15 अप्रैल। लैंगिक असमानता की जो खाई कृषि में भी महिलाओं का पीछा नहीं छोड़ रही है। कहीं न कहीं यह कृषि में महिलाओं की घटती भागीदारी के लिए भी जिम्मेवार है। आँकड़े दर्शाते हैं कि कृषि में जिस काम का पुरुषों को एक रुपया मिलता है, वहीं उसकी तुलना में महिलाओं को केवल 82 पैसे ही मिल रहे हैं। मतलब दोनों की मजदूरी में करीब 18.4 फीसदी का अंतर है। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा जारी नई रिपोर्ट ‘द स्टेटस ऑफ वीमेन इन एग्रीफूड सिस्टम्स’ में सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक, जहाँ 2005 में 33 फीसदी महिलाएं अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर थीं, वहीं 2019 में यह आँकड़ा 9 फीसदी की गिरावट के साथ 24 फीसदी पर पहुँच गया है।
लैंगिक असमानता की यह दूरी सिर्फ यहाँ तक ही सीमित नहीं है, कृषि उत्पादकता के मामले में भी इनके बीच की खाई काफी गहरी है। पता चला है कि पुरुष और महिला किसानों के बीच कृषि उत्पादकता में करीब 24 फीसदी का अंतर है। इसी तरह पुरुषों और महिलाओं के बीच खाद्य असुरक्षा की खाई 2019 में 1.7 फीसदी से 2021 में 4.3 फीसदी तक बढ़ गई है। ऐसे में खाद्य एवं कृषि संगठन ने अपनी इस रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया है कि यदि असमानता की इस खाई को भरने पर ध्यान दिया जाए, तो न केवल महिलाओं को इससे फायदा होगा साथ ही सारे समाज को इसका फायदा पहुँचेगा। देखा जाए तो इस अंतर के लिए कहीं न कहीं हमारी सामाजिक व्यवस्था और भेदभावपूर्ण मानदंड ही जिम्मेवार है, जहाँ महिलाओं को पुरुषों से कमतर आँका जाता है। आज भी दुनिया के कई हिस्सों में महिलाओं को घर से बाहर काम करना हीन समझा जाता है।
(‘डाउन टू अर्थ’ से साभार)
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