— प्रोफेसर राजकुमार जैन —
शास्त्रीय संगीत, एक अति कठिन विधा है, परंतु हिंदुस्तान के सियासतदानों में शायद मधु लिमये जैसे कम लोग ही रहे होंगे जिनको भारतीय शास्त्रीय संगीत में दिलचस्पी के साथ-साथ उसके शास्त्रीय पक्ष की भी जानकारी रही हो। इनके पिताजी, संगीत के बड़े विद्वान थे।
मधु जी के अति निकट जाने का एक महत्त्वपूर्ण कारण, भारतीय शास्त्रीय संगीत था। दिल्ली में हमारे समाजवादी साथी रवींद्र मिश्रा, जो कि शास्त्रीय संगीत के चोटी के समीक्षक हैं, हम दोनों संगीत की महफिल में मधु जी की संगत करते थे।
वर्ष 1937 में मधु जी की मैट्रिक की परीक्षा के दिन नजदीक आने लगे। पढ़ाई को लेकर मधु जी के पिताजी बार-बार कहने लगे, लेकिन उन दिनों ये संगीत के प्यार में डूबे हुए थे। बचपन में नाट्य संगीत के जरिये, शास्त्रीय गाने से इनकी पहचान करवाई गई। ये राग भीमपलाश, बागेश्री, दरबारीकाड़ा, मालकोंश, यमन, भूप, दुर्गा, शंकरा, केदार पहचानने लगे। एक दिन इनके पिताजी ने संगीत की एक किताब पढ़ते हुए इन्हें देख लिया, उन्हें बहुत गुस्सा आया। डाँट सुनाई, लेकिन इनके संगीत के शौक में कभी कमी नहीं आई। मधु जी का कहना था कि “क्योंकि मेरी आवाज अच्छी नहीं है, इसलिए मैं केवल कानसेन (कानों से सुनने वाला, न कि प्रसिद्ध संगीतज्ञ तानसेन) बनकर रह गया, सुनने की लत मैंने कभी नहीं छोड़ी। गाने के कार्यक्रमों में जाने का एक भी मौका मैं गँवाता नहीं था। संगीत और नृत्यकला का मैं रसिक और भक्त हूँ।
हिंदुस्तान के बड़े-से-बड़े नामी संगीतकार, उस्ताद, नर्तक, गवैये, मधु जी के मुरीद थे। इनके घर पर मैंने कुमार गंधर्व, भीमसेन जोशी, जितेंद्र अभिषेकी, डागर बंधु, यामिनी कृष्णमूर्ति, सोनल मानसिंह, उमा शर्मा जैसे कलाकारों को संगीत चर्चा करते हुए देखा है। संगीतकारों के कमजोर पक्ष पर सलाह भी देते थे।
मधु जी की संगीत पर कितनी गहरी जानकारी थी, इसका एक उदाहरण है, एक दिन मधु जी के साथ दिल्ली के प्रगति मैदान गया हुआ था, वहाँ हॉल में किसी का गायन था। थोड़ी देर में ही मधु जी बाहर आ गए, उन्होंने मुझसे कहा कि जाकर पता लगाओ कि यह कौन सा राग है। मैं कलाकार से पूछकर आया, उन्होंने बताया ‘परज’ राग। मैंने मधु जी को बताया, मधुजी ने हँसते हुए, हाथ में रखी एक पर्ची, जिस पर ‘परज’ लिखा हुआ था दिखाया। मेरी संगीत की परीक्षा मधुजी हँसते हुए लेते रहते थे, हालांकि मेरी संगीत जानकारी बहुत ही मामूली है, परंतु जब भी कुछ गाना अथवा वाद्य यंत्र का बजाया सुनने को पड़ता तो मधु जी पूछते थे कि बताओ क्या राग है? संगीत का कितना दीवानापन उनको था इसकी कई बातें मुझे याद हैं।
भरतनाट्यम नृत्य की जगत प्रसिद्ध नृत्यांगना यामिनी कृष्णमूर्ति का प्रेम विवाह समाजवादी साथी, सुप्रीम कोर्ट के वकील और दिल्ली के नामी मशहूर मिठाई ‘चाइन राम सिंधी’ हलवाई के बेटे साथी संतोख सिंह के साथ मधु जी के 15 ए.बी. पंडारा रोड के घर पर होना निश्चित हुआ। मधु जी और चंपा जी ने कन्यादान किया। सुबह से मधु जी चंपा जी तैयारी में लग गए, सुगंधित फूलों से घर सजाया गया। चंपा जी ने मराठी साड़ी और उपहार नवदंपति को भेट दिए।
ओडिसी नृत्यांगना तथा राज्यसभा सदस्य सोनल मानसिंह लिखती हैं :
“मधु लिमये से मिलने के बाद उनके अंदर के जिन मधु जी को मैंने जाना, वे मधु जी बहुत गंभीर, शालीन, गरिमापूर्ण और बेहद सुलझे हुए व्यक्ति थे, उनका हृदय विशाल था, उनकी रुचियाँ बहुत विस्तृत थीं। ऐसा कोई विषय नहीं था जिसमें उनकी रुचि न रही हो। महाभारत पर तो उनका अधिकार-सा था। संस्कृत भाषा और भारतीय बोलियों के वे जानकार थे, वे तुरंत बता दिया करते थे कि कौन सा राग बज रहा है। जरा सा स्वर गलत होते ही वे तुरंत पकड़ लिया करते थे।
एक बार शंकरलाल म्यूजियम फेस्टिवल में अली अकबर खां और रविशंकर जी का प्रोग्राम था। बहुत बरसों बाद इन दोनों की जुगलबंदी हो रही थी। मधु जी उस दिन बंबई से आ रहे थे, पालम एयरपोर्ट से वे सीधे ही कार्यक्रम में पहुँच गए। कार्यक्रम जब शुरू हो गया तो थोड़ी देर में मधु जी कुछ बेचैन-से होकर सीट से इधर-उधर खिसकने लगे। मैंने जब पूछा कि आप अनमने-से क्यों हैं तो कहने लगे कि सितार ही मिली हुई नहीं है तो कैसे सुनूं। उस दिन मुझे अहसास हुआ कि संगीत में उनका कितना दखल है।”
हिंदुस्तान की संसद में संविधान, अर्थशास्त्र, विदेश नीति का पाठ पढ़ानेवाले मधु जी का आंतरिक सुख और रस, अध्ययन और संगीत से मिलता था। उनके घर में पुराने किसम का एक टेप-रिकार्डर था। जब मधु जी आनंद के हिलोरे लेने के लिए अपने मनपसंद कैसेट को लगाकर, रसोईघर में कुछ बनाने के लिए घुस जाते उस समय उनको बाहरी दखल बिलकुल भी पसंद नहीं था।
एक रात्रि को मधु जी मराठी में, लता मंगेशकर की ज्ञानेश्वरी और खत्म होते ही राग शंकरा बिना घर में बल्ब जलाए आँख मीचकर मग्न होकर सुन रहे थे। राग खत्म होने पर जब मैंने घर का दरवाजा खोला तो देखा कि दरवाजे से सटकर एक विदेशी लड़की वहाँ बैठी हुई है। बिना कुछ समझे हुए मधु जी ने उसको ‘गो अवे’ कह दिया। वह उठकर चली गई, एक क्षण में ही मधु जी माजरा समझ गए। मुझसे कहा भागकर जाओ, उससे माफी मांग कर आओ, वह तो बेचारी संगीत सुन रही थी।