त्र्यंबकेश्वर में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की साजिश कैसे हुई नाकाम

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— डॉ सुरेश खैरनार —

18 मई। मराठी में एक कहावत है कि जो गांव करें तो राव क्या करें? मतलब जो गाँव के लोग मिलकर करेंगे तो गांव के जमींदार या जिन्हें अंग्रेज सरकार ने राव का खिताब दिया है वह क्या करेंगे? यही सबक कल त्र्यंबकेश्वरवासियों ने अपनी नगरपरिषद की बैठक में सर्वसम्मति से त्र्यंबकेश्वर के संदल के जुलूस की तरफ से मंदिर की उत्तर दिशा की ओर से चढ़ने की सीढ़ियों को धूप दिखाने की परंपरा को उग्र हिंदुत्वादियों की तरफ से किए जा रहे द्वेषपूर्ण प्रचार के खिलाफ दिया। गांव के लोगों ने मिलकर विरोध किया ! और संदल के धूप दिखाने की परंपरा का समर्थन किया है। यह वर्तमान समय में भारत में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने वाले लोगों के मुॅंह पर जोरदार तमाचा है।

नासिक का त्र्यंबकेश्वर गोदावरी नदी का उदगम स्थल है ! और बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक ! शनिवार दिनांक 13 मई को एक संदल जुलूस निकाला गया था ! जो सैकड़ों सालों से त्र्यंबकेश्वर के मंदिर से होकर गुजरता रहा है ! और वहां के मंदिर के उत्तर दिशा की सीढ़ियों को धूप दिखाकर आगे बढ़ता है ! उसी को लेकर उन्होंने रक्षा के लिए तैनात गार्ड से विनती की, तो गार्ड ने कहा कि “यहां गैर हिंदुओं को अंदर जाने की इजाजत नहीं है !” तो संदल वाले युवाओं ने कहा कि “हमें सिर्फ मंदिर की पहली सीढ़ियों तक छोड़ने की इजाजत दीजिए ! हम वहीं से भगवान को धूप दिखाकर आगे बढ़ जाएंगे!” हम भगवान त्र्यंबकेश्वर से लेकर सभी भगवान को मानते हैं। भगवान को धूप दिखाने की परंपरा काफी पुरानी है, और हमें उतनी इजाजत दी जाए !

लेकिन हिंदुत्ववादी संगठनों ने कहा, ऐसी कोई परंपरा नहीं है। इस पर कहासुनी हुई। इस घटना का किसी ने वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया। स्थानीय लोग ही त्र्यंबकेश्वर मंदिर की सुरक्षा की व्यवस्था करते थे, और यह परंपरा चली आ रही है इसकी उन्हें जानकारी थी ! लेकिन अभी हाल ही में महाराष्ट्र सुरक्षा दल के जवानों को तैनात किया गया है और उनके द्वारा मुस्लिम युवकों को रोकने की घटना हुई है। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री विशेष रूप से इस घटना पर नजर रखे हुए हैं और अब वह इस मामले की एसआईटी के द्वारा जांच करने की और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की घोषणा कर चुके हैं !

यही महाशय 2018 के एक जनवरी को भीमा कोरेगांव के शौर्य दिवस के बाद हुए दंगों को लेकर क्या राजनीति किए हैं? इस घटना की जांच मैंने अपने सहयोगियों के साथ वहॉं जाकर की थी। त्र्यंबकेश्वरके नगरपरिषद के सभी सदस्यों और गांव के नागरिकों का हृदय से धन्यवाद देते हुए कहना है कि “हमारे देश में सभी नागरिकों को त्र्यंबकेश्वरके मॉडल का अनुकरण करते हुए, सांप्रदायिक तनाव फैला कर राजनीति करने वालों को रोकने के लिए, इस घटना से सबक मिल सकता है !

लेकिन हिंदुत्ववादी संगठन जो लगातार धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं उन्हें यह नागवार लगा और इस घटना को लेकर गलत जानकारी और अफवाहों का दौर शुरू करने की कोशिश की गई थी !

लेकिन त्र्यंबकेश्वर नगर पंचायत को दाद देनी चाहिए कि उन्होंने समझदारी दिखाते हुए इस मामले में खुद होकर बुधवार दिनांक 17 मई को समस्त गांव के लोगों के साथ बैठक की, तथा सामाजिक एकता की भूमिका को लेकर सभी उपस्थित लोगों ने एक स्वर में कहा कि धूप दिखाने की परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है ! और शहर में कहीं भी सांप्रदायिक तनाव नहीं है ! और यह कहते हुए, इस घटना को लेकर राजनीति करने वाले लोगों को आड़े हाथों लिया है।

लेकिन दूसरी तरफ सकल हिंदू महासभा के नेतृत्व में हिंदुत्ववादी संगठनों ने सीढ़ियों के शुद्धिकरण और महाआरती करते हुए, दावा किया कि धूप दिखाने की परंपरा नहीं रही है।

इस पूरे प्रकरण को लेकर पिछले तीन दिन से हिंदुत्ववादी संगठनों ने जिसमें हिंदू महासभा, आखिल भारतीय ब्राह्मण महासंघ, भाजप अध्यात्मिक आघाडी, युवा मोर्चा, नासिक पुरोहित संघ, लव जेहाद संगठनों के प्रतिनिधियों ने बुधवार को त्र्यंबकेश्वर में दौड़कर मंदिर की सीढ़ियों के शुध्दिकरण से लेकर महाआरती करने के बाद हिंदुओं के अलावा और किसी भी धर्म के लोगों को मंदिर के अंदर जाने की सख्त मनाही लिखा हुआ बोर्ड उत्तर प्रवेशद्वार के ऊपर लगा दिया है !

और उसी समय त्र्यंबकेश्वर नगरपरिषद की बैठक में, सर्वसम्मति से संदल के जुलूस की तरफ से, भगवान को धूप दिखाने की परंपरा है यह एक स्वर में कहा जा रहा था। और इस घटना को राजनीतिक रंग देकर हमारे गांव की शांति और सद्भावना के माहौल को बिगाड़ने की कोशिश करनेवाले लोगों को गांव के लोगों ने आडे़ हाथों लिया है।

त्र्यंबकेश्वर गांव के लोगों से बगैर मिले, तथाकथित हिंदुत्ववादी संगठनों के लोग हमारे गांव में शांति और सद्भावना के माहौल को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं इस बात की त्र्यंबकेश्वरवासियों ने कडे़ शब्दों में निंदा की है !

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि “इस्लाम धर्म या ख्रिश्चन धर्म तलवार के जोर पर नहीं फैला ! हिंदू धर्म की छुआछूत और गैरबराबरी के व्यवहार के कारण दलितों ने इन धर्मों को खुशी-खुशी अपनाया है !”

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने नासिक के कालाराम मंदिर में दलितों को प्रवेश दिलाने के लिए भारत के इतिहास का सबसे लंबा सत्याग्रह किया, जो 2 मार्च 1930 से शुरू हुआ और 1936 में समाप्त हुआ। छह साल (5 वर्ष 11 महीने और 7 दिन !) जिसमें दादासाहेब गायकवाड, सहस्रबुद्धे जी, देवराव नाईक, वी डी प्रधान, बालासाहेब खरे, स्वामी आनंद तथा पंद्रह हजार से अधिक लोगों ने इस सत्याग्रह में भागीदारी की थी और स्थानीय सनातनियों की तरफ से पत्थरों की वर्षा की गई थी ! लेकिन आंदोलनकारियों की तरफ से एक भी प्रतिकार या हमले का उदाहरण नहीं है ! इतने लंबे समय तक मंदिर प्रवेश के लिए आंदोलन करने के बावजूद सनातनियों ने मंदिर में दलितों को प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी।

और उसी नासिक जिले के येवला में बाबासाहब आंबेडकर जी ने घोषणा की कि “मैं हिंदू धर्म में पैदा जरूर हुआ लेकिन मैं मरने के पहले हिंदू धर्म का त्याग करूँगा !” और 14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने अपने लाखों अनुयायियों के साथ नागपुर की दीक्षाभूमि पर बौद्ध धर्म को स्वीकार किया। और उसके बाद 6 दिसंबर 1956 के दिन महानिर्वाण किया !

क्या इतिहास की इन घटनाओं से तथाकथित हिंदुत्ववादी लोगों को कोई सबक नहीं मिल रहा है? मेरी राय में आज भारत में रह रहे कोई भी मुस्लिम या क्रिश्चियन ऐसा नहीं है जिसके पूर्वजों ने भारत की जाति व्यवस्था से तंग आकर हिंदू धर्म का त्याग नहीं किया है !

और उसके बावजूद वे त्र्यंबकेश्वर जैसी घटनाओं को अंजाम देने की कोशिश कर रहे हैं ! लेकिन खुशी की बात है कि त्र्यंबकेश्वर के गांव के लोगों ने मिलकर गांव की शांति और सद्भावना को बिगाड़ने वाले लोगों को आड़े हाथों लिया है ! अब इसके बाद भी उपमुख्यमंत्री कौन सी जांच कर रहे हैं?किसे सज़ा देने जा रहे हैं?

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