सोशलिस्ट तहरीक का एक खंबा नहीं रहा

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स्मृतिशेष : कल्याण जैन

अग्रज कल्याण जैन को हिंदुस्तान के सोशलिस्टों में, पूरे मुल्क में जाना जाता था। मध्यप्रदेश का जिक्र आने पर सोशलिस्ट और कल्याण जैन एक दूसरे के पर्याय बन जाते थे। तमाम उम्र बिना रुके, बिना थके, बिना डिगे कल्याण भाई हर जुल्म ज्यादती, बेइंसाफी, गैरबराबरी, सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ते ही रहे।

समाजवादी परचम को फहराने का जज्बा इतना जबरदस्त कि 85 साल की उम्र होने के बावजूद जब पिछले दिनों समाजवादी समागम की तरफ से इंदौर में सम्मेलन आयोजित किया गया, पूरी शिद्दत से वह सम्मेलन में शिरकत करने के साथ-साथ जब जलूस महात्मा गांधी के स्टैचू पर सजदा करने के लिए निकाला गया, सम्मेलन स्थल से काफी दूर बारिश के कारण सड़क पर जगह-जगह पानी भरने से कीचड़ से रपटने का अंदेशा, कल्याण भाई को मना करने के बावजूद वे हाथ में झंडा लेकर ‘इंकलाब जिंदाबाद गांधी लोहिया जयप्रकाश’ के नारे लगाते हुए पैदल चल रहे थे। कोई गुमान नहीं कि वह आदमी उस शहर की अजीम शख्सियत नगर निगम, विधानसभा, लोकसभा का सदस्य रह चुका है। परंतु एक कार्यकर्ता की तरह धीमी आवाज में इंकलाब के नारे लगाता हुआ जुलूस के आगे नहीं भीड़ के बीच में चल रहा था।

मेरी उनसे पहली मुलाकात 1968 में हुई। डॉ राममनोहर लोहिया के इंतकाल के बाद समाजवादी युवजन सभा का राष्ट्रीय अधिवेशन इंदौर में आयोजित था, जिसमें किशन पटनायक अध्यक्ष तथा जनेश्वर मिश्रा महासचिव चुने गए थे। मुझे भी उसकी राष्ट्रीय समिति का सदस्य बनने का गौरव प्राप्त हुआ था। उसी में कल्याण भाई से मुलाकात हुई थी। सोशलिस्ट तहरीक की इस लंबी यात्रा में कल्याण भाई की अनेकों यादें हैं। पार्टी के सम्मेलनों, जलसे जुलूसों में लगातार बातचीत, विचार-विमर्श आंदोलन कैसे आगे बढ़े इस पर चर्चा होती रहती थी।

एक ऐसा नेता जिसकी रग रग में समाजवाद का सपना भरा रहता था। आज के माहौल में जब पार्टी, विचारधारा को सत्ता की चाह में कपड़े की तरह बदलने का दस्तूर जारी है लेकिन कल्याण भाई की 1960 से शुरू हुई समाजवादी यात्रा का अंतिम पड़ाव भी सोशलिस्ट झंडे के हलचक्र के निशान के साथ हुआ। हमें फख्र है उन पर, कि सोशलिस्ट तहरीक में ऐसे नायाब नेता रहे हैं।

मैं अपनी सिराज ए अकीदत पेश करता हूं।

– प्रो राजकुमार जैन
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हम अब और अधिक विपन्न हो गए हैं

हर साथी मित्र को तर्कशील ढंग से समझा कर अपनी राय पर चलाने की कोशिश वे लगातार करते रहे। इंदौर में पार्षद से राजनीति की शुरुआत की और सांसद तक चुने गये।

86 साल की उम्र के अंतिम दिनों तक सक्रिय रहे। अभी विगत 30 अप्रैल 2023 को ही हम सबके बुलावे पर वे दिल्ली आए थे , मधु लिमये जन्मशती के समापन समारोह में। हमेशा की तरह चैतन्य और उग्र राजनीतिक विचारों के साथ ! जो पुराने सोशलिस्ट कभी भी अलंकरण जैसी चीजों को अस्वीकार करते रहे हैं वे हम साथियों के ख़ास आग्रह पर समाजवादी समागम की ओर से दिये प्रशस्ति को स्वीकार कर रहे थे। कल्याण जैन भी उनमें से एक थे।

पकी उम्र के साथ साथ उनका राजनीतिक विश्लेषण और बेलाग स्पष्ट होता जा रहा था एवं कम शब्दों में ही उसे कहने का विशिष्ट अनुभव भी।

हम सब सोशलिस्ट अब और अधिक विपन्न हो गये हैं।

क्रांतिकारी अभिवादन के साथ अंतिम सलाम साथी कल्याण जैन !

– रमाशंकर सिंह

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इंदौर की राजनीति को संघर्ष का पथ दिखा गए कल्याण दादा

अपने 70 साल के राजनीतिक जीवन में अन्याय के खिलाफ सतत संघर्ष करने वाले पूर्व सांसद समाजवादी नेता कल्याण जैन ने 13 जुलाई को अंतिम सांस ली। 89 वर्ष की उम्र में शायद ही प्रदेश का कोई ऐसा कस्बा, कोई समाज का हिस्सा रहा हो, जिसे दादा ने प्रभावित नहीं किया हो।

इंदौर के पूर्व सांसद जुझारू समाजवादी नेता तथा देश में पहली बार छोटे दुकानदारों को संगठित कर कानूनी जंजाल से मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले कल्याण जैन ने कल 13 जुलाई को 89 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली।

समाजवादी विचारधारा में अटूट निष्ठा, गैरबराबरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ असीम गुस्सा और अत्यंत गरीब को भी न्याय दिलाने की भरसक कोशिश के गुण कल्याण जैन को एक अलग राजनेता के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं। सतत धारावाहिकता के चलते उन्होंने अपने संघर्षों में ना कभी साधनों की चिंता की और ना संख्याबल की। गांधीजी के इस वाक्य को कि समाज परिवर्तन की लड़ाई लड़ने वालों को मान, अपमान और तिरस्कार की चिंता किए बगैर अपनी राह पर चलते रहना चाहिए, उन्होंने अपना ध्येय वाक्य बनाकर 1960 में संघर्ष की जो राह पकड़ी तो वह आजीवन जारी रही। दादा इंदौर की राजनीति में एकमात्र ऐसे व्यक्ति रहे जिन्होंने नगर निगम से लेकर संसद तक इंदौर का प्रतिनिधित्व किया, पर अपनी सादगी कभी नहीं नहीं छोड़ी।

वित्तीय मामलों में दादा की गहरी पकड़ थी। बजट के पूर्व और बजट के बाद होने वाली चर्चाओं में उनकी व्याख्या, विश्लेषण, तार्किकता और आर्थिक मामलों में उनकी सोच को सराहा जाता रहा। आजादी बचाओ आंदोलन हो या प्राथमिक शिक्षा एक जैसी हो इस पर होने वाले आंदोलनों में दादा को लगातार नेतृत्व करते हुए देखा गया। अन्याय कहीं भी हो दादा पीड़ितों के हक में इस उम्र में भी खड़े हो जाते थे। संघर्ष के साथ ही दादा लेखन के जरिए भी सरकार को सुझाव देते रहते थे। इस संबंध में उनकी कुछ किताबें भी प्रकाशित हो चुकी है, जिनमें प्रमुख हैं – अभी भी समय है, 10 नहीं सौ करोड़ का भारत, मेरे सपनों का भारत, यदि मैं वित्त मंत्री होता, कार्य संस्कृति सुधार पथ बढ़ाने होंगे तथा सब्सिडी का विकल्प।

अपनी विचारधारा से समझौता कभी नहीं करने वाले दादा के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए राजनीतिक रूप से भी कई मौके आए लेकिन उन्होंने कभी विचारधारा से समझौता नहीं किया। 1984 के चुनाव का वाकिया मुझे याद है जब भाजपा ने गुना से माधवराव सिंधिया के खिलाफ कल्याण दादा को संयुक्त उम्मीदवार बनाने का फैसला किया। सूचना मिलने पर दादा ने गुना से नामांकन भी दाखिल कर दिया, लेकिन अचानक कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को ग्वालियर भेज दिया, अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़ने को। तो भाजपा अपने वादे से पलट गई और उसने कल्याण जैन को संयुक्त उम्मीदवार बनाने से इनकार कर दिया। जब दादा कुशाभाऊ ठाकरे से भोपाल में मिले तो ठाकरे जी ने कहा कि आप भाजपा के उम्मीदवार बनने को तैयार हों तो गुना से पार्टी टिकट देने को तैयार है, लेकिन दादा को यह मंजूर नहीं था और उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इस पूरी घटना का मैं प्रत्यक्ष गवाह हूं ।यदि दादा उस प्रस्ताव को मान लेते तो हो सकता था कि आज उनकी भाजपा के बड़े नेताओं में गिनती होती, लेकिन उन्होंने अपनी विचारधारा से समझौता ना कर अपनी राजनीति को नई चमक दी ।

पद का उन्हें कभी मोह नहीं रहा इसका एक और उदाहरण 1992 की वह घटना है जब बगैर किसी शर्त के उन्होंने अपनी सोशलिस्ट पार्टी का मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी में विलय कर दिया।

राजनारायण जी के निधन के बाद कल्याण जैन को सोशलिस्ट पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था। कल्याण जैन समाजवादी पार्टी को मजबूती देने के लिए लगातार प्रयासरत रहे और कई चुनावों में उन्होंने महीने महीने भर उत्तर प्रदेश में रहकर समाजवादी पार्टी को जिताने और सरकार बनाने के लिए सतत मेहनत की। संघर्ष के हर कार्यक्रम और संगठन से उनका लगाव रहा। फिर चाहे बनवारीलाल शर्मा के नेतृत्व में आजादी बचाओ आंदोलन हो या मेधा पाटकर के नेतृत्व में नर्मदा बचाओ आंदोलन। नर्मदा डूब प्रभावित लोगों के पुनर्वास के आंदोलन में मेधा पाटकर का साथ देने में दादा आंदोलनकारियों का हौसला बढ़ाने में हमेशा तत्पर रहे। अपने पूरे जीवन दादा ने पूरी ऊर्जा के साथ लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी उसूलों के लिए संघर्ष का जज्बा बनाए रखा और हर मिलने वाले और कार्यकर्ता से हमेशा वे अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने का आग्रह करते रहे।

गरीब, मजदूर और पीड़ितों की आवाज़ उठाने वाले दादा इंदौर की फ़िज़ाओं में हमेशा अमर रहेंगे!

– रामस्वरूप मंत्री

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