कर्नाटक के गुब्बी और येलहंका में किसानों पर हिंसा

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10 अप्रैल। पिछले हफ्ते कर्नाटक के तुमकुर जिले के गुब्बी शहर में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान वन विभाग ने हिंसा की। वन विभाग द्वारा भूमि अधिग्रहण के विरोध में गुब्बी शहर में 100 लोगों ने प्रदर्शन किया जो पूरी तरह शांतिपूर्ण था। आंदोलनकारी विगत चार दशकों से अधिग्रहीत की जा रही जमीन पर खेती कर रहे हैं, और इसके एवज में वे मालगुजारी भी दे रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, वन विभाग इस भूमि को कृषिकार्य से मुक्त कराकर वनारोपण के लिए अधिग्रहीत कर रहा है। कर्नाटक राज्य रैय्यत संघ और हसीरू सेना के राज्य अध्यक्ष एच.आर बासवराज ने ‘गौरी लंकेश’ न्यूज के हवाले से बताया कि वन विभाग ने गंगइहानापाल्या में खाई बनाना शुरू कर दिया, और जब स्थानीय लोगों ने विरोध किया, तो वन विभाग ने प्रदर्शनकारियों को पीटना शुरू कर दिया।

वन विभाग की पिटाई से तीन लोग जख्मी हो गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। कर्नाटक राज्य रैय्यत संघ ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। मामले की जाँच की जा रही है, और गड्ढों को कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया है। उसी सप्ताह बंगलौर के येलहंका में भी इसी तरह का एक मामला प्रकाश में आया, जिसमें ‘बंगलौर विकास प्राधिकरण’ ने पाँच एकड़ खेत में लगे चीकू, सुपारी और नारियल की फसल को बुलडोजर से नष्ट कर दिया। बंगलौर विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने आगामी कर्नाटक विधानसभा चुनाव का हवाला देते हुए कथित तौर पर किसानों से इस अवधि में विरोध प्रदर्शन न करने की चेतावनी भी दी। डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, वहीं जब किसानों ने इसका विरोध किया तो नौ किसानों को येलहंका न्यू टाउन पुलिस स्टेशन ले जाया गया और सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में आईपीसी की धारा 353 के तहत मामला दर्ज किया गया।

गौरतलब है कि वर्ष 2008 में शिवराम करंथ लेआउट के लिए 3,546 एकड़ जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ किसानों का संघर्ष अनवरत जारी है। उस समय 17 गाँवों के तकरीबन 15,000 किसानों ने इस अधिग्रहण पर आपत्ति जताई थी। वहीं कर्नाटक उच्च न्यायालय ने वर्ष 2015 में इस अधिग्रहण के विरोध में अपना फैसला सुनाया था। बंगलौर विकास प्राधिकरण ने उच्च न्यायालय के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के इस फैसले को उलट दिया और बंगलौर विकास प्राधिकरण को अंतिम अधिसूचना जारी करने और 3 महीने में लेआउट के गठन के साथ आगे बढ़ाने का निर्देश दिया। इसके बाद प्राधिकरण ने 3,546 एकड़ के लिए अंतिम अधिसूचना जारी की। बंगलौर विकास प्राधिकरण सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर किसानों को लगातार प्रताड़ित कर रहा है।

(Gaurilankeshnews.com से साभार)

अनुवाद – अंकित कुमार निगम

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