दादा धर्माधिकारी की 125वीं जयंती पर उठी मांग : उनके विचारों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए

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18 जून। किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष व पूर्व विधायक डॉ सुनीलम ने दादा धर्माधिकारी की 125वीं जयंती के अवसर पर प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि यह हमारे लिए गौरव की बात है कि आज ही के दिन 18 जून, 1899 को ताप्ती के मूल स्थान मुलतापी में दादा धर्माधिकारी का जन्म हुआ था। दादा का पूरा नाम शंकर त्रिम्बक धर्माधिकारी था, पर दुनिया उन्हें दादा धर्माधिकारी के नाम से ही जानती है।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा नागपुर में हुई। गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शामिल होकर उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। उन्होंने औपचारिक शिक्षा की कोई डिग्री नहीं ली थी, किन्तु स्वाध्याय से ही अपने समय के विचारकों में महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया था। स्वतंत्रता आंदोलन में 1930 ,1932 और 1940 में उन्होंने जेल की सजा काटी।

डॉ सुनीलम ने कहा कि दादा धर्माधिकारी ‘गांधी सेवा संघ’ के सक्रिय कार्यकर्ता थे। दादा धर्माधिकारी ने अपना अधिकांश समय दलितों और महिलाओं के उत्थान में लगाया। ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ की गिरफ्तारी से छूटने पर वे मध्य प्रदेश असेम्बली के सदस्य और संविधान परिषद के सदस्य चुने गए थे। उन्हें हिन्दी, संस्कृत, मराठी, बांग्ला, गुजराती और अंग्रेजी भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। एक लेखक के रूप में इनकी दो दर्जन से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई थीं।

उन्होंने विनोबा जी के साथ सर्वोदय आंदोलन की स्थापना की तथा अहिंसक क्रांति की प्रक्रिया (हिंदी), आपल्या गणराज्याची घडण (मराठी), क्रांतिशोधक (हिंदी), गांधीजी की दृष्टि (हिंदी), गांधीजी की दृष्टि : अगला कदम (हिंदी, जर्मन), तरुणाई (मराठी), दादा की बोध कथाएं (मराठीत, दादांच्या बोधकथा, भाग 1 से 3 ), दादांच्या शब्दांत दादा, (भाग 1, 2), नये युग की नारी (हिंदी), नागरिक विश्वविद्यालय – एक परिकल्पना (मराठी), प्रिय मुली (मराठी), मानवनिष्ठ भारतीयता (हिंदी, मराठी), मैत्री (मराठी), युवा और क्रांति (मराठीत, क्रांतिवादी तरुणांनो), लोकतंत्र : विकास और भविष्य (मराठीत, लोकशाही विकास आणि भविष्य), समग्र सर्वोदय दर्शन (मराठीत, सर्वोदय दर्शन), स्त्री-पुरुष सहजीवन (हिंदी, मराठी), हिमालय की यात्रा (अनुवाद; मूळ गुजराती, लेखक दत्तात्रेय बालकृष्ण) आदि किताबें लिखीं।

डॉ सुनीलम ने कहा कि दादा धर्माधिकारी के विचार हिंसाग्रस्त, लालच, गलाकाट प्रतियोगिता में उलझे , जातिवादी उपभोक्तावादी समाज और देश के लिए आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा कि मुलतापी के जनप्रतिनिधि होते हुए उन्होंने कुछ वर्षों तक दादा धर्माधिकारी की जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किए लेकिन यह दुखद है कि दादा धर्माधिकारी जैसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समाज सेवक की याद शासकीय कार्यक्रमों के माध्यम तक से नहीं की जाती।

डॉ सुनीलम ने प्रधानमंत्री, केंद्रीय शिक्षा मंत्री, मुख्यमंत्री तथा राज्य शिक्षा मंत्री से अपील की है कि वे दादा धर्माधिकारी जी के जीवन दर्शन को प्रदेश के स्कूलों, कॉलेजों के पाठ्यक्रम में जुड़वाने हेतु निर्देश दें।

इस अवसर पर उन्होंने नगरपालिका अध्यक्ष के नाम पत्र लिखकर दादा धर्माधिकारी के जन्म दिवस और निर्वाण दिवस पर नगरपालिका के माध्यम से कार्यक्रम आयोजित करने तथा मुलतापी रेलवे स्टेशन के सामने चौराहे पर मूर्ति स्थापित करने हेतु राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजने की मांग की ताकि भावी पीढ़ी दादा धर्माधिकारी के विचारों से लाभान्वित हो सके।

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