हमारे लोकतंत्र पर गहराते संकट के बीच मधु लिमये की याद

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— हरभजन सिंह सिद्धू —

धु लिमये जन्मशती पूरे देश में मनायी जा रही है। आचार्य नरेन्द्रदेव, राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण के बाद समाजवादी आंदोलन का नेतृत्व करने वाले एक महान समाजवादी नेता मधु लिमये का जन्म 1 मई 1922 को पुणे में हुआ था। प्रसिद्ध फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में कॉलेज की शिक्षा प्राप्त की। छात्र राजनीति में सक्रिय रहे और फिर ‘राष्ट्रीय राजनीति’ में प्रवेश किया। वह आचार्य नरेन्द्रदेव, राममनोहर लोहिया और अन्यों के समाजवादी विचारों से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने गोवा के स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत सक्रिय भाग लिया। 1955 में गोवा में प्रवेश करने के लिए एक जुलूस का नेतृत्व किया। पुर्तगाली पुलिस ने अनुमति नहीं दी। प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया। मधु लिमये को भी पीटा गया। पुर्तगाली पुलिस की हिरासत में रखा गया। उन्होंने उन्नीस महीने जेल में बिताए, सजा के खिलाफ अपील नहीं की।

लोकतंत्र, सामाजिक न्याय, राष्ट्रीय एकता, धर्मनिरपेक्षता, उनकी आवश्यकता और अंतर्संबंधों पर मधु जी की मजबूत पकड़ थी। उन्होंने सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की। उन्होंने राष्ट्र के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक विकास जैसे आम जनता से संबंधित कई मुद्दों पर अपने प्रबुद्ध, निडर, तार्किक एवं तेज लेखन के माध्यम से पाठकों और जनता को प्रभावित किया। उन्होंने बहुत विनम्रता से भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली स्वतंत्रता सेनानी पेंशन को लेने से इनकार कर दिया। वे चार बार संसद के लिए चुने गए लेकिन पूर्व सांसद की पेंशन स्वीकार नहीं की।

वयोवृद्ध कर्मयोगी मधु लिमये की जीवन शैली बहुत सरल थी। उन्हें अपने व्यक्तिगत आराम हेतु कोई अपेक्षा नहीं थी। वे एक छोटे-से कमरे में रहते थे और पुस्तकें तथा लेख लिखते थे।

इस बहुत ही सरल कर्मयोगी द्वारा अभिव्यक्त विचारों पर सैकड़ों युवाओं ने शोध किया अथवा कर रहे हैं। उनकी शिक्षाएँ वर्तमान युवा राजनेताओं के लिए बहुत प्रासंगिक हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों, भारत के संविधान में भारत के नागरिकों के लिए प्रदत्त मौलिक अधिकारों के लिए, उत्पादन और वितरण के स्रोत पर लोगों के नियंत्रण, समान वितरण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आदि को मजबूत करने के लिए मधु लिमये बराबर प्रयासरत रहे।

वर्तमान समय में हमारा राष्ट्र सबसे खराब दौर से गुजर रहा है। राजनीतिक शासन ने संविधान के नाम पर शपथ तो ली लेकिन संख्याबल के मद में संविधान को भुला दिया गया और वे संविधान की मूल भावना के विपरीत गतिविधियों में लिप्त हैं। मसलन रेलवे, रक्षा, कोयला, बंदरगाह और गोदी जैसे कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों/उद्योगों में में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति देकर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण, बिक्री, अपनी पसंद के निजी कारोबारी खिलाड़ियों को कड़ी मेहनत से अर्जित राष्ट्रीय संपत्ति- सड़क, परिवहन, बैंक, बीमा, दूरसंचार, बिजली का उत्पादन, वितरण और प्रेषण, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वालों के विरुद्ध गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) को लागू करना, आवश्यक रक्षा सेवा अनुसरण अधिनियम 2021 (ईडीएसए) को नागरिक रक्षा प्रतिष्ठान में हड़ताल पर प्रतिबंध लगाने के लिए इस्तेमाल करना, ट्रेड यूनियनों और उसके पदाधिकारियों पर विभिन्न प्रतिबंध लगाने, नियोक्ता को पूर्ण निरंकुश बनाने के लिए, लंबे संघर्षों से अर्जित 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को समाप्त कर, चार श्रमिक-विरोधी संहिताएँ बनाना, ये सारे फैसले हमारी अर्थव्यवस्था को मुट्ठी भर लोगों के हाथों में केंद्रित करने के साथ ही हमारे नागरिक अधिकारों तथा लोकतंत्र पर भी कुठाराघात हैं।

इसी तरह केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में उद्योगपतियों के लिए द्वार खोलते हुए तीन कृषि अधिनियम बनाए। इन तीन काले कानूनों के खिलाफ किसान सड़कों पर उतर आए और तेरह महीने लगातार चले उनके अभूतपूर्व व ऐतिहासिक धरनों के कारण सकार को आखिरकार ये कानून वापस लेने पड़े।

आज समाज के सभी तबके – छात्र, युवा, कामगार, किसान, योजना कार्यकर्ता, घरेलू कामगार, रेहड़ी-पटरी वाले, सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी, दूरसंचार कर्मचारी, रेल कर्मचारी, सड़क परिवहन कर्मचारी, नागरिक उड्डयन, शिक्षक, पैरा मेडिकल स्टाफ, डॉक्टर, इंजीनियर और अन्य तबकों के लोगों में गंभीर रोष व्याप्त है। सरकार किसी की सुन नहीं रही है। लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए साझी और निर्णायक लड़ाई का समय आ गया है।

श्री मधु लिमये के प्रति सबसे उपयुक्त श्रद्धांजलि यही होगी कि हम अपने लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए तेजी से एकजुट और सक्रिय हों।

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