओर न्याय देती झुक जाए। ठठाकर हँसिए कि हमारा संविधान है जो न्यायकारी है।

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