जातीय जनगणना पर पटना हाईकोर्ट के फैसले को लेकर भाजपा क्यों गदगद है?

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— शिवानंद तिवारी —

जातीय जनगणना पर हाईकोर्ट के फ़ैसले पर भाजपा जश्न क्यों मना रही है ! क्या वह मजबूरी में जातीय सर्वेक्षण का समर्थन कर रही थी? भाजपा ने मन से कभी भी पिछड़ों के आरक्षण का समर्थन नहीं किया। वीपी सिंह सरकार द्वारा मंडल आयोग की अनुशंसा के आधार पर केंद्रीय सरकार की नौकरियों में आरक्षण के प्रावधान के विरोध में आडवाणी जी ने रामरथ निकाला था।

जातीय गणना के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट और उसके बाद हाईकोर्ट में विरोध करने वाला ‘यूथ फ़ॉर इक्विलिटी’ पिछड़ों के आरक्षण का विरोध करने वाले युवाओं का संगठन है।आर्थिक आधार पर दस प्रतिशत आरक्षण के विरोध में भी इस संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इनका कहना था कि सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर युवाओं को दिया जानेवाला वह आरक्षण अलग से नहीं बल्कि पिछड़ों को दिए जाने वाले सताईस प्रतिशत आरक्षण के भीतर दिया जाना चाहिए। पटना उच्च न्यायालय ने आरक्षण विरोधी इसी युवा संगठन की माँग को मंजूर करते हुए बिहार सरकार के द्वितीय चरण की जातीय गणना पर फिलहाल रोक लगा दी है।

जातियों में बुरी तरह विभक्त हमारे समाज में तटस्थ दृष्टिकोण अपवाद है। हमारे समाज के इस गंभीर रोग को ही ध्यान में रखते हुए उच्च न्यायपालिका में भी आरक्षण लागू किये जाने की माँग बहुत दिनों से की जा रही है। 2001 में ही करिया मुंडा की अध्यक्षता में गठित भारतीय संसद की संयुक्त संसदीय समिति ने उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति में आरक्षण की सशक्त अनुशंसा की थी।

भारतीय जनता पार्टी अगर जाति व्यवस्था को देश के लिए अभिशाप मानती है तो क्या वह उच्च न्यायपालिका में सामाजिक असंतुलन को दूर करने के लिए करिया मुंडा समिति की अनुशंसा के अनुसार उच्च न्यायपालिका में भी आरक्षण का समर्थन करती है?

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