11 अप्रैल। विगत पाँच वर्षों में अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के 19,000 से अधिक छात्रों ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों और भारतीय प्रबंधन संस्थानों से ड्रॉप-आउट किया है। तमिलनाडु से डीएमके के सांसद तिरुचि शिवा को एक लिखित जवाब में, केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री सुभाष सरकार ने बताया है कि वर्ष 2018 तथा 2023 के बीच 6,901 अन्य पिछड़ा वर्ग, 3,596 अनुसूचित जाति और 3,949 अनुसूचित जनजाति के छात्र केंद्रीय विश्वविद्यालयों से ड्रॉप-आउट हो गए थे। इसी तरह 2,544 ओबीसी, 1,362 एससी और 538 एसटी छात्र आईआईटी से बाहर हो गए। इसके अलावा 133 ओबीसी, 143 एससी और 90 एसटी छात्रों ने आईआईएम की पढ़ाई छोड़ दी थी।
वंचित तबकों से वाले छात्रों द्वारा ऐसे प्रतिष्ठित संस्थानों को छोड़ने के पीछे भेदभाव, कठिन पाठ्यक्रम और कठिन प्रतिस्पर्धा प्रमुख कारण हैं। आईआईटी बॉम्बे के एक छात्र ने ‘न्यूजक्लिक’ के हवाले से बताया, कि छात्रों को कैंपस में प्रवेश करते ही अत्यधिक दबाव महसूस होता है। अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षकों और साथी छात्रों का लगातार दबाव बना रहता है। दूसरी बड़ी समस्या छात्रों में संवेदनशीलता की कमी है। प्रशासन ने सामान्य वर्ग के छात्रों को वंचित तबके के छात्रों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए बहुत कम प्रयास किए हैं। अगर प्रशासन ने इस मुद्दे को ज्यादा गंभीरता से लिया होता तो स्थिति इतनी खराब नहीं होती।
(‘न्यूज क्लिक’ से साभार)