हादसों की पटरी पर कब तक चलेगी रेल

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— भारत डोगरा —

रेल प्रबंधन में सुरक्षा को उच्चतम प्राथमिकता देना आवश्यक है। पिछले एक दशक के औसत को देखें तो भारत में प्रतिवर्ष रेल दुर्घटनाओं में 24,000 व्यक्तियों की मौत होती है, जबकि यूरोपियन यूनियन के सभी देशों को मिलाकर देखें तो भी यह आंकड़ा एक हजार से कम है।

रेल सुरक्षा में सुधार की जरूरत को देखते हुए वर्ष 2015-16 में समुचित वित्तीय व्यवस्था हेतु उच्च स्तरीय विमर्श किया गया था। फलस्वरूप पांच वर्ष के लिए 1,54,000 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई जिसमें से 1,19,000 करोड़ रुपए ‘राष्ट्रीय रेल संरक्षक कोष’ पर खर्च होने थे। वर्ष 2017-18 से यह कोष आरंभ हुआ, पर इसके लिए पहले पांच वर्ष में एक लाख करोड़ रुपए की ही व्यवस्था हो सकी, यानी मूल अनुमान से 19,000 करोड़ रुपए कम। फिर भी 20,000 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष की राशि का नियोजन तो अगले पांच वर्ष के लिए हो ही गया था व वित्तमंत्री की इस घोषणा का स्वागत भी हुआ था।

अब यदि सात वर्ष की स्थिति, 2017-18  से  2023-24  तक, देखें तो पहले पांच वर्ष के वास्तविक खर्च के आंकड़े उपलब्ध हैं व नवीनतम दो वर्षों के संशोधित व वास्तविक बजट अनुमान भी उपलब्ध हैं। इनके अनुसार वास्तविक उपलब्धि 1,40,000 करोड़ रु के स्थान पर 96,000 करोड़ रुपए की रही, यानी 44,000 करोड़ रुपए की कमी रही। इसमें पहले ही हो चुकी 19,000 रु. की कमी भी जोड़ दें तो ‘राष्ट्रीय रेल संरक्षक कोष’ में सात वर्षों में 63,000  करोड़ रु. की कमी रही, यानी प्रतिवर्ष 9000 करोड़ रु की कमी रही। रेलवे मंत्रालय से जुड़ी संसदीय-समिति ने कहा है कि इस तरह संसाधनों में कमी होते रहने से ‘राष्ट्रीय रेल संरक्षक कोष’ का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता।

उधर नियंत्रक एवं महा लेखा परीक्षक (कैग) ने वर्ष 2022 की एक रिपोर्ट में ऐसे ही विचार प्रकट करते हुए कहा है कि रेलवे को अपने आंतरिक स्रोतों से ‘राष्ट्रीय रेल संरक्षक कोष’ के लिए बेहतर संसाधन उपलब्ध कराना चाहिए। इसके लिए कैग ने ‘राष्ट्रीय रेल संरक्षक कोष’ के पहले चार वर्षों का आकलन करते हुए बताया है कि इन वर्षों में रेलवे को अपने आंतरिक स्रोतों से राष्ट्रीय रेल संरक्षक कोष के लिए मात्र 20,000 करोड़ रु की व्यवस्था करने के लिए कहा गया था, पर रेल मंत्रालय इसमें से मात्र 21 प्रतिशत की आपूर्ति ही कर पाया, जबकि  79 प्रतिशत की आपूर्ति नहीं हो पायी। इसके अतिरिक्त कैग-रिपोर्ट ने यह भी कहा है कि सुरक्षा की उच्चतम प्राथमिकताओं के आधार पर कार्य नहीं हो सका। अतः भविष्य के लिए सही प्राथमिकताओं के आधार पर सुरक्षा कार्य को तेजी से आगे बढ़ाना जरूरी हो गया है।

एक अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दा यह है कि रेल दुर्घटनाओं में जो यात्री घायल होते हैं उनमें से अनेक को दीर्घकालीन इलाज की जरूरत होती है। तुरंत तो इलाज मिल जाता है, पर दीर्घकालीन इलाज उपेक्षित रह जाता है। अनेक अध्ययनों में यह सामने आया है कि रेल दुर्घटनाओं में घायल कई व्यक्तियों की चोट व क्षति बहुत गंभीर होती है व इसके लिए बार-बार अस्पताल जाना पड़ सकता है। ऐसे घायल व्यक्तियों के दीर्घकालीन इलाज की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए व इसके लिए भी रेलवे को पर्याप्त संसाधनों की व्यवस्था करनी चाहिए।

नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि घायल यात्रियों की सही संख्या के अनुमान में भी सुधार की जरूरत है। वर्ष 2021 में लगभग 18,000 रेल दुर्घटनाएं हुईं जिनमें मात्र 1800 व्यक्तियों को घायल दिखाया गया, यानी  10 दुर्घटनाओं में मात्र एक घायल दिखाया गया। इन आंकड़ों में सुधार होने से भी अधिक लोगों को सहायता मिल सकेगी। ऐसा तो कहीं भी नहीं देखा गया है कि दस रेल दुर्घटनाओं में मात्र एक घायल हो। अभी हाल की ओड़िशा दुर्घटना को देखें तो उसमें घायल लोगों की संख्या मृतकों की संख्या से तीन गुना अधिक है।

सामान्य तौर पर यह माना जा सकता है कि एक रेल दुर्घटना में औसतन दो व्यक्ति तो घायल होते ही हैं। यदि इस हिसाब से देखा जाए तो वर्ष 2021 में 18,000 रेल दुर्घटनाओं में लगभग 36,000 लोग घायल हुए होंगे, जबकि आंकड़ों में केवल 1800 व्यक्ति ही घायल बताए गए हैं। सवाल यह उठता है कि यदि बहुत से घायल लोगों के आंकड़े रिकार्ड में दर्ज ही नहीं होंगे तो उनको सहायता कैसे मिलेगी, जबकि भारत, दक्षिण-अफ्रीका,  अमेरिका व तुर्की में हुए अध्ययनों में यह बताया गया है कि रेल दुर्घटनाओं में प्रायः जो चोट लगती हैं वे बहुत गंभीर होती हैं और उनमें देर तक इलाज की जरूरत होती है। यानी घायल लोगों के इलाज पर कहीं अधिक ध्यान देने की जरूरत है।

(सप्रेस)

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