केशव शरण की चार कविताएँ

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पेंटिंग - जुबेन नईम


1. सेवाग्राम में गौरैया

वाराणसी से
वर्धा के बीच
अनेक तरह के पंछी मिले
जो रेल की खिड़की से
जंगल-जंगल दिखे
जिनमें थे पलाश के सुन्दर-सुन्दर फूल खिले

गौरैया दिखी
सेवाग्राम में
बापू की कुटिया के भीतर
जो हमें देख
बाहर उड़ गई

वही दिखी फिर
बा की कुटिया में
पर पता नहीं कि
वही थी या दूसरी
वह भी हमें देख
बाहर उड़ गई

ऐतिहासिकता में डूबा
कुटियाओं का शान्त अहाता
पारकर जब पहुँचे हम
गौशाले के पास
उनका झुण्ड मिला
चहचहाता

एक प्रचुर उल्लास
महसूस हुआ मन में
और जगी
मधुर दिनों की आशा

2. आज भी

बापू के आश्रम के खेत
आज भी
बैल जोत रहे हैं
आज भी विनोबा के आश्रम के खेत

बैलों की यह कौन-सी पीढ़ी है
गायों के समेत
मालूम नहीं

लेकिन वे सुख-संतोष से हैं
ऐसे ही उनके पुरखे रहे होंगे
आज़ादी के पहले
और आज़ादी के बाद

इन खेतों में पड़ती है
आज भी वही खाद
जो बाहर से ख़रीदी नहीं जाती

गाय पीपल की छाँव में
आश्रम का ही हरा चारा
पगुराती
आज भी

पेंटिंग- बिजेन्द्र

3. इस देश के प्रदेश

देश यहाँ है
सेवाग्राम में
इस देश का प्रदेश
एक यहाँ है
पवनार में

लेकिन यह देश
कितना छोटा है
पूरी धरती के अनुपात में
सुई की नोक के
बराबर भी नहीं
उस पर सर्वथा अपूर्ण !

भूगोल कुछ नहीं
लेकिन इसका इतिहास बड़ा है
यहाँ आज भी एक विचार खड़ा है
जो उजास फैला सकता है
पूरी धरती पर
मनुष्यता का विकास करवा सकता है
पूरे विश्व में

पूरी पृथ्वी पर होंगे जब
इस देश के प्रदेश
मिटेंगे तब
सम्पूर्ण मानवता के क्लेश

4. सेवाग्राम में रिनपोछे जी

निर्वासित तिब्बत सरकार के
पूर्व प्रधानमंत्री रिनपोछे जी
उदबोधन दे रहे हैं
शान्त सभागार
ध्यानपूर्वक सुन रहा है

ऐसा लगता है
तिब्बत बोल रहा है
भारत सुन रहा
वही वाणी
जो गूँजी थी यहाँ
ढाई हज़ार साल पहले
जो कहती थी
चित्त का विकास महत्त्वपूर्ण है
चरित्र का विकास महत्त्वपूर्ण है
मनुष्य का विकास महत्त्वपूर्ण है
उसमें नहीं समाया था
सिर्फ़ विकास !
जो आज
चीन भी कर रहा है
विनाश के कगार पर

सर्वोदय क्यों नहीं
सब मिलाकर?

अपनी धार्मिक पोशाक़ में
एक ऋषि लगते
रिनपोछे जी
उदबोधन के बाद
दुबारा दिखे हैं
बापू की कुटी से निकलते

वे कहाँ जाएंगे,
तिब्बत
या सारनाथ?

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