5 जुलाई। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा पिछले दो साल में वनाधिकार को कमजोर और बेअसर बनाने के प्रयासों का अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने बहादुरी से प्रतिवाद किया। उनके पत्र और बयान सार्वजनिक हैं। उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया तथा कार्यकाल पूरा होने के आठ माह पहले राष्ट्रपति ने इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। इससे केंद्र सरकार की आदिवासी विरोधी, कॉरपोरेटपरस्त नीति ही जाहिर होती है।
चौहान ने सुप्रीम कोर्ट को भी चिट्ठी लिखी थी कि वनाधिकार कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाले केस के सारे कागज आयोग को भेजे जाएं ताकि वह उनकी छानबीन कर सके। उनको कागज मिल भी गए थे।
संयुक्त किसान मोर्चा को इस मसले को अपने एजेंडा में शामिल करना चाहिए।
– अफ़लातून
किसान मजदूर परिषद