प्रोफेसर महेन्द्र नारायण कर्ण जनसरोकारी बौद्धिकता की मिसाल थे

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स्मृतिशेष : डॉ महेन्द्र नारायण कर्ण (8 अप्रैल 1942 - 9 अप्रैल 2023)


— डॉ सुरेश खैरनार —

यप्रकाश आंदोलन के दौरान प्रोफेसर महेंद्र कर्ण एन.एन. सिन्हा संस्थान के निदेशक थे। संस्थान के सामने पटना का ऐतिहासिक गांधी मैदान है। जेपी आंदोलन के दौरान कर्ण साहब और श्रीमती कर्ण आंदोलन के साथियों के लिए रोटी सब्जी के बड़े-बड़े बर्तन अपने हाथों में लेकर बांटने वाले निदेशक शायद पहले और आखिरी होंगे !

काश, हमारे देश में ऐसे सौ भी अकादमीशियन हों तो देश की तस्वीर बदल जाए। लेकिन ज्यादातर लोग अपने-अपने स्वार्थ साधने में लगे हुए हैं। डॉ. महेंद्र नारायण कर्ण जैसे समाजशास्त्री का जाना ऐसे समय में और अधिक अखर रहा है। जयप्रकाश आंदोलन में शामिल रहे या समर्थन दे रहे भारत के तमाम लेखक, कवि, पत्रकारों से लेकर डॉ. कर्ण जैसे अकादमिक क्षेत्र के लोगों की बरबस याद आ रही है !

लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री बनने के बादबाद, चरवाहा विद्यालय से लेकर पहलवान विद्यालय की संकल्पना रखने वाले समाजशास्त्री ! और लालू जी ने अपने मुख्यमंत्रित्व-काल में कुछ हदतक दोनों योजनाओं पर अमल किया! मैंने 1972-75 के समय से जेपी आंदोलन के दौरान बिहार आना-जाना शुरू किया था। और भागलपुर दंगे के बाद 1990 के चुनाव में लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद, डॉ. कर्ण को जब कहा कि “महाराष्ट्र में दो सौ साल पहले फुले और उनके सौ साल बाद डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों को आत्मविश्वास दिलाने का प्रयास किया है और अब भगवान बुद्ध और महावीर की और सम्राट अशोक की भूमि पर, दो हजार साल के बाद, बिहार के पिछड़ों तथा दलितों में आत्मविश्वास बढ़ते देख रहा हूँ। आने वाले पचास वर्षों में भारत के समाजशास्त्रियों को इस बात का संज्ञान लेना पडे़गा !

इसके उदाहरण के लिए मैंने 90-91 में भागलपुर दंगे के बाद के राहत और सौहार्द के काम के समय का एक वाकया बताया था। हम किसी पांडेजी के घर भोजन के लिए गए थे ! तो भोजन के पहले बातचीत में पांडेजी ने आंखों में पानी लाकर बहुत ही क्रोध और आवेश में कहा “कि देखिए ना कुछ दिनों पहले ! सुरेशजी यह – – – – – पिछड़े वर्ग के लोगों की हमारे सामने खडे़ होकर आंख में आंख मिलाने की हिम्मत नहीं थी ! लेकिन लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद, इनके व्यवहार में परिवर्तन आया है ! और अब ये हमारे यहां आने के बाद खुद ही कुर्सी को खींचकर बैठ जाते हैं और आंखों में आखें मिलाकर बात करते हैं ! सुरेशजी, यह देखकर मेरे तन-बदन मे आग लग जाती है !” और वह रोने लगे !
मैंने उन्हें बहुत प्रेम से समझाया कि “पांडेजी अब वह दिन रहे नहीं ! इसलिए आप अपने आपको मानसिक तकलीफ लेने की जगह बड़ा दिल करते हुए खुद को नए बदलाव के लिए तैयार कर लीजिए !

हमारे देश में रामास्वामी नायकर उर्फ पेरियार, कांशीराम जी, जयप्रकाश नारायण, डॉ. बाबासाहब आंबेडकरजी, डॉ. राममनोहर लोहिया, शिबू सोरेन, शंकर गुहा नियोगी, जयपालसिंह, डॉ. रामदयाल मुंडा, डॉ. बी.डी. शर्मा जैसे लोगों ने दलितों, महिलाओं, आदिवासियों और पिछड़े वर्ग के लोगों को लेकर काफी सार्थक पहल की है !

डॉ. राममनोहर लोहिया ने, जन्मना मारवाड़ी समाज का होने के बावजूद, कहा कि “पिछड़ा पावे सौ में साठ” क्योंकि हमारे देश की आबादी में हम तथाकथित सवर्ण समाज के लोगों की संख्या पच्चीस प्रतिशत भी नहीं है ! और जमीन, धन, संपत्ति सब कुछ इन ऊंची जाति के लोगों के हाथों में है ! तो हमें भी उदार होने की जरूरत है ! और पिछड़े या दलित के अपने आंगन में आने पर उसे खुद ही सम्मान से आओ बेटा कहकर खुद ही उसे कुर्सी पर बैठने के लिए कहोगे तो अच्छा होगा ! अपने बीपी बढ़ाकर अपनी तबीयत खराब करने की कोई जरूरत नहीं है ! जमाने के साथ इसे आपको स्वीकार करना चाहिए, और अपने आपको बदलने की जरूरत है !

वैसे ही मैं सत्तर के दशक में पटना स्टेशन पर उतरकर, किसी भी रिक्शेवाले को बोलता कि मुझे कदमकुआं चलना है ! कितना लोगे? तो वह झुक कर कहता, हुजूर आपको जो देना हो दे दीजिएगा! और गंतव्य स्थल आने के बाद उसे रुपया अठन्नी जो भी हाथ में आए वह देने के बाद ! वह आपने क्या दिया इसे बगैर देखें, दोबारा हुजूर बोलते हुए झुक कर सलाम करते हुए चुपचाप निकल जाता था !

लेकिन अस्सी वाले दशक में, पटना स्टेशन पर किसी भी रिक्शेवाले के साथ बगैर मोलभाव किए वह आपको बैठने नहीं देता था ! और आपने मनमर्जी की तो वह हुज्जत करते हुए अपने हिसाब से पैसे वसूल करने के बाद ही निकलेगा। और कोई और होगा तो आपको दो बातें सुनाकर जाएगा। यह परिवर्तन साधारण परिवर्तन नहीं है !

अगर आप समाज में काम कर रहे हैं और आपका दावा है कि मैं वुमेन – मैन इम्पॉवरमेंट करने की कोशिश कर रहा हूँ !” तो इसका मायने क्या हुआ? डॉ. महेंद्र नारायण कर्ण से जब मैं यह सवाल करता, तो वह कहते कि “सुरेशजी, आंदोलन के साथियों मैंने कभी भी लालूजी बोलते हुए नहीं देखा ! वे लाख संपूर्ण क्रांति आंदोलन के नेता या कार्यकर्ता होंगे ! लेकिन कार्ल मार्क्स की भाषा में डिकास्ट या डिक्लास नहीं होने के कारण, उनके अंदर की जाति या उनके वर्ग के कारण वह लालूप्रसाद यादव को उचित सम्मान नहीं दे रहे हैं !

डॉ. महेंद्र नारायण कर्ण यह बताने के बाद बोलते थे कि “कभी आपकी और लालू जी की मुलाकात होनी चाहिए ! तो मैंने उनसे कहता कि “मैं व्यक्तिगत रूप से लालू प्रसाद यादव का भक्त नहीं हूँ ! एक सामाजिक कार्यकर्ता होने के नाते और हमारे देश की जाति व्यवस्था के कूड़ा-करकट के खिलाफ होने के कारण, और सत्तर के दशक से बिहार में आना-जाना होने के कारण मेरा अपना पर्यवेक्षण है। इसलिए मुझे व्यक्तिगत रूप से लालू प्रसाद यादव जी से मिलने में कोई रुचि नहीं है !”

बाद में डा कर्ण पटना से शिलांग के उत्तर पूर्व केंद्रीय विश्वविद्यालय (नेहू) में समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर होकर चले गए थे। और मै उस दौरान एनएपीएम का पूर्वी भारत का संयोजक होने के नाते, उत्तर पूर्वी राज्यों के दौरे पर जाता था ! तो उन्होंने मुझे ‘विकास की अवधारणा और उसके खिलाफ चल रहे जनांदोलनों’ पर अतिथि प्राध्यापक के रूप में पहली बार, एक हफ्ते के लिए अपने विभाग में आमंत्रित कियाथा। घर में वह अकेले ही रह रहे थे ! उन्होंने कहा कि “वैसे आपको हमारे विश्वविद्यालय के अतिथि के रूप में गेस्टहाउस में भी रहने की व्यवस्था है लेकिन मेरे निवास स्थान पर भी रहें तो हम दोनों और बातचीत कर सकते हैं!” तो मैं शिलांग में नेहू के कैम्पस में उनके साथ रह चुका हूँ ! और गारो, खासी, बोडो, कर्बी आदि जनजातियों के बारे में तथा उत्तर पूर्व की सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक स्थिति को समझने में, डॉ कर्ण के साथ होने से, विशेष मदद मिली!

जब मैं राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्ष था, तो उनके स्वास्थ्य की स्थिति अच्छी नहीं रहते हुएभी, मैंने उन्हें बिहार प्रदेश राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी स्वीकार करने का आग्रह किया था। वह तैयार हो गये और भागलपुर के श्री उदय जी को कार्यकारी अध्यक्ष मनोनीत किया था ! उनके साथ की आखिरी यात्रा और आखिरी मुलाकात तब हुई थी जब बिहार राष्ट्र सेवा दल की तरफ से चंपारण सत्याग्रह की शताब्दी यात्रा आयोजित की गई थी ! श्रीमती कर्ण भी साथ में थीं। और शायद उनका पुश्तैनी घर उसी दिशा में होने के कारण ! सारे सफर के दौरान, कहाँ अच्छी चाय या लिट्टी- चोखा तथा अन्य खाने-पीने की चीजें मिलती हैं, यह पता कर वहॉं-वहॉं गाड़ी रोक कर, हम फिर आगे का रुख करते

प्रमुख समाजशास्त्री तथा बिहार राष्ट्र सेवा दल पूर्व अध्यक्ष, जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित पटना के ए.एन. सिन्हा संस्थान के पूर्व निदेशक और मेरे घनिष्ठ मित्र प्रोफेसर एम.एन. कर्ण अब हमारे बीच नहीं रहे ! 9 अप्रैल के दिन रात के बारह बजे उनका निधन हुआ। 81 साल पूरे करके उन्होंने अंतिम सॉंस ली। पिछले तीन साल से वह स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे और पटना के एम्स से उनका इलाज चल रहा था। उनकी बेटी और दामाद डॉक्टर के रूप में वहॉं काम करते हैं, तो उनके क्वार्टर में ही रहकर इलाज चल रहा था। एक बेटा है, वह इंग्लैंड में काम करता है जो कल शाम को ही पटना पहुंच गया। आज मंगलवार को डॉ कर्ण का अंतिम संस्कार होगा।

बिहार के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन के बारे में प्रोफेसर एमएन कर्ण गहरी समझ रखते थे। महिलाओं, अल्पसंख्यक समुदाय तथा दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों के बारे में उनका गहरा अध्ययन और सरोकार था। उनके परिवार के सभी सदस्यों के दुख में राष्ट्र सेवा दल शरीक है और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

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